प्रतिदिन गुरू के नाम की सच्चे मन से माला फेरने वाला हो जाता निहाल: डॉ. चेतनाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। आजीविका कमाने या पेट भरने की शिक्षा देने वाले तो कई शिक्षक हो सकते लेकिन हमे अध्यात्म जगत से जोड़ने वाला गुरू ही हो सकता है। ऋषिप्रधान भारतीय संस्कृति ज्ञानवान व विवेकवान बनाकर हमे परमात्मा के समीप लाती है। परमात्मा को पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। सच्चा व सत्य ज्ञान गुरू के बिना नहीं प्राप्त हो सकता। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में सोमवार को गुरूपूर्णिमा पर मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या मरूधरा ज्योति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी के सानिध्य में आयोजित धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अनुशासन सीखाने वाली गुरूकुल व्यवस्था समाप्त होकर स्कूलों में बदल गई है और उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चें आलसी व प्रमादी हो रहे है। आत्मबोध प्रदान करने वाले गुरू के उपदेश कड़वे होने पर भी हमारे आत्मकल्याण के लिए ही होते है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञ डॉ. श्रीचेतनाजी म.सा. ने ‘वंदन हो केवल ज्ञानी को उपाध्याय सुधर्मास्वामी को’ गीत से प्रवचन शुरूआत करते हुए कहा कि पूर्णिमा का अर्थ मन, वचन व काया से नमना होता है। पूरी तरह नमने पर ही जीवन सार्थक होता है। गुरू पूर्णिमा सहित वर्ष में आने वाली हर पूर्णिमा कोई न कोई प्रसंग लेकर आती है। उन्होंने कहा कि यदि हम संसार में यश पाना चाहते है तो निंदा रस से बचना होगा। कोई हमारे पर उपकार करे तो उसे छुपाने की बजाय जताओ और मानो तभी यशधर्मी बन पाएंगे। प्रतिदिन गुरू के नाम की सच्चे मन से माला फेरने वाला निहाल हो जाता है। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि गुरू के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मन को पवित्र रखना भगवान महावीर की सुप्रीम आज्ञा है। मन पवित्र हुए बिना कितना भी धर्म कर लो वह सार्थक नहीं हो सकता। संत-साध्वी त्याग-तपस्या अपने फायदे के लिए नहीं बल्कि श्रावक-श्राविकाओं का आत्मकल्याण हो सके इसी भावना से करने की प्रेरणा प्रदान करते है। हमे अपने गुरू पर श्रद्धा व विश्वास अवश्य रखना चाहिए। नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. ने गीत के माध्यम से गुरू की महिमा बताने के साथ कहा कि गुरू ही होता है जिसका आशीर्वाद हर संकट में हमारी रक्षा करता है। गुरू का हमेशा सम्मान करना चाहिए। धर्मसभा में आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में उपवास, आयम्बिल व एकासन तप के प्रत्याख्यान भी लिए गए। साध्वीवृन्द ने कहा कि महिला मण्डल ऐसी व्यवस्था करे कि चातुर्मास में इनकी लड़ी चलती रहे और प्रतिदिन कम से कम एक उपवास, आयम्बिल व एकासन जरूर हो। धर्मसभा में सुश्राविका सुनीता सुकलेचा एवं हेमा बिष्ट तथा वैरागन बहिन पूजा ने गुरू के महत्व पर गीतों की प्रस्तुति दी। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।
घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन मंगलवार को
चातुर्मासकाल में रूप रजत विहार में मंगलवार सुबह 8.30 से 9 बजे तक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन होगा। चातुर्मासकाल में प्रत्येक मंगलवार को इस जाप का आयोजन होगा। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप की शुरूआत सोमवार से हो गई। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा में भी कई श्रावक-श्राविकाएं भाग लेकर मन की जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे है। प्रत्येक रविवार प्रातः 8 से 8.30 बजे तक युवाओं के साथ धमचर्चा, दोपहर 1 से 2 बजे तक बाल संस्कार कक्षा एवं दोपहर 3 से 3.40 बजे तक प्रश्नमंच का आयोजन होगा।
शहर के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंच रहे श्रावक-श्राविकाएं
चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में पहली बार हो रहे चातुर्मास को लेकर क्षेत्र के जैन धर्मावलम्बियों में उत्साह का माहौल है और सभी अधिकाधिक तप-साधना से इसे सार्थक बनाने का लक्ष्य रखे हुए है। इस चातुर्मास में जिनवाणी श्रवण करने के लिए बापूनगर, न्यू आजादनगर, पुराना आजादनगर, पटेलनगर, कमला विहार, कांचीपुरम, बसंत विहार, गांधीनगर सहित शहर के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं रूप रजत विहार में पहुंच रहे है।