Monday, November 25, 2024

एकान्त को पकड़ने वाला नारकी अनेकांत को पकड़ने वाला पारखी: आचार्य सौरभ सागर

जयपुर। राजधानी के टोंक रोड़ स्थित प्रताप नगर में चल रहे जीवन आशा हॉस्पिटल के प्रेरणा स्त्रोत आचार्य सौरभ सागर महाराज ने पांचवें दिन शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के संत भवन में कहा की “सर्वांग से निसृत होने वाली शास्ता की वाणी को जिनवाणी कहते है। शास्त्र की वाणी में मिलावट करना अपराध भाव है। जिसमें मिलावट है वह जिनवाणी नही निजवाणी है। बुद्धिवादी जिनवाणी के अनुसार नहीं चलता। बल्कि जिनवाणी को अपने अनुसार चलाता है, तथाकथित पंडित, पुजारी, पादरी मनवाणी को ही परमात्मा का संदेश कहते है और अनेक प्रकार के छल प्रपंच को जन्म देते है।”

आचार्य श्री ने ज्ञान और जानकारी में पूरब-पश्चिम का अंतर बताते हुए कहा कि – जानकारी मित्रों से, पुस्तकों से, सम्प्रदायगत संस्कारों से, रागी-द्वेषी, असंयमी, नकली उपदेशकों से पायी जाती है। यह जानकारी आचरण को नहीं मात्र तर्क-वितर्क को उत्पन्न कर भ्रमित करती है। ज्ञान भ्रमित नहीं करता अपितु आचरण देता है। आचरण रहित ज्ञान लंगड़े के समान है। ज्ञान परम्परा पर चलने का संदेश देता है और जानकारी अंधविश्वास पर चलने को प्रेरित करती है। जानकारी हाथवादी होती है। ज्ञान समन्वयवादी होता है। भगवान महावीर स्वामी के पास जानकारी नहीं – ज्ञान था, उनका ज्ञान किसी आकाश से नही उतरा बल्कि सम्यक आचरण के माध्यम से स्वयं के भीतर ही अविभूर्त हुआ था। आत्मा से प्रस्फुटित ज्ञान के बल पर ही भगवान महावीर ने अनेकांत और स्यादवाद को पूरे विश्व में अपनी दिव्य ध्वनि के माध्यम से एक साथ 700 लघु भाषाओं एवं 18 महाभाषाओं में गुंजायमान किया। वर्तमान काल में एक साथ इतनी भाषाओं के माध्यम से ज्ञान देने वाला कोई नहीं हुआ।

आचार्य सौरभ सागर महाराज ने कहा कि – शास्त्र की तह तक पहुंचने के लिए गुरु से सम्बन्ध स्थापित करना अनिवार्य है। क्योंकि गुरु जलता हुआ दीपक है, बुझा दीपक कभी किसी को नहीं जला सकता। गुरु जागृत पुरुष है वे मनुष्य को जगा सकते है, शास्त्र नहीं जगा सकते ; क्योंकि शास्त्र अचेतन है और मनुष्य पूजा भी कर सकता है, फाड़कर भी फैंक सकता है। शास्त्र मौन है, गुरु मुखर है, शास्त्र मृत है, गुरु चेतन्य है। जब चेतन्य हो तो अचेतन के समक्ष मत बैठना। गुड्डे-गुड़िया एकत्र करने से परिवार नहीं बनता चैतन्य पुत्र को जन्म देने से परिवार बनता है, वंश चलता है। मात्र शास्त्र को एकत्रित करने से परमात्मा नहीं मिलता है। जीवन संभलता है, चैतन्य के पास पहुंचकर चैतन्य होने का पुरुषार्थ करें।
अंत में आचार्य श्री ने कहा कि – प्रत्येक जीव में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है। जब मनुष्य ज्ञान को आचरण में ढाल देता है, उसी वक्त से उसके परमात्मा बनने की शक्ति प्रकट होने लगती है। महावीर का सिद्धांत अनेकांतवाद और सायदवाद का है। जिसे ‘ ही ‘ और ‘ भी ‘ का सिद्धांत कहते है। एकान्त को पकड़ने वाला नारकी होता है और अनेकांत को पकड़ने वाला पारखी होता है और मोह राग-द्वेष-छल-प्रपंच को छोड़कर शास्त्र से शास्ता तक की यात्रा निर्विध्न पूर्ण करता है।

वर्षायोग समिति मुख्य समन्वयक गजेंद्र बड़जात्या ने जानकारी देते हुए कहा की आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में प्रातः 6.30 बजे से भगवान शांतिनाथ के कल्शाभिषेक का आयोजन होता है, उसके उपरांत आचार्य श्री के मुखारविंद भव्य शांतिधारा होने के पश्चात प्रतिदिन प्रातः 8.30 बजे से संत भवन में प्रवचन श्रृंखला आयोजित हो रही है, जिसमें जयपुर सहित देशभर से श्रद्धालुगण सम्मिलित होते है और गुरुवर के ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाकर अपने कर्मों की निर्जरा की ओर ओर अग्रसर होते है।

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