Saturday, September 21, 2024

“टूटी कुर्सी”

किराए के मकान में रहते रहते रामास्वामी को कई वर्ष हो गए थे अब बच्चे भी बड़े हो गए थे और जिद करने लगे कि क्यों ना नया स्थाई घर खरीद लिया जाए। कब तक इधर से उधर गृहस्थी के सामान को ढोते रहेंगे। घर में सदस्यों की संख्या भी तो बढ़ रही है। रामास्वामी जी ने घर तलाशना शुरू कर दिया था जैसे तैसे उनके बजट में एक वर्षों पुराना मकान हाथ आ गया था। चार कमरों का मकान था,आगे खुला बरामदा। खुला-खुला घर ठीक वैसा ही जैसा रामास्वामी चाहते थे। अपने दोनों बेटों से बोले तुम सुबह मेरे साथ चलना नए घर की सफाई करने बेटे अपने पिता की आज्ञाकारी संतान थे। पिताजी के आदेशों की सदा पालना करते थे। रामास्वामी की पत्नी ने कहा कि आप कहें तो मैं भी चलती हूं । थोड़ी मदद हो जाएगी पर रामास्वामी जी ने ना कर दिया और बोले तुम बैठो अपनी खटिया पर बहू के साथ। हम तीनों ही साफ कर आएंगे वैसे घर ज्यादा गंदा नहीं है। वह तो काफी समय से बंद है। धूल मिट्टी ही तो है एक दो पानी की बाल्टी डाल देंगे और सब कुछ स्वच्छ हो जाएगा। धर्मपत्नी जी ने कहा ठीक है। अल सुबह ही बेटों के साथ पहुंच गए घर को साफ करने। लंबा सा पाईप लिया और लगे घर के आंगन को साफ करने । सारे घर को साफ करने के बाद रामास्वामी के बेटे बोले बाबूजी ऊपर की छत पर एक स्टोर रूम है, उसे भी साफ कर देते तो अच्छा होता। जो सामान उपयोग में नहीं आएगा उसे स्टोर रूम में रख देंगे। रामास्वामी ने कहा ठीक है और पहुंच गए अपने हाथ में पाईप और सर्फ की थैली लेकर । बच्चों ने ज्यों ही स्टोर रूम खोला उसमें एक लकड़ी की कुर्सी थी। उसे लड़कों ने ज्यों ही बाहर निकाला रामास्वामी की नजर में वो कुर्सी ना जाने ऐसा क्या जादू कर गई उसे बिना साफ किए ही उस पर बैठ गए। बेटे तपाक से बोले बाबूजी जरा संभलकर ना जाने कितनी गंदी है कही आपके कपड़े मैले ना हो जाएं। पर बाबूजी तो फटाफट बैठ गए। और बैठते ही बोले अरे यह क्या यह तो थोड़ी बहुत हिल रही है। बेटों ने देखा आगे के दोनों पाये तो मजबूत थे लेकिन पीछे के पाये थोड़े कमजोर से लग रहे थे। और एक पाया तो थोड़ा रगड़ खाने की वजह से थोड़ा सा घिस गया था। शायद इसलिए कुर्सी का संतुलन बैठ नहीं पा रहा था। रामास्वामी के बड़े बेटे ने कहा की बाबूजी ये तो काफी खराब है। मैं आपके लिए नई कुर्सी बनबा दूंगा पर रामास्वामी बोले इसमें क्या खराबी है ठीक है वैसे भी मुझे कौन सा अजर अमर का वरदान मिला है। बेटे के हाथ से पानी का पाईप लिया और थोड़ा सा सर्फ लेकर पानी और सर्फ से कुर्सी को धो डाला। दोनों बेटों को उनकी यह बात कुछ अजीब सी लगी। पर अपने पिता से बोलने की हिम्मत नहीं हुई। कुर्सी को लेकर नीचे आ गए और रामस्वामी के कहे अनुसार उसे बरामदे में रख दिया। पुराने घर से नए घर में गृहस्थी का सामान सब व्यवस्थित कर दिया गया था। ज्यों ही रामास्वामी उस कुर्सी पर बैठते वो थोड़ी बहुत आवाज करती। पर अपने स्वभाव के कारण उस पर बैठे रहते। दिन बीतते गए एक दिन रामास्वामी ने अपनी पत्नी से कहा थोड़ा कमर में दर्द रहने लगा है। तभी बहु चाय लेकर आ गई और बोली बाबूजी डॉक्टर को दिखा लेते हैं। रामास्वामी ने कहा आराम करूंगा तो ठीक हो जाएगा। पर लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहने से दर्द और बढ़ने लगा। कुर्सी का मोह था की जा ही नहीं रहा था। फिर एक दिन बच्चों से खेलते समय कुर्सी गिर गई जिससे कुर्सी का एक पाया नीचे से थोड़ा सा टूट गया। अब तो बेटो को लगा कि बाबूजी इस कुर्सी को छोड़ देगे। बड़े बेटे ने कहा बाबूजी नई कुर्सी ला देता हूं पर बाबूजी ने कहा अरे कुछ नही अभी तो ये और चलेगी और बाहर से लकड़ी के दो टुकड़े लाएं और कुर्सी के नीचे रख दिए,अब तो कुर्सी और डगमगाने लगी। पीछे से बहु ने कुर्सी संभाल ली और बोली बाबूजी अभी तो आप गिर जाते। बेटों ने बाबूजी से कहा की अब तो आप इस टूटी कुर्सी का मोह छोड़ दीजिए। जब जब कुर्सी आवाज करती है और हिलती तो बेटों का दिल बैठ सा जाता पर बाबूजी की जिद के आगे किसी की हिम्मत नहीं होती दूसरी ओर बाबूजी थे कि मानने को तैयार ही नहीं थे।
डॉ.कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार

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