नहीं भूले अपने धर्म की पहचान, कम से कम प्रतिदिन करें एक सामायिक
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जिनवाणी हमे जीवन को निर्मल बनाने का संदेश देती है। हमारी जिंदगी कमाने, खाने-पीने ओर सोने में ही न बीत जाए इसके लिए प्रतिदिन कम से कम 48 मिनट की एक सामायिक साधना अवश्य करें। आत्मा हमारी सिम और शरीर मोबाइल है। शरीर की इन्द्रिया चार्ज होती रहने पर वह चलता रहेगा। ज्ञान रूपी चार्जर का उपयोग करते रहे। आत्मा होने तक शरीर का मोल है। प्रार्थना ओर जिनवाणी से शरीर रिचार्ज हो जाता है। आत्मा और शरीर को जोड़ ज्ञानार्जन करने पर जीवन सार्थक होगा। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में मंगलवार को नियमित चातुर्मासिक प्रवचनमाला में मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या मरूधरा ज्योति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि समय का सदुपयोग कर जिनवाणी अवश्य श्रवण करें और अपनी धर्म की पहचान को कभी नहीं भूले। स्थानक में जिनवाणी श्रवण के लिए आए तो मुखवस्त्रिका का अवश्य उपयोग करें ओर सभी सामायिक के वेश में बैठे। जो सामायिक नहीं करते उन्हें भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाए। साध्वीश्री ने कहा कि कर्ज ओर मर्ज स्वयं को भोगना पड़ता है। इसी तरह जो धर्म करेंगा उसका फल उसे ही मिलेगा दूसरा प्राप्त नहीं कर सकता। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी ने जैन रामायण का वाचन करते हुए कहा कि उस समय तीर्थंकर मुनिसुव्रत का शासन चल रहा था। रामायण के मुख्य पात्र राम, लक्ष्मण और सीता है जिनके जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते है। राम का नाम लेने से सर्व कष्ट व पाप दूर होते है।
त्याग और नियम पालना आत्मकल्याण में सहायक
धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी सुनने की प्रेरणा देते हुए कहा कि इसे नहीं सुनने पर दुर्गति पक्की है। जिनवाणी श्रवण पुण्यार्जन कर अशुभ कर्मो का क्षय करती है। उन्होंने जीव हिंसा से बचने के लिए जमीकंद व वनस्पति का उपयोग नहीं करने या न्यूनतम करने की भी प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि आत्मकल्याण के लिए जीवन में त्याग ओर नियम के ब्रेक लगाए और द्रव्य मर्यादा रखे। जीवन में छोटे-छोटे त्याग करने पर भी कल्याण हो सकता है। धर्मसभा में आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने गीत प्रस्तुत किया। धर्मसभा में आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा., तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. एवं नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में उपवास, आयम्बिल व एकासन तप के प्रत्याख्यान भी लिए गए। चातुर्मास के पहले ही सप्ताह में अब तक तीन तेला तप प्रत्याख्यान हो चुके है। धर्मसभा में नवीन नाहर ने गीतिका प्रस्तुत की। संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।
अति हमेशा नुकसानदायी, खुशी में भी हो सकता अनर्थ
आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा धर्मसभा में हर माह में एक बार आने वाली पूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा कि हर पूर्णिमा किसी पर्व या महापुरूष से जुड़ी है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन का प्रतीक है। बहन और भाई एक-दूसरे के बिना आबाद नहीं हो सकते। उन्होंने होटलों में जाकर शादी की 25वी, 50वीं सालगिरह मनाने से बचने की सलाह देते हुए कहा कि ये धर्म के अनुरूप नहीं है और कर्मो का बंधन करते है। कभी-कभी खुशी में भी अनर्थ हो जाता है। अधिकता से हमेशा बचना चाहिए। अधिक चलना, अधिक खाना, अधिक खुशी और अधिक गम भी कई बार ह्दयघात का कारण बन जीवन को खतरे में डाल देते है। उन्होंने समाज में रिश्ते टूटने पर चिंता जताते हुए कहा कि समय के साथ चले पर जमाने की ऐसी कुरितियों से बचे जो आत्मा को भारी बना उसकी दुर्गति करती है। चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि जीवन में जाप अवश्य करना चाहिए ये हमारे भावों व विचारों को शुद्ध बनाते है।
हर रविवार को युवाओं के साथ धर्मचर्चा
श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार रूप रजत विहार में प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप में भी श्रावक-श्राविकाएं उत्साह से सम्मिलत होकर पंचपरमेष्टी देव की आराधना कर रहे है। प्रत्येक रविवार प्रातः 8 से 8.30 बजे तक युवाओं के साथ धमचर्चा का आयोजन होगा। इसमें युवा अपने मन की जिज्ञासाओं का पूज्य साध्वीवृन्द से समाधान कर सकेंगे। इसी तरह रविवार दोपहर 1 से 2 बजे तक बाल संस्कार कक्षा एवं दोपहर 3 से 3.40 बजे तक प्रश्नमंच का आयोजन होगा।