श्रीकृष्ण का नाम ही आनंद व उत्सव का प्रतीक: स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। भगवान श्रीकृष्ण की जीवन की हर बात कोई न कोई संदेश देने वाली है। सुख-दुःख जीवन का हिस्सा है लेकिन कुछ लोग आत्मज्ञान प्राप्त कर इससे उपर आनंद की स्थिति में पहुंच जाते है। आनंद से भी उपर की स्थिति परमानंद की होती है जो भगवान की शरण में जाने से ही प्राप्त होती है। हंसते हुए प्राकट्य होने वाले श्रीकृष्ण का नाम ही आनंद व उत्सव का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हर स्थिति में मुस्कराने की कला सीख सकते है। ये विचार शहर के देवरिया बालाजी रोड स्थित आरके आरसी माहेश्वरी भवन में काष्ट परिवार की ओर से आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के पांचवें दिन शुक्रवार को व्यास पीठ से कथा वाचन करते हुए अलवर से आए स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने व्यक्त किए। कथा के पांचवें दिन श्रीकृष्ण बाल लीला, गोवर्धन पूजा प्रसंग के वाचन के साथ छप्पन भोग की झांकी सजाई गई। महाराजश्री ने भगवान श्रीकृष्ण की बाललीला से जुड़े विभिन्न प्रसंगों का वाचन करते हुए कहा कि माता यशोदा ने गोविन्द के विराट एवं शिशु दोनों रूप देखे। नंद और यशोदा ने कन्हैया की बाल लीलाओं का आंदन किस तरह प्राप्त किया इसकी भी चर्चा की। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत को धारण करने के प्रसंग का वाचन करते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन महाराज की पूजा करने की प्रेरणा प्रदान करके देवराज इन्द्र के अभिमान को नष्ट किया। इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अंगुली पर उठाने के कारण भगवान को गिरिराज धरण का नाम भी दिया गया। इस प्रसंग के दौरान कथास्थल पर छप्पनभोग की झांकी भी सजाई गई। पांडाल गिरिराज धरण के जयकारों से गूंज उठा जब भगवान गिरिराज को छप्पन भोग लगाया गया। छप्पन भोग की सजाई गई झांकी के दर्शन करने के लिए भक्तगण आतुर रहे। इस दौरान भगवान श्रीनाथजी की सजीव झांकी सजाई गई जो आकर्षण का विशेष केन्द्र रही। छप्पन भोग लगाने के बाद प्रसाद कथाश्रवण करने आए भक्तों में वितरित किया गया। कथा के दौरान पंचमुखी दरबार के महन्त लक्ष्मणदास त्यागी ने भी मंच पर पहुंच व्यास पीठ को नमन किया। कथावाचक स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने महंत लक्ष्मणदासजी त्यागी का अभिनंदन किया। कथा के दौरान श्रद्धालु अरविन्द भराड़िया, सिद्धार्थ बरलोटा, पीयूष न्याति, रघुनंदन सोड़ानी, विशाल तोतला, नवनीत बजाज, अमित पोरवाल, मंगल समदानी, अभिषेक सोमानी, विकास पटवारी, भावेश शाह, रोहित जैन, निखिल उपाध्याय आदि ने व्यास पीठ पर विराजित स्वामी सुदर्शनचार्य महाराज को साफा पहना व माल्यापर्ण कर स्वागत किया एवं आशीर्वाद लिया। अतिथियों का स्वागत काष्ट परिवार के श्री कैलाशचन्द्र काष्ट, कमल काष्ट आदि सदस्यों ने किया। कथा के अंत में व्यास पीठ की आरती करने वालों में देवीलाल मूंदड़ा, रामस्वरूप मूंदड़ा, कमलेश मूंदड़ा, भंवरलाल सोमानी, रामस्वरूप सोमानी, जगदीश सोमानी, गोपाल सोमानी आदि शामिल थे। भागवत सेवा समिति सुभाषनगर की ओर से भी आयोजन के लिए काष्ट परिवार के कैलाशचन्द्र एवं कमल काष्ट का सम्मान किया गया। श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन शनिवार सुबह 9 से 1 बजे तक महारास लीला एवं रूक्मणी मंगल प्रसंग का वाचन होगा। कथा समापन रविवार को होगा।
भीलवाड़ा को तीर्थनगरी कहे तो अतिशयोक्ति नहीं
कथा के दौरान पधारे पंचमुखी दरबार के महन्त लक्ष्मणदास त्यागी ने आर्शीवचन प्रदान करते हुए कहा कि भीलवाड़ावासी भाग्यशाली है और इसे तीर्थनगरी कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां धार्मिक आयोजन चलते ही रहते है। उन्होंने आयोजन की सराहना करते हुए सभी के लिए मंगलकामनाएं प्रदान की ओर कहा कि हम अपने देश के प्रति भी जागरूक रहे और राष्ट्रभक्ति एवं धर्मभक्ति दोनों करते रहे। महन्त लक्ष्मणदास त्यागी के कथास्थल पर पधारने पर आयोजक काष्ट परिवार के सदस्यों ने भावपूर्ण स्वागत-सत्कार किया।
परमात्मा के नाम पर रखे बच्चों के नाम
स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने कान्हा के नामकरण संस्कार की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों का नाम ऐसा हो जो निरर्थक होने की बजाए सार्थक हो। आजकल चिंटू-डिम्पू जैसे कई नाम होते है जिनका अर्थ ही कोई नहीं जानता। बच्चों के नाम परमात्मा के नाम पर रखे जाने चाहिए। उनका नाम लेने पर परमात्मा का नाम जुबान पर आएगा। बेटियों के नाम देवियों के नाम पर रखने चाहिए। जैसा नाम हो वैसे ही गुण भी होने चाहिए।
छोटो सो म्हारो मदन गोपाल भजन पर झूमे श्रद्धालु
श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में पांचवें दिन भी विभिन्न प्रसंगों के वाचन के दौरान श्रद्धालु संगीतमय भक्तिरस में डूबे रहे। स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने कृष्ण की बाललीला प्रसंग की चर्चा करते हुए जब छोटी-छोटी गैया छोटे छोटे ग्वाल, छोटो सो म्हारो मदन गोपाल भजन गाया तो पूरा पांडाल भक्तिसागर में डूब झूमने लगा। श्रद्धालु इस गीत पर जमकर नृत्य करते रहे। उन्होंने मैं तो अर्ज करू गुरू आगे चरणा में राख जो म्हाने, यशोदा सुन माई तेरे लाल ने रज खाई,गोवर्धन महाराज तेरे आगे मुकुट बिराज रयो आदि भजनों से भक्ति की ऐसी रसधारा बहाई जिसमें डूबकर श्रद्धालु जमकर नृत्य करते रहे।