Saturday, September 21, 2024

किस मोड से जाते हैं? अनजान मंजिल की ओर

द्वितीय पुण्यतिथि पर श्री राजेन्द्र गोधा जी को सादर नमन

रूक्मणी। जिंदगी का सफर कठिन, सरल, खूबसूरत पगडंडीयों, उबड़-खाबड़ रास्ते, साधारण से विकट मोडों को पार कर मंजिल को प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन विधाता के बनाए इन रास्तों, पगडंडीयों, मोडों के बनाए नक्शों पर कई बार अचानक ऐसे मोड, रास्ते आते हैं वहां अचानक व्यक्ति अदृश्य हो जाता है। और कभी नहीं दिखने की आंखों से ओझल हो जाता है। समाचार जगत के मालिक गोधाजी जब अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए रास्ते तलाश रहे थे, चल रहे थे कि अचानक विधाता ने उन्हें एक मोड पर अचानक हमारी आंखों से ओझल कर विधाता ने अपनी गोद में ले लिया। गोधाजी मेहनती, धुन के धनी, दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। बचपन से उनकी इच्छा पत्रकार व अखबार निकालने की थी। वह समाचार जगत अखबार के मालिक भी बने और पत्रकार बनने की इच्छा भी पूरी की। यद्यपि इस मुकाम तक पहुंचने पर उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। परिस्थितिवश उन्हें नौकरी व अन्य व्यवसाय भी करने पड़े, पर ये व्यवधान उन्हें उनके उद्देश्यों से डिगा नहीं पाया और गोधाजी को सफलता मिली।
दैनिक अखबार एक बार दैनिक रूप से छप जाए वहीं कड़ी मेहनत का द्योतक होता है पर ”गोधाजी’’ (लोग उन्हें इसी नाम से संबोधित करते थ्ो) ने सायंकालीन समाचार जगत को भी प्रकाशित करा और वो भी केवल जयपुर नहीं बल्कि राजस्थान के कई जिलों में भी इसका वितरण किया। अन्य दैनिक अखबारों का मुकाबला किया। 12 पृष्ठों का प्रात:कालीन सायंकालीन अखबार का प्रकाशन उनकी दृढ़ निश्चयी मेहनत का परिचायक था। ऐसे व्यक्तियों को कर्मयोद्धा भी कहते हैं। गोधाजी आजीवन समाचार जगत की उन्नति के लिए प्रयासरत रहे। ईश्वर जन्म के साथ व्यक्ति का कर्म भी तय करता है। गोधाजी ने मूलचंद जी कमला जी के घर जन्म लिया। अल्पावस्था में पिता का साया उठ जाने के बाद उनकी मां ने पिता-माता दोनों के रूप में पाला। उनके द्बारा दिए गए ज्ञान से सुसंस्कारित होने के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी अर्जित किया। उन्होंने जैन धर्म की बढ़ोतरी के लिए कार्य किए। जैन साधु-साध्वीयों का सम्मान उनकी प्राथमिकता थी, पर अन्य समुदायी समाजों के उत्थान के लिए भी प्रयत्नशील रहे।
गोधाजी प्रतिदिन टोडरमल स्मारक मंदिर में धार्मिक गणवेश (लाल) पहन पूजा करने जाते थे। इसके बाद मां के चरण स्पर्श के बाद दैनिक कार्यों की शुरुआत करते थे। ये उनकी धार्मिक आस्था का परिचायक था। गोधा जी की पत्नी त्रिशला भी सच्च्ो रूप से गोधाजी की सहधर्मिजी थी। अपने बच्चों को सुसंस्कार दिए। इसी कारण गोधाजी के अवसान के बाद श्ौलेन्द्र, निशांत दोनों भाइयों ने अखबार की विरासत को संभाला और आगे बढ़ाएंगे ऐसा आशीर्वाद है। उनकी पुत्री डॉली फैशन डिजाइनिग में स्वतंत्र व्यवसाय कर रही है।
ऐसे समय में जब पगडंडीयों मोडों के घुमाव पर मंजिल तक पहुंचने के लिए प्रयत्नशील थे तब अचानक गोधाजी बीमारियों के चपेट में आ गए। अन्य बीमारियों को सहन कर रहे थ्ो पर अब कैंसर ने आक्रमण किया पर इसे भी गोधाजी ने चुनौती मान सामना किया। इस दौरान भी गोधाजी की मिलन सरिता, सहृदयता के कारण डॉक्टर्स, राजनीतिक मित्र, पारिवारिक मित्रों ने साथ दिया। बीमारी से संघर्ष करते हुए गोधाजी एक अंध्ो मोड पर अचानक अदृश्य हो गए। नेपथ्य में उनके निधन का समाचार ही गूंजा। इसीलिए उनके निधन के पश्चात् मुख्यमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, मैत्रीय समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने उनके बारे में जो कहा- वो उनके परिवार के लिए गौरव पथ है। गोधाजी ने अपने अखबार को पारिवारिक संज्ञा दी, न कभी छंटनी की न कभी किसी को निकाला, जो उनके साथ प्रथम दिन से जुड़ा वो आजीवन साथ रहा। किसी ने गोधाजी के लिए कहा था- ”मालिक-मालिक के पास चले गए।’’ चलिए इस पुण्यतिथि पर उनकी स्मृतियों की मधुर यादों के साथ नमन करते हुए उनकी यादों को सजीव रख्ोंगे। करोगे बात तो हर बात याद आएगी।
सादर नमन।

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