Sunday, November 24, 2024

आचार्य समन्त भद्र स्वामी भगवन्त

जैन समाज के अत्यंत प्रतिभाशाली आचार्य समर्थ विद्वान सु- पूज्य मुनीब वृन्दो में आचार्य समन्त भद्र स्वामी का आसन बहुत उच्च है। समाज में कोई श्रावक शायद ही ऐसा हो, जिसने पूज्य आचार्य भगवंत का पवित्र नाम ना सुना हो। परन्तु समाज का अधिकांश भाग ऐसा भी जरूर है, जो आचार्य भगवन्त के निर्मल गुणों, और पवित्र जीवन वृतांत से बहुत ही कम परिचित हैं। बल्कि ऐसा कहा जा सकता है कि अपरिचित ही हैं। ऐसे महा मुनिराज जिन्हें जिनशासन का प्रणेता तक कहा गया है मैं बहुत दिनों से सोच रहा था। तथा एक प्रबल इच्छा बराबर मेरी बनी रही , कि आचार्य भगवंत समन्त भद्र स्वामी का संपूर्ण जीवन वृतांत लिखूं। और सभी के समक्ष आचार्य भगवन्त के जीवन चरित्र को प्रस्तुत कर सकूं। अंततः लेखनी को बल मिला और कुछ आचार्य भगवंत के विषय में कहने की, लिखने की धृष्टता कर रहा हूं। कुछ प्रमाद वश बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री हम लोग खो चुके हैं, फिर भी जो अवशिष्ट से बचे हुए हैं ,वह भी कुछ कम नहीं है ,परंतु वह सामग्री अस्त व्यस्त है। तथा इधर-उधर बिखरी हुई है, और उसे ज्ञात करने में तथा प्राप्त करने में बहुत सी विघ्न बाधाएं उपस्थित हो जाती हैं ।और अब तो ऐसा लग रहा है कि वे नष्ट होती जा रही हैं।
यथेष्ट सामग्री और साधनों के बिना ही बहुत सी उलझनों, विषय सामग्री के विषय में आचार्य श्री पर जो कुछ अनुसंधान करने पर मुझे प्राप्त हुआ, उनकी कुछ कृतियों तथा दूसरे विद्वानों के ग्रंथों में उनके विषय के उल्लेख वाक्यों, और शिलालेखों आदि की जानकारी एकत्र करने पर मुझे जो अनुभव हुआ, उन सब व्रत्त को संकलित करके संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूं। समन्त भद्र स्वामी भगवन्त क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए थे। वह राज पुत्र थे। आचार्य भगवन्त विक्रम की दूसरी तीसरी शताब्दी में थे। श्रवणबेलगोला के विद्वान श्री दोर्बली जिनदास शास्त्री के शास्त्र भंडार में सुरक्षित, आत्म मीमांसा की एक प्राचीन ताड़ पत्र प्रति के अनुसार आप फणी मंडला अन्तर्गत उरगपुर के राजा के पुत्र थे। उरगपुर चोल राजाओं की प्राचीन राजधानी रही है। और वर्तमान की त्रिचनापल्ली इसी को कहा जाता है। आचार्य श्री को शांति वर्मा नाम से जाना जाता था। आपकी शिक्षा उरैपुर, कांची तथा मथुरा में हुई। परंतु शांति वर्मा यह नाम उनके मुनि जीवन का नहीं हो सकता है । समन्त भद्र स्वामी का बनाया हुआ स्तुति विद्या या जिन स्तुति शतम् नाम का एक अलंकार प्रधान ग्रंथ है इस ग्रंथ का गत्वैकस्तुतमेव नाम का जो अंतिम पद्य है वह कवि और काव्य के नाम को लिए हुए काव्य है जहां लिखा है—
शांतिवर्मकृतं’;” जिनस्तुतिशतं
इससे यह स्पष्ट होता है कि यह ग्रंथ शांति वर्मा का बनाया हुआ है और इसीलिए शांति वर्मा समन्त भद्र का ही नामान्तर है।
यहां हम सभी यह आशंका ना करें कि जिन स्तुति शतम् नाम का ग्रंथ समन्त भद्र का बनाया हुआ ना होकर शांति वर्मा नाम के किसी दूसरे ही विद्वान का बनाया हुआ होगा। क्योंकि यह ग्रंथ निर्विवाद रूप से स्वामी समन्त भद्र का बनाया हुआ माना जाता है। ग्रंथ की प्रतियों में कर्तत्व रूप से समन्त भद्र का नाम लगा हुआ है। टीका कार श्री वसुनंदी जी ने उसे तार्किक चूड़ामणि श्रीमत समन्त भद्राचार्य विरचित सूचित किया है और दूसरे आचार्यों विद्वानों ने भी उनके वाक्यों का समन्त भद्र के नाम से ही अपने ग्रंथों में उल्लेख किया है।
अजीतसेनाचार्य भगवन्त ने अलंकार चिंतामणि में कितने ही पद्यों को प्रमाण रूप से उद्धृत किया है।

श्रीमत्समन्तभद्राचार्यजिनसेनादिभाषितम्
लक्ष्यमात्रं लिखामि स्वनामसूचितलक्षणम्।

इसके अलावा पंडित जिनदास पार्श्वनाथ जी फडकुले ने स्वयंभू स्तोत्र का जो संस्करण संस्कृत टीका और मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित कराया है उसमें समन्त भद्र का परिचय देते हुए उन्होंने यह सूचित किया है कि कर्नाटक देश स्थित अष्टषहस्त्री ,की एक प्रति में आचार्य के नाम का इस प्रकार से उल्लेख किया है।
इतिफणिमंडलालकारस्योरगपुराधिपसुनना शांतिवर्मनाम्ना श्री समन्तभद्रेण

शेष अगले अंक में
रमेश गंगवाल

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article