Monday, September 23, 2024

आचार्य सौरभ सागर महाराज ने की मंत्रोच्चारण के साथ की मंगल कलश की स्थापना

कांग्रेस नेता संजय बापना ने लिया आशीर्वाद, राजीव जैन गाजियाबाद वालों को मिला प्रथम कलश का सौभाग्य

अभिषेक जैन बिट्टू/जयपुर। धर्मनगरी में दिगंबर जैन संतों के मंगल कलशों की स्थापना चातुर्मास प्रारंभ होने के साथ शुरू हो गई। रविवार को राजधानी जयपुर के दक्षिण भाग में स्थित प्रताप नगर सेक्टर 8 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य सौरभ सागर महाराज ने चातुर्मास के मंगल कलशों की स्थापना संपन्न हुई। जिसमें प्रथम कलश राजीव-सीमा जैन गाजियाबाद वाले बापू नगर, दूसरा कलश अमरचंद, गजेंद्र, हर्षिल बड़जात्या प्रताप नगर और तीसरा कलश संदीप, नमन जैन देहरादून को लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ सहित कुल 29 परिवारों को भी कलश स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान पूर्व राष्ट्रीय सचिव कांग्रेस संजय बापना ने भी आचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रचार संयोजक अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया की रविवार को प्रातः 8.15 बजे ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इससे पूर्व आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज जिनालय में भगवान शांतिनाथ के दर्शन कर बैंड – बाजों के साथ मुख्य पांडाल में जैन श्रद्धालुओं के साथ प्रवेश किया जहां पर बालिकाओं द्वारा मंगलाचरण नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसके उपरांत पूर्व न्यायधिपति एनके जैन, रमेश जैन तिजारिया, कमलबाबु जैन, प्रदीप जैन लाला, विनोद जैन कोटखावदा, आलोक जैन तिजारिया, मनोज सोगानी, चेतन जैन निमोडिया, मनोज झांझरी, अध्यक्ष कमलेश जैन बावड़ी वाले, मंत्री महेंद्र कुमार जैन पचाला वाले, कार्याध्यक्ष दुर्गालाल जैन, प्रचार संयोजक सुनील साखुनियां आदि द्वारा चित्र अनावरण और दीप प्रवज्जलन कर समारोह की विधिवत शुरुवात की गई। इस दौरान लखनऊ, मेरठ, गाजियाबाद, फरीदाबाद, हिसार, गुरुग्राम, रोहतक, दिल्ली का सूरजमल विहार, ऋषभ विहार, रोहणी नगर सेक्टर 5, राधेपूरी, कृष्णा नगर, शहादरा, आगरा और एमपी सहित भरतपुर जैन समाज द्वारा श्रीफल भेंट कर आचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त किया और समिति द्वारा सभी का माला पहनाकर स्वागत किया।

चातुर्मास ज्ञान, ध्यान, तपस्या करने का मार्ग है, इसमें श्रावकों भी उसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है- आचार्य सौरभ सागर जी

वर्षायोग मंगल स्थापना से पूर्व आचार्य सौरभ सागर महाराज ने सभा को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचन में कहा कि वर्षायोग, धर्म के संविभाग का समय है। प्रवृति से निवृति की ओर जाने का सुअवसर है। स्वयं को पाप से मुक्त करने की कला के जागरण का समय एवं संत समागम के अदभुत क्षण का नाम वर्षायोग है। वर्षायोग में साधु आषाढ़ सुदी चतुर्दशी से कार्तिक वदी चतुर्दशी तक एक स्थान पर रहता है और ज्ञान, ध्यान, तपस्या करके श्रावकों को भी उस मार्ग की ओर प्रेरित करता है।

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