धर्मसभा को संबोधित कर व्यक्त किए उदगार
मनोज नायक/भिण्ड। अपने किए कार्यों पर सोचों नहीं, उसमें अपनी सोच से परिवर्तन लाओ। क्योंकि सोचने से मात्र जीवन में परिवर्तन नहीं आता, बल्कि अपनी सोच में परिवर्तन लाने से अपने जीवन में बदलाव जरूर आता है। “जो आज तक किया है अब नहीं करेंगे और जो नहीं किया है वो अब करेंगे”। ऐसी विचारधारा जब आपकी अंतश चेतना में आयेगी तब आप कुछ सुखी हो सकते हैं। उक्त उद्बोधन बाक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज ने श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन चैत्यालय मंदिर बताशा बाजार में धर्मसभा को संबोधित करते हुए दिया।
पूज्य गुरुदेव श्री विनिश्चयसागर ने बताया कि आचार्य भगवन ने कहा है- “अभाक्यिम भावेमि, भाविष्यं ण भावेमि”! आपने आजतक क्या सोचा – जो गलत था, जो करने योग्य नहीं था, जो दूसरों को कष्ट देने वाला था, जो हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह आदि पापों से लिप्त था। आपने आज तक इसी बारे में सोचा है, सोच रहे हैं और ऐसा ही कर रहे हैं। आचार्य भगवन कहते हैं कि सोच बदलो, जो पुण्य का हेतू है। ऐसा कार्य करो कि आपके जीवन को स्थिति परस्थिति सब बदल जाएगी। आपके जीवन में सुख बरसेगा, दुख कम हो जाएंगे। इसीलिए गुरु कहते हैं कि सोचो नहीं, सोच बदलो। आप सुखी रहना चाहते हो तो आत्म चिंतन जागृत करो, सांसारिक कार्यों से विमुख हो, प्रातः ध्यान का अभ्यास करो, योगा करो और मन वचन काया पर नियंत्रण करो। आचार्य श्री ने आगे कहाकि रविवार 09 जुलाई को वर्षायोग कलश स्थापना से प्रत्येक रविवार को प्रातः मूलनायक भगवान के अभिषेक, पूजन का युवाओं के लिए विशेष मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा।