स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने किया महारास लीला एवं रूक्मणी मंगल प्रसंग का वाचन
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। शादी का मंच सजा हुआ था और बाराती कोई साधारण नहीं बल्कि देवी-देवता थे। बारात किसी ओर की नहीं स्वयं द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण की थी। बारात में आज मेरे श्याम की शादी है, आज मेरे घनश्याम की शादी है जैसे गीत गूंज रहे थे और बाराती जमकर नाच-गान कर रहे थे। ये नजारा शहर के देवरिया बालाजी रोड स्थित आरके आरसी माहेश्वरी भवन में काष्ट परिवार की ओर से दिन अलवर से आए स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज के सानिध्य में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के छठे दिन शनिवार को रूक्मणी मंगल (विवाह) प्रसंग के दौरान दिखा। छठे दिन महारास लीला एवं रूक्मणी मंगल प्रसंग का वाचन किया गया। इस दौरान कृष्ण-रूक्मणी विवाह की सजीव झांकी सजाई गई। प्रतीकात्मक रूप से मंच पर विवाह प्रसंग का नजारा पेश किया। जैसे ही रूक्मणी ने पति के रूप में भगवान कृष्ण का वरण करते हुए उनके गले में वरमाला डाली पांडाल में मौजूद सैकड़ो भक्तगण हर्षित होकर द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण के जयकारे गूंजायमान करने लगे। हर तरफ खुशियां छा गई और हर भक्त भगवान कृष्ण की शादी के मंचन का साक्षी बन उल्लासित नजर आया और नाच-गाने के माध्यम से अपनी खुशियां जताने को आतुर दिखा। मंत्रोच्चार के साथ कृष्ण-रूक्मणी विवाह हुआ। स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने रूक्मणी विवाह प्रसंग का वाचन करते हुए कहा कि रूक्मणी ने देवर्षि नारद से जब श्रीकृष्ण की कथा सुनी थी तभी मन ही मन कृष्ण को अपने पति रूप में चुन लिया था। उनके संदेश पर ही भगवान श्रीकृष्ण मां भगवती के मंदिर में उसे लेने पहुंचे और हर तरह के प्रतिरोध को समाप्त कर रूक्मणी संग द्वारिका पहुंचे तो वहां हर्ष का माहौल बन गया। रूक्मणी मंगल प्रसंग के लिए कथास्थल पर विशेष सजावट की गई थी। कथा के दौरान विशिष्ट अतिथि राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधिपति दिनेश सोमानी एवं उनकी धर्मसहायिका कृष्णा सोमानी, अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा के पूर्व अध्यक्ष रामपाल सोनी, दक्षिण राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी सभा के पूर्व अध्यक्ष कैलाश कोठारी, माहेश्वरी सभा के जिलाध्यक्ष अशोक बाहेती, जिला उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष हरिनारायण सारस्वत, जिला अभिभाषक संस्था के पूर्व अध्यक्ष हेमेन्द्र शर्मा, रमेश राठी, प्रदीप बल्दवा, सुशील मरोठिया, राजेन्द्र पोरवाल, महेन्द्र काकाणी, अभिजीत सारड़ा आदि ने व्यास पीठ पर विराजित स्वामी सुदर्शनचार्य महाराज को साफा पहना व माल्यापर्ण कर स्वागत किया एवं आशीर्वाद लिया। कथा के अंत में व्यास पीठ की आरती करने वालों में संजय जागेटिया, अतुल राठी, दिनेश पेड़िवाल, गोपाल नराणीवाल, प्रमोद डाड, राहुल डाड, दिनेश सामरिया, मूलचंद शर्मा, भैरूलाल बाफना, रमेशचन्द्र सारस्वत, राजेश राठी, रमेश सोमाणी, प्रहलाद भूतड़ा आदि शामिल थे। अतिथियों का स्वागत काष्ट परिवार के श्री कैलाशचन्द्र काष्ट, कमल काष्ट आदि सदस्यों ने किया। श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर रविवार को सुदामा चरित्र प्रसंग के वाचन के साथ महाआरती होगी।
महारास से पूरा होता परमात्मा की प्राप्ति का लक्ष्य
स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने महारास लीला प्रसंग का वाचन करते हुए कहा कि महारास से परमात्मा की प्राप्ति का लक्ष्य पूरा हो रहा है जहां उनमें रम कर उनको आत्मसात किया जा सकता है। जो इन्द्रियों के वश में होकर उसका दास है वह गोपी है और जो इन्द्रियां जिनके इशारे पर चलती है वह उनका स्वामी गोपाल है। गोपाल गोपियों को महारास के लिए आमंत्रित करता है। राधारानी और गोपियों का कृष्ण से प्रेम दैहिक नहीं होकर आत्मिक है। प्रेम हो तो राधा जैसा जिसने आत्मा से प्रेम किया। योगमाया ही राधारानी है। वह प्रेमिका नहीं उपासिका है। राधा को समझने के लिए मानव चक्षु नहीं दिव्य चक्षु चाहिए। राधा त्याग, समपर्ण व निश्चल प्रेम का नाम है। गोविन्द ने राधा की उपासना, प्रार्थना व वंदना कर महारास करने का निश्चय किया। दुनियां के सारे रसो का उद्गम स्थल महारास है। महारास में सभी प्रेम के उपासक होकर नृत्य करते है।
भजनों की रसधारा में डूब झूमते रहे श्रद्धालु
श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में छठे दिन भी कथा शुरू होने से लेकर अंत तक श्रद्धालु संगीतमय भक्तिरस में डूबे रहे। श्रीमद् भागवत कथा के महारास लीला एवं रूक्मणी प्रसंगों के वाचन के दौरान बीच-बीच में भजनों की गंगा प्रवाहित होती रही। जैसे ही व्यास पीठ से महाराजश्री भजन शुरू करते कई श्रद्धालु अपनी जगह खड़े होकर नृत्य करने लगते। उन्होंने मीठी-मीठी सांवरे की मुरली बाजे, मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो, श्रीकृष्णम शरणम नमें आदि भजन गाए तो पांडाल में सैकड़ो श्रद्धालु नृत्य करने से खुद को नहीं रोक पाए।