रामद्वारा धाम में संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री का सत्संग-प्रवचन
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जीवात्मा को 84 लाख योनियों में कष्ट भोगने के बाद मानव शरीर प्राप्त होने से यह दुर्लभ तो है पर क्षणभंगुर भी है। बरसाती पानी के बुलबुले की तरह मानव शरीर को भी नष्ट होने में देर नहीं लगती इसीलिए शास्त्रों में जन्म-मरण से मुक्ति पाने के उपाय बताए गए है। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत रोड वाले) ने शुक्रवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत व्यक्त किए। इस प्रवचन माला का विधिवत आगाज गुरूवार को वाणीजी की शोभायात्रा के साथ हुआ था। सत्संग में डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री ने कहा कि मानव शरीर धारण करने के दौरान ही जीवात्मा को भरपुर ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति होती है एवं वह कुछ नया कर पाने में सक्षम होता है, अन्य योनियों में केवल कर्म दंड भोगने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं होता है। मानव देह प्राप्त जीवात्मा गुरू का माध्यम लेकर परमात्मा की भक्ति कर आत्मकल्याण के लक्ष्य की प्राप्ति कर सकती है। उन्होंने राम नाम की महिमा बताते हुए गुरू के बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि यदि मानव शरीर ने परमात्मा की भक्ति नहीं की तो 84 लाख जन्म पूरे होने तक 4 युग बीत जाएंगे। ऐसे में प्रतिदिन मानव को ईश्वर भक्ति अवश्य करनी चाहिए। सत्संग में आना भी ईश्वर भक्ति का ही माध्यम है। सत्संग में गुरू से ईश्वर का महत्व जान मानव अपने जीवन को प्रभु भक्ति के लिए समर्पित कर सकता है। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। सत्संग के अंत में राम नाम की महिमा का भजन प्रहलाद जागेटिया ने प्रस्तुत किया।