रामद्वारा धाम में चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। भगवान कृष्ण प्रेमास्पद का अवतार थे तो राधा प्रेम का अवतार थी। द्वापर युग के अंत में वृन्दावन की धरती बरसाना में राधाजी का अवतार हुआ था। वह भगवान कृष्ण की पराशक्ति व आदिशक्ति थी। राधा प्रेम का अवतार होने से आज भी भक्त लोग प्रेम भाव से राधे-राधे करके चिंतन करते है ओर मोक्ष के अधिकारी बनते है। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने सोमवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत व्यक्त किए। सत्संग में डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री ने गर्ग संहिता की चर्चा करते हुए उन तीनों महान शक्तियों मेनका, रत्नमाला व कलावती के बारे में बताया जिन्होंने तीनों ही देवियों को इस संसार में प्रकट किया था। मेनका के द्वारा पार्वती का जन्म हुआ जो भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी, रत्नमाला का विवाह विदेहराज जनक के साथ होने पर वह देवी सीता की माता कहलाई जिनका विवाह अयोध्या के रधुवंश भूषण श्रीराम के साथ हुआ। इसी तरह कान्यकुब्ज के राजा भलंध के यहां यज्ञ से प्रकट कलावती जो कीर्ति नाम से प्रसिद्ध हुई उनके राधाजी का अवतार हुआ था। शास्त्रीजी ने कहा कि राधा-कृष्ण का प्रेम सच्चा प्रेम था जिसकी मिसाल आज भी संसार में दी जाती है। ये प्रेम आत्मा से जुड़ा हुआ था ओर इसमें किसी तरह का दोष नहीं था। राधा-कृष्ण की रासलीला आज भी हम स्मरण करते है ओर कहीं भी प्रेम की चर्चा होती है तो राधा-कृष्ण का नाम अवश्य आता है। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ।चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।