बहुत ही गर्व का विषय है कि हाल ही 28 मई 2023 को नई दिल्ली में राष्ट्र के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन किया है। आधुनिक साज सज्जायुक्त यह भवन बहुत ही सुदृढ़ भी बना है विशेषज्ञों की मानें तो इस भवन पर गोलियों व मिसाल का भी असर नहीं होगा। इस विशाल भवन के शीर्ष पर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ की स्थापना हुई है जिसका अनावरण गत वर्ष 11 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। हमारे लिए गर्व की बात है कि 9500 किलो वजन व 6.5 मीटर ऊंचाई के कांस्य धातु के इस स्तम्भ को गुलाबी नगरी जयपुर के मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास ने अपने 40 अन्य सहयोगी कलाकारों के सहयोग से निर्धारित अवधि से पूर्व ही पांच माह में पूर्ण कर दिया था। इस प्रतीक चिन्ह की प्रतिमा के अलग-अलग भागों की कास्टिंग करके कई चरणों में बनाया गया था इन चरणों में स्केचिंग, पोलिशिंग आदि शामिल हैं। 21फुट साईज व 38 फुट डाई के स्तम्भ को अलग-अलग भागों में ट्रकों द्वारा जयपुर से दिल्ली भेजा गया था। संसद भवन की छत पर इस अशोक स्तम्भ को जोड़ने व स्थापित करने में 40 कलाकारों को 2 माह का समय लगा था। राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ की प्रसंशा करते हुए प्रधानमंत्री ने मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास को बधाई देते हुए उनकी कला की भी बहुत प्रसंशा की। अनावरण के पश्चात यह स्तम्भ विवादों में आ गया ।जानकारों ने अपने अपने स्तर पर समीक्षा करते हुए बताया कि इस प्रतीक चिन्ह में शेर की मुद्रा आक्रामक है शेर के मूंह के दोनों तरफ बड़े बड़े दांत दिखाई दे रहे हैं जबकि मूल स्तम्भ के शेर शांत मुद्रा के है व मूंह के दांत भी दिखाई नहीं देते है जो भी है , इस बारे में लक्ष्मण जी व्यास का कहना है कि मैंने मनमर्जी से नहीं अपितु मुझे दिये गये चित्रानुसार ही मूर्ती बनाई है । खैर हम इस तरह के किसी विवाद में नहीं पड़ रहें हैं।
इससे पहले भी मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास द्वारा बनाई गई 300 प्रतिमाएं देश-विदेश में स्थापित हो चुकी है। 57 फुट के महाराणा प्रताप उदयपुर में, दिल्ली एयरपोर्ट पर हाथी की प्रतिमाएं, बाधा बोर्डर पर श्याम सिंह अटारी, जवाहरलाल नेहरू, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, इंदिरा गांधी समेत अनेक महापुरुषों की प्रतिमाएं शामिल हैं। हमारा यह राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह जिसे हमने सम्राट अशोक की विरासत के रूप में प्राप्त किया है यह न केवल सम्राट अशोक की शिक्षाओं की स्मृति को ताजा करती है, वरन इस चिन्ह में हमारी असीम सांस्कृतिक विरासत भी झलकती है। सम्राट अशोक के स्तम्भों में जैन तीर्थंकरों के चिन्ह अंकित है। धर्म चक्र में 24 आरे तीर्थंकरो की संख्या 24 के प्रतीक हैं ।
चतुर्मुखी सिंह भगवान महावीर का चिन्ह् है ।और बैल , हाथी और घोड़ा क्रमश: पहले , दूसरे व तीसरे तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ और सम्भवनाथ के चिन्ह् है। भगवान महावीर और अहिंसा धर्म के संस्कारों के कारण सम्राट अशोक के ह्रदय में तीर्थंकरों और जैन धर्म के प्रति बहुत सम्मान था। अहिंसा के गहन संस्कारों के कारण ही कलिंग के युद्ध में भीषण रक्तपात वाले युद्ध न करने की घोषणा कर दी थी। सम्राट अशोक प्रारम्भिक काल में जैन थे। उनके पिता बिन्दुसार, पितामह चन्द्रगुप्त आदि भी दिगम्बर जैन धर्म की उपासना करते थे। सम्राट अशोक के उत्तराधिकारियों ने जैन धर्म की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने अधिकांश शिलालेख प्राकृत भाषा में खुदवाए थे।
हीरा चन्द बैद
एस-21, सरदार भवन, मंगल मार्ग, बापू नगर, जयपुर।