बिना बोली लगाए, गुरु भक्तों ने की मंगल कलश स्थापना
मनोज नायक/भिण्ड। चातुर्मास कलश रखना या स्थापित करना कोई आगम सम्मत व्यवस्था नहीं हैं, कोई प्राचीन व्यवस्था नहीं हैं। यह तो एक वर्तमान की व्यवस्था हैं जो हमारे आचार्य श्री महावीर कीर्ति से शुरू हुई थी। जिसके पीछे आचार्य श्री की भावना यह थी कि चतुर्मास तो साधु करता है लेकिन साधु के साथ साथ श्रावक को भी उससे लाभ होना चाहिए। चातुर्मास में कलश वह माध्यम है जिससे श्रावक अपने आपको चातुर्मास से जुड़ा हुआ महसूस करता है। उक्त विचार आचार्य श्री विनिश्चयसागर जी महाराज ने चातुर्मास कलश स्थापना समारोह के अवसर पर ऋषभ सत्संग भवन बताशा बाजार भिण्ड में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
गुरुदेव आचार्य श्री विनिश्चयसागर ने चातुर्मास का महत्व बताते हुए कहा कि जैन धर्म में चातुर्मास का सामाजिक और धार्मिक महत्व तो है ही, व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयत्न भी है। चातुर्मास एक परिभाषिक शब्द है। वर्षाकाल के चार माह साधु साध्वियाँ संकल्प पूर्वक एकही स्थान पर रुककर स्वयं तो आत्मकल्याण हेतु साधना करते ही हैं साथ ही श्रावकों को भी धर्म साधना हेतु प्रेरित करते हैं। चातुर्मास का मूल ध्येय जीव दया अहिंसा धर्म का पालन करना होता है । वर्षाकाल में जीवोत्पत्ति विशेष रूप से असीमित संख्या में होती है। बरसात की बजह से भूमि में दबे हुए असंख्यात जीव बाहर आ जाते हैं जिससे पद विहार में अत्यधिक जीव हिंसा की आशंका रहती है। जैन शास्त्रों में भी स्पष्ट निर्देश हैं कि वर्षाकाल के चार माह तक साधु साध्वियों को अन्यत्र कहीं भी विहार न करते हुए संकल्प पूर्वक एक ही स्थान पर रूककर धर्म साधना करना चाहिए।
पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विनिश्चय सागर महाराज के संघस्थ मुनिश्री नेमीसागर महाराज, मुनिश्री प्रांजुलसागर महाराज, मुनिश्री प्रवीरसागर महाराज, मुनिश्री प्रत्यक्षसागर महाराज, मुनिश्री प्रज्ञानसागर महाराज, मुनिश्री अनंगसागर महाराज, मुनिश्री प्रसिद्धसागर महाराज, क्षुल्लक श्री प्रमेशसागर महाराज भी चातुर्मासरत रहेंगे। श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन चैत्यालय, बताशा बाजार भिण्ड में मंगलाचरण के साथ वर्षायोग मंगल कलश स्थापना समारोह का शुभारंभ हुआ। बाहर से आए हुए अतिथियों द्वारा चित्र अनावरण एवम दीप प्रज्वलित किया गया। समारोह के दौरान प्रथम कलश धर्मेन्द्र कुमार जैन, नवीन जैन, हैप्पी जैन (भिण्ड वाले) भजनपुरा दिल्ली, द्वितीय कलश राकेश कुमार रोचिम जैन ललितपुर, तृतीय कलश सुनील कुमार जैन (मोनू) बरायठा सागर को स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
पूज्य आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन परम मुनिभक्त राजेंद्रकुमार प्राशु ऋषि जैन रायपुर एवम त्रलोकचंद श्रीमती मंजू जैन विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) ने किया। ज्ञान दान के रूप में शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य संजय जैन ज्योति जैन काला कोलकाता एवम संदीप जैन राजू आयुषी जैन खंडवा को प्राप्त हुआ। इस पुनीत एवम पावन अवसर पर मुरेना, ग्वालियर, मुरार, लश्कर, मेहगांव, मालनपुर, करनाल, कोलकाता, खंडवा, टीकमगढ़, ललितपुर, सागर, दरगुवा, दिल्ली, गाजियाबाद, अंबाह, पोरसा, गोरमी दिल्ली, झांसी सहित सम्पूर्ण भारत वर्ष से सैकड़ों की संख्या में गुरुभक्त उपस्थित थे।