Monday, November 25, 2024

उपाध्याय श्री उर्जयन्त सागर जी गुरु महाराज के सानिध्य में हुआ कल्याण मंदिर विधान

जयपुर। कुमुद चंद्र एक समय राजकीय कार्य होने की वजह से चित्तौड़गढ़ आए थे। भगवान पार्श्वनाथ का जिनालय समक्ष आया, स्वयं दर्शनार्थ चले गए। मन्दिर में चमत्कारी शास्त्र का एक पृष्ठ पढा और दूसरा पृष्ठ उल्टा किया तो आकाशवाणी हो गई आगे आपके भाग्य में नहीं है। पहले साधु बन जाओ फिर पढ़ना। बस सन्यास का अंकुर प्रस्फुटित हो गया और वे प्रव्रज्या ग्रहण कर मुनि बन गए। सम्राट विक्रमादित्य मुनिराज कुमुद चंद्र मंत्र से अत्यंत प्रभावित थे । परंतु दरबारी लोगों के मन में ईर्ष्या के भाव बने हुए थे। सम्राट से बार-बार यह कहने से कि, दिगम्बर साधु में क्या बात है, जो आप इतने प्रभावित हैं, हम उनकी महिमा जानना चाहते हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर का प्रांगण था, आचार्य भगवन्त की परीक्षा का आयोजन वहीं हुआ। सम्राट ने कुमुद चंद्र भगवन्त से कहा -अरे आपने शिव प्रतिमा को प्रणाम नहीं किया। पहले इसे प्रणाम करो। और वे शिव पिण्डिका की ओर बढ़ने लगे, तब एक ब्राह्मण ने व्यंग्य कसते हुए कहा क्षपणक जी करिए नमस्कार शिव जी को। हम भी आपकी शक्ति देखना चाहते हैं। आचार्य कुमुद चंद्र भगवन्त का मार्ग श्रद्धा, भक्ति पूर्ण था। वे बेझिजक आगे बढ़कर श्री पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति करने लगे, तभी कल्याण मंदिर स्तोत्र की रचना हो गई और सभी को शिव पिंडिका की जगह भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन हुए ।सभी लोग दर्शन कर जय जयकार करने लगे।
जैन धर्म की अपूर्व प्रभावना है, विज्ञान चमत्कार को नहीं मानता, परंतु मनुष्य बिना चमत्कार के नमस्कार नहीं करता। प्रभु वर्धमान स्वामी भी यही कहते हैं, चमत्कार को नमस्कार मत करो, लेकिन नमस्कार में चमत्कार पैदा कर दो। इस स्तोत्र में प्रथम शब्द कल्याण मंदिर होने से इस स्तोत्र का नाम कल्याण मंदिर स्तोत्र पड़ा इस काव्य गाथा में 44 काव्य हैं। जिसके प्रथम वलय 8 अर्घ्य हैं। द्वितीय वलय में 16 अर्घ्य हैं। तृतीय वलय में 20 अर्घ्य हैं। इस विधान को आचार्य भगवंत ने बीजाक्षरों से निर्मित किया है। जगह जगह इसके अनुष्ठान कराए जाते हैं। परम पूज्य उपाध्याय भगवन्त १०८ श्री उर्जयंत सागर जी गुरुदेव के पावन सानिध्य में आज पार्श्वनाथ जिनालय खवास जी का रास्ता में यह कल्याण मंदिर विधान सआनंद संपन्न हुआ। सभी श्रावको ने आज अभ्युदय को प्राप्त करने में हेतु, इस अद्भुत विधान की पूजा अर्चना जो एकाग्रता पूर्वक की हुई स्तुति निधत्ति और निकाचित जैसे कर्मों को भी नष्ट कर देती है । ऐसी सातिशय से पूर्ण जिनेन्द्र भक्ति हमें भव भव में प्राप्त होती रहे।

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