इंदौर। दिगंबर जैन धर्मावलंबी सारे देश में दिनांक 26 जून से आठ दिवसीय अष्टानिका पर्व मना रहे हैं, इसके अंतर्गत अधिकांश मंदिरों में आठ दिवसीय सिद्धचक्र महामंडल विधान, नंदीश्वर विधान आदि धार्मिक अनुष्ठान उमंग उल्लास और भक्ति भाव से किए जाते हैं। इस उपलक्ष में कनाडिया रोड स्थित श्री दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय ( नया जैन मंदिर) मे भी 26 जून से चावल की रंगीन चूरी से मंडल जी की रचना कर पुण्य वर्धक श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान चल रहा । जिसमें विधान के मुख्य पात्र सौ धर्म इंद्र इंद्राणी आनंद पारुल पहाड़िया, कुबेर महावीर आरती जैन, यज्ञ नायक सत्येंद्र सपना जैन एवं ईशान इंद्र हितेश सारिका जैन के साथ विधान में बैठे लगभग 50 से अधिक जैन परिवार के सदस्य विधानाचार्य भरत शास्त्री एवं बबीता दीदी के निर्देशन में सिद्ध भगवान की भक्ति, आराधना उमंग और उत्साह के साथ कर रहे हैं। विधान के अंतर्गत प्रतिदिन बढ़ते क्रम से मंडल जी पर 8-16-32 इस प्रकार आठवें दिन 1024 अर्घ सिद्ध भगवान को समर्पित किए जाते हैं। 4 जून को विश्व शांति महायज्ञ के साथ विधान का समापन होगा। चावल की चूरी से निर्मित सुदर्शनीय मंडलजी की रचना सुरेश काका, पवन मोदी, वीरेंद्र पप्पन, पवन शाह एवं निर्भय पहाड़िया, अरविंद सर ने की।
सिद्धचक्र विधान और उसका महत्व
जो संसार से मुक्त हो गए और जिन्होंने अपने कर्मों का क्षय कर सिद्धत्व को प्राप्त कर वर्तमान में सिद्ध शिला पर विराजमान हो गए वे हमारे आराध्य सिद्ध भगवान हैं। सिद्ध चक्र मंडल विधान के माध्यम से श्रावक सिद्धों की भक्ति, आराधना कर पुण्यार्जन करता है। सिद्ध चक्र मंडल विधान को सभी विधानों का राजा कहा जाता है क्योंकि इस एक विधान में मुनिराजों एवं सिद्धों का गुणानुवाद के अलावा शांति विधान, पंच परमेष्ठी विधान, सहस्त्रनाम विधान भी समाहित है। वर्ष में 3 बार आने वाले अष्टानिका पर्व मैं अधिकांश मंदिरों में चावल की रंगीन चूरी से मंडल जी की रचना कर 8 दिन में कुल 1024 अर्घ्य चढ़ाते जाते हैं। 18-19वीं शताब्दी में भट्ठारक सुभाष चंद्र स्वामी द्वारा संस्कृत भाषा में इस विधान की रचना की गई थी और 1934 वीं ईस्वी में सहारनपुर निवासी पंडित एवं कवि संतलाल द्वारा इस विधान का हिंदी रूपांतरण कर जन सामान्य के लिए सुलभ करा दिया।