रमेश गंगवाल/जयपुर। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी को पूज्यपाद उपाध्याय भगवंत श्री उर्जयंत सागर गुरुदेव की पवन निश्रा और जन समुदाय की उपस्थिति में वर्षा योग मंगल कलश की स्थापना हुई। उक्त जानकारी देते हुए वर्षा योग समिति के मुख्य संयोजक श्री रुपेन्द्र छाबड़ा ने बताया कि पूज्य गुरुवर ने मंत्रोच्चारण के साथ सिद्ध भक्ति और शांति भक्ति पढ़ते हुए वर्षा योग चतुर्मास का योग धारण किया। उन्होंने बताया कि प्रातः 9.00 बजे ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ ध्वजारोहण कर्ता श्री शोभा देवी, सुनील जी, पदम जी, सुदीप जी पंसारी परिवार जयपुर थे । पश्चात धर्म सभा हुई धर्म सभा में मंगलाचरण विधानाचार्य रमेश गंगवाल ने किया। केसरिया जी, साबलाजी से पधारे धर्म बंधुओं ने 1008 श्री पार्श्वनाथ भगवान एवं आचार्य भगवंत श्री विमल सागर गुरुदेव के चित्र का अनावरण किया। दीप प्रज्वलन कर्ता थे राजेंद्र सौरभ गौरव केडिया परिवार जयपुर। गुरुवर को छोटेलाल प्रकाशी देवी पांड्या खोरा वालों ने जिनवाणी शास्त्र भेंट कर अपने को सार्थक किया। पूजा उपाध्याय भगवंत के चरण पखारने हेतु गणेश रेनू मोहित जी राणा परिवार जयपुर उपस्थित थे। चतुर्मास कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार दौलत जैन फागी वाला ने बताया गुरुवर उर्जयंत सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा ,कि आप सभी को गुरु की तप साधना में अवगाहन करने का मौका प्राप्त हुआ है। चतुर्मास में सभी को गुरु की सैवा का समय प्राप्त होगा। गुरु के सत्व में हमने सदैव स्नान किया लेकिन हमें तत्वों में स्नान करना होगा, गुरुचरित्र के फूल के समीप आ जाएंगे तो जीवन सुगंधित हो जाएगा। अगर अनुभूति चाहते हैं तो गुरु चरणों में आना ही होगा गुरु का संग संयोग जीवन को बदल देता है मुनिराज ने बताया कि श्रावक दिनभर दोनों हाथों से कमाता है और एक हाथ से खाता है जबकि साधु का यह पुण्य है कि वह बिना कमायें वह दोनो हाथ आहार ग्रहण करता है। बीज छोटा सा होता है और वह वट वृक्ष के समान होजाता है। अतः श्रावकों को आहार दान कर अपने पुण्य को वोट वृक्ष समान बनाना चाहिए। मगध विश्वविद्यालय के विद्वान प्रोफेसर श्री नलिन के शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा, जयपुर जैन समाज को गुरु चरणों का सामिप्य प्राप्त हुआ है गुरुदेव की चर्या और ज्ञान तथा आचरण को देखते हुए यह चातुर्मास एतिहासिक हैऔर हम सभी के लिए गौरवपूर्ण क्षण हैं। पूज्य पाद उपाध्याय भगवंत तो माध्यम है हम जो भी प्रार्थना करेंगे जो भी कुछ अर्पण करेंगे, वह इनके के माध्यम से आचार्य भगवन तक पहुंचेगा, भगवान तक पहुंचेगा। मान कभी अपमान कभी यश, कभी अपयश अपने जीवन में लगा हुआ है। अपने भावों को शुद्ध रखिए सन्मार्ग प्राप्त होगा, परिणाम भी शुद्ध होंगे। इस वर्षायोग कलश स्थापना की सभी वैधानिक क्रियाओं को विधिवत विधि विधान के साथ सलूम्बर से पधारे प्रतिष्ठा चार्य श्री सुरेन्द्र कुमार जी ने सम्पन्न कराया।