माता-पिता को प्रणाम किए बिना नहीं जाए घर से बाहर: चेतनाश्रीजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। अभिमान आते ही जीवन में पतन की शुरूआत हो जाती है। जिसका मन अभिमान त्याग धर्म में लग जाए उसे देवता भी नमन करते है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम के गुणों के कारण ही आज भी उन्हें आदर्श माना जाता है और सभी उनका गुणगान करते है। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में शुक्रवार को नियमित चातुर्मासिक प्रवचनमाला में मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या मरूधरा ज्योति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने जैन रामायण का वाचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि धन होना अच्छी बात है लेकिन धन का प्रदर्शन करना दुःख का कारण बन जाता है। वर्तमान में वैभव प्रदर्शन की बुराई समाज में बढ़ रही है। उन्होंने गृहक्लेश को घर से बाहर नहीं ले जाने की नसीहत देते हुए कहा कि यदि घर के झगड़े बाहर ले जाएंगे तो मामले सुलझने की बजाय अधिक बिगड़ जाएगी। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी ने सामाजिक व्यवस्था में तलाक के मामले बढ़ने पर चिंता जताते हुए कहा कि बेटी की शादी के बाद माता-पिता को उसे समझाना चाहिए कि ससुराल ही अब उसका घर है उसे वहीं समन्वय कायम कर आगे बढ़ना होगा। ससुराल की परम्पराओं के विपरीत कार्य के लिए कभी विवाहित पुत्री को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए जो बाद में पारिविारिक दुःख का कारण बन जाए। जनक दुलारी सीता को आज भी शीलवान नारी के रूप में पूजा जाता है जिसने अपने पति का साथ देने के लिए संसार के सारे सुखों का त्याग कर दिया था। धर्मसभा में आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि भगवान के नाम की माल जपने से अज्ञान व अंधकार मिटने के साथ मोक्ष की राह खुलती है। उन्होंने जीवन में हमेशा नमने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जितना अधिक नमन करेंगे उतना जीवन निर्मल होगा। नमन करने पर माता-पिता ओर बड़े बुर्जुगों के साथ गुरूओं व भगवान का भी आशीर्वाद हमे मिलता है। उन्होंने कहा कि घर में यदि माता-पिता या सास-ससुर है तो सुबह उठते ही उन्हें प्रणाम करना चाहिए और बिना प्रणाम किए घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। चेतनाजी म.सा. ने जाप का महत्व बताते हुए कहा कि जाप तीन तरह के होते है। बातचीत जाप में आवाज करके भगवान का नाम लिया जाता है। दूसरी तरह का जाप उपांशु होता है इसमें बोलते-बोलते जुबान बंद हो जाती है पर कंठ में शब्द गूंजते रहते है। ये जाप बातचीत जाप से अधिक फलदायी होता है। तीसरी तरह का जाप मानसिक जाप होता है जिसमें मन एकाग्र हो जाता है और वाणी मौन हो जाती है। गले की आवाज बंद होकर मन ही मन बोलते है। मानसिक जाप सर्वाधिक लाभ देने वाला है।
जिनवाणी श्रवण से मिट जाते क्रोध व मान जैसे कषाय
धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी श्रवण से व्यक्ति का क्रोध, मान जैसे कषाय मिट कर पुण्य का संचय होता है। जिनवाणी श्रवण किए बिना हमारे जीवन की गति सुधरने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि हम जीवन में आत्मकल्याण के लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहते है तो चातुर्मास में जिनवाणी श्रवण के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए। हमे संसार के कर्मो में डूबो कर रखने वाले कार्यो के लिए समय मिल जाता है लेकिन जब जिनवाणी श्रवण की बात आती है तो कहते है समय नहीं है। ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जिसे बदलने की जरूरत है। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में उपवास, आयम्बिल व एकासन तप के प्रत्याख्यान भी लिए गए। संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।
रविवार को युवाओं के साथ धर्मचर्चा एवं दोपहर में बाल संस्कार कक्षा
श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार रूप रजत विहार में प्रत्येक रविवार प्रातः 8 से 8.30 बजे तक युवाओं के साथ धमचर्चा का आयोजन होगा। इसमें युवा अपने मन की जिज्ञासाओं का पूज्य साध्वीवृन्द से समाधान कर सकेंगे। इसी तरह रविवार दोपहर 1 से 2 बजे तक बाल संस्कार कक्षा एवं दोपहर 3 से 3.40 बजे तक प्रश्नमंच का आयोजन होगा। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप में भी श्रावक-श्राविकाएं उत्साह से सम्मिलत होकर पंचपरमेष्टी देव की आराधना कर रहे है। जाप में भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु शामिल हो रहे है। दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है।