Saturday, September 21, 2024

परम पूज्य गणाचार्य 108 श्री विराग सागर गुरु महाराज की चातुर्मास कलश स्थापना हुई

रमेश गंगवाल
श्रेयांस गिरी जिला पन्ना मध्यप्रदेश। आचार्य भगवंत गणाचार्य 108 श्री विराग सागर गुरुदेव ससंघ के चतुर्मास कलश की स्थापना एवं गुरु पूर्णिमा के दिवस पर, मुनि संघ प्रबंध समिति के कार्यकारिणी सदस्य अनुज बड़जात्या ने मुख्य तीन कलशों में से द्वितीय कलश हेतु अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग कर महती धर्म प्रभावना की। तथा जीवन में सदा ही मंगल करने वाला मंगल कलश जिसकी गुरुवर के कर कमलों से मंत्रों च्चारित होकर स्थापना हुई। जो चातुर्मास संपन्न होने के पश्चात उन्हें प्राप्त होगा। गुरु शिष्य का संबंध अद्भुत होता है ।मुनी संघ प्रबंध समिति के महामंत्री ओम प्रकाश जी काला कोषाध्यक्ष मुकेश जैन ब्रह्मपुरी सह कोषाध्यक्ष राजेंद्र पापडीवाल एवं सदस्य अनुज गुरु महाराज के पाद मूल में पहुंचे, तो गुरुदेव के मुख से अनायास ही शब्द प्रस्फुटित हो गए ।उन्होंने काला साहब (मामा जी) से कहा तुम तो गुरु भक्त ही नहीं, गुरु भक्त शिरोमणि हो। यह कहकर आचार्य भगवान ने अपने कर कमलों में अवस्थित रही पिच्छी को प्रदान कर दिया। आचार्य भगवान की पिच्छी प्राप्त करने का सौभाग्य श्री दिगंबर जैन मुनि संघ प्रबंध समिति पार्श्वनाथ भवन के महामंत्री ओम प्रकाश काला (मामा जी) को प्राप्त हुआ। यह जानकारी देते हुए प्रचार मंत्री रमेश गंगवाल ने बताया, गुरूवर ने कहा पिच्छी का परिवर्तन नहीं, ह्रदय का परिवर्तन होना चाहिए ।पिच्छी सुंदरता को धारण करने वाली होती है, रज को ग्रहण नहीं करती है। पसीने को ग्रहण नहीं करती है, मृदु होती है, सुकुमार होती है।, पिच्छी सभी से यही कहती है, मुलायम बन जाओ ,जो मृदु स्वभाव के होते हैं वे मनुष्य हो सकते हैं देव भी हो सकते हैं। पिच्छिका धीरे-धीरे अपनी कोमलता छोड़ देती है, तीखी हो जाती है ,उससे किसी का भी घात हो सकता है। इसलिए पिछिका परिवर्तन किया जाता है सभी वेश श्रंगार के सूचक हैं पर मुनिराज को श्रंगार की आवश्यकता नहीं है । उनके वेश में तो सिर्फ पिच्छी और कमंडल ही है। और यह वेश, वेश ना होकर वस्तु का स्वरूप होता है। पूज्य-पाद गणाचार्य भगवंत श्रेयांस गिरी में चतुर्मास कर रहे हैं।

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