Sunday, November 24, 2024

आचार्य विद्यानंद जी का राष्ट्र को अवदान-संगोष्ठी सम्पन्न

जयपुर। अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ द्वारा घोषित श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जन्म शताब्दी समारोह 2023- 24 के अंतर्गत दिनांक 18 जून 2023 को आगरा में परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के शुभ आशीर्वाद से ब्रह्मचारी जय निशांत जैन के प्रतिष्ठा आचार्यत्व में श्री आदिनाथ दिगंबर जैन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह के अंतर्गत आचार्य श्री विद्यानंद जी का राष्ट्र को अवदान विषय पर विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र जैन, एडवोकेट अलीगढ़ की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इस विद्वत् संगोष्ठी में डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत,डॉ. अनिल कुमार जैन, जयपुर, अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के कार्याध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र जैन भारती, बुरहानपुर महामंत्री -डॉ. अखिल जैन बंसल, पूर्व कोषाध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद जैन आगरा, श्री कमल हाथी शाह, भोपाल, पंडित सौरभ जैन आगरा, पंडित महावीर प्रसाद जैन, नई दिल्ली, पंडित जिनेन्द्र जैन, मथुरा, श्रीकांत जैन, समनेवाडी आदि विद्वानों ने सहभागिता की। सभी विद्वान पत्रकारों का दिगंबर जैन पंचायत समिति के अध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद जैन तथा उनके साथियों ने मोती माला, पगड़ी, अंग वस्त्र, मोमेंटो प्रदान कर सम्मान किया। यहां उल्लेखनीय है कि जैन पत्र संपादक संघ के वरिष्ठ सदस्य श्री जगदीश प्रसाद जैन आगरा ने ही विशाल मानस्तंभ का निर्माण करवाया है ।संगोष्ठी का संचालन अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के कार्याध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र जैन भारती, बुरहानपुर ने किया।
संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए डॉ. अनिल कुमार जैन, जयपुर ने कहा कि -मुझे सन् 1965 में आगरा में आचार्य विद्यानंद जी के चातुर्मास की याद है। उस समय मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था। उनके प्रवचन रामलीला मैदान में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर होते थे जिसमें जैन लोग ही नहीं बल्कि हिंदू, सिख और मुसलमान लोग भी आते थे। उनके प्रवचन आम जनता को संबोधित करते हुए होते थे. आगरा में उस समय जैन धर्म की बहुत प्रभावना हुई।
आचार्य श्री का मानना था कि जैन धर्म को विश्व धर्म के रूप में स्थापित करने की पूरी क्षमता है। उन्होंने कई नये कवियों को आधुनिक भाषा में लोकप्रिय भजन लिखने के लिए प्रेरित किया जिससे जैन धर्म का प्रचार हो। आचार्य श्री प्राकृत भाषा के लिए समर्पित थे, इसी कारण उन्होंने कुंदकुंद भारती की स्थापना करवाई. जैन धर्म के सभी संप्रदायों के प्रमुख संतों से उनकी बहुत मित्रता थी। उनके साथ मिलकर सन् 1974-75 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भगवान् महावीर का पच्चीसवां निर्वाण उत्सव का अभूतपूर्व आयोजन करवाया। सवाईमाधोपुर जिले में स्थित भगवान् महावीर की मूर्ति का सहस्राब्दी समारोह आपकी प्रेरणा से ही हुआ। सन् 1981 के श्रवणवेलगोला में भगवान् बाहुबली की मूर्ति के सहस्राब्दी समारोह में भी आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
आचार्य श्री एक खोजी विद्वान थे। उनकी इसिहास में भी विशेष रुचि थी। उन्होंने यह सिद्ध करने में सफलता प्राप्त की कि हड़प्पा काल में जैन धर्म था। उनकी हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि पुस्तकें इसका प्रमाण हैं।वे यह भी स्थापित करने में सफल रहे कि भगवान् आदिनाथ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे।जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में उनका अमूल्य योगदान रहा है।उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर मेरी उन्हें मेरी विनयांजलि समर्पित है।
श्री कमल हाथीशाह,भोपाल ने कहा कि आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ने सम्यक्दर्शन के प्रभावना अंग का अनुकरण करते हुए संपूर्ण राष्ट्र में जैन धर्म की प्रभावना की।
अखिल ‌‌भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के महामंत्री डॉ.अखिल जैन बंसल ने आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज के शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान को प्रतिपादित किया और कहा कि आज जो संपूर्ण भारतवर्ष में प्राकृत भाषा के अध्ययन -अध्यापन की स्थिति बनी है, उसका श्रेय आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज को ही जाता है ।उन्होंने कुंदकुंद भारती में प्राकृत भवन, खारवेल भवन की स्थापना करवाई और लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ में जैन दर्शन एवं प्राकृत विषय का विभाग खुलवाया तथा अध्ययन- अध्यापन की व्यवस्था करवायी। उनकी ही प्रेरणा का परिणाम है कि प्राकृत भाषा के विद्वानों को राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कृत किया गया। अखिल भारतीय संपादक संघ के कार्याध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र जैन भारती ,बुरहानपुर ने कहा कि श्रवणबेलगोला स्थित बाहुबली भगवान की गोम्मटेश्वर बाहुबली भगवान की प्रतिमा के प्रति 12 वर्ष में होने वाले महोत्सव को आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ने संपूर्ण विश्व का उत्सव बना दिया और लोगों को प्रेरणा दी कि तपसे ज्ञान एवं ध्यान से सिद्धि मिलती है। इस बात का उदाहरण गोमटेश बाहुबली की प्रतिमा है ।भगवान महावीर के 25100 में निर्वाण महोत्सव को संपूर्ण भारत वर्ष में सरकारी स्तर पर मनाया गया था इसकी प्रेरणा आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ने ही दी थी। वे अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी थे, उन्होंने साधु समाज एवं विद्वानों को निरंतर अध्ययन की प्रेरणा दी, जिससे अनेक कृतियों का सृजन हुआ। हम उनके योगदान को कभी विस्मृत नहीं कर सकते।
अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्रि परिषद् के अध्यक्ष डॉ.श्रेयांस कुमार जैन ,बड़ौत ने कहा कि आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ने जनमंगल महाकलश यात्रा निकालकर जैनों को जन-जन से जोड़ा और व्यापक प्रभावना की ।उनकी ही प्रेरणा से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने गोमटेश्वर बाहुबली यात्रा की और उन्हें नमस्कार कर अहिंसा के प्रति निष्ठा व्यक्त की। जैन धर्म की प्रभावना में उनका बड़ा योगदान है। उनकी प्रेरणा से ही जैन भजनों के कैसेट बने और जैन धर्म की धमक को सरकारों ने स्वीकार किया ।वे हम सबके लिए प्रणम्य हैं। पंचकल्याणक महोत्सव समिति के संचालक श्री मनोज कुमार जैन, आगरा ने कहा कि आगरा में आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज चार बार पधारे। रामलीला मैदान में उनके प्रवचन हुए, जिससे हजारों लोगों ने व्यसन मुक्ति का संदेश प्राप्त किया ।वे जहां भी जाते थे अद्भुत प्रभाव छोड़ते थे। अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र जैन ,अलीगढ़ ने अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जैन धर्म तथा तीर्थों के संरक्षण में आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज का महान योगदान है। उनके योगदान को स्मरण करना ही इस आयोजन का लक्ष्य है।
अखिल भारतीय जन पत्र संपादक संघ के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने परम पूज्य आध्यात्मिक योगी आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज तथा उनके संघस्थ साधुओं के प्रति विनय प्रकट की तथा शुभ आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री प्रदीप जैन,पीएनसी,श्री हीरालाल जैन, बैनाड़ा,श्री भोलानाथ जैन आदि श्रेष्ठियों ने शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर एवं ज्ञान कल्याणक में समोशरण से आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने मानव जीवन में संस्कार के महत्व को बताया और कहा कि जैन धर्म वीरों का धर्म है इसे कुशल संयमी ही ग्रहण कर सकता है ।सभी के प्रति आभार महामंत्री डॉ . अखिल जैन बंसल ने व्यक्त किया.हजारों जनसमूह ने विद्वानों के विचार सुने।

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