Sunday, November 24, 2024

बाबूजी श्री नेमीचंद जी गंगवाल को शत शत वंदन

हम सब नि:शब्द हैं, शून्य में हैं, शब्द नहीं हैं, शून्यता व्याप्त हो गई है। परंतु भावनाएं शब्दों को लेकर अग्रसारित हैं। अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को आदरणीय बाबूजी ने तथा संपूर्ण परिवार ने साधु संतों की सेवा में समाज को अर्पित कर दिया। आज हम सब स्मरण कर रहे हैं आदरणीय बाबूजी श्री नेमीचंद जी साहब गंगवाल का, आज ही के दिन २ वर्ष पूर्व वे काल धर्म को प्राप्त हो गए थे। उनका इस संसार से चला जाना ऐसा लगा मानो, एक युग का अंत हो गया। बाबूजी सभी में लोकप्रिय थे, सम्माननीय थे, आज हमारे मध्य नहीं हैं। कुशल प्रशासक के रूप में वे श्री दिगंबर जैन मुनि संघ प्रबंध समिति पार्श्वनाथ भवन के महामंत्री रहे। मैं उनके साथ कार्यों में सहयोग करता रहा था, मैंने उनके साथ संस्था से जुड़कर उनकी चर्या को देखते हुए अपने आप को उनके साथ जोड़ दिया था। जीवन पर्यंत उन्होंने अपनी सेवाएं मुनि संघ प्रबंध समिति को प्रदान की। व्यवहार में वे सदैव शांत चित्त रहते थे। व्यक्तिगत संवाद हो अथवा सभा में संबोधन करना हो, वह किसी बात पर उत्तेजित नहीं होते थे। आयु में तो मैं उनके पुत्र समान था पर मुझे हमेशा ‘जी’ कहकर बुलाते थे। वह रिश्तो की कीमत को भलीभांति समझते थे ।आज उन्हें स्मरण करते हुए, मुझे उनसे प्राप्त वात्सल्यता की अनुभूति हो रही है, बस मैं तो यही मानता हूं कि सामाजिक काम करने वालों को उनके जीवन चरित्र कोआत्मसात करना चाहिए।

वे सभी से बड़ी आत्मीयता से मिलते थे, उनके मन में कभी भी ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं रहा था। सभी से प्रेम, भाईचारा, अपनापन, रखना उनके व्यक्तित्व की विशेष पहचान थी। आज की दुनिया में श्री नेमीचंद्र जी गंगवाल सरीखा सरल, नरम, धर्म परायण तथा इतने बड़े दिल वाला इंसान मिलना भी किसी अजूबे से कम नहीं है। आदरणीय बाबूजी हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहे और अपनी जन्म भूमि एवं कर्मभूमि से लेकर पैतृक भूमि तक हर स्थान पर अपने सत् कर्मों की छाप छोड़ी। आज आदरणीय गंगवाल साहब हमारे मध्य नहीं हैं पर उनका बताया हुआ मार्ग, उनकी दी हुई प्रेरणा, हमें जीवन पर्यंत साधु संतों के साथ जुड़ा रखेगी। आदरणीय बाबूजी की नेतृत्व क्षमता, दूरदर्शिता जो उनको विशाल व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करती थी। पार्श्वनाथ भवन के रूप में एक वटवृक्ष की स्थापना, जो आज विशाल वृक्ष का रूप है। यह विशाल रूप सबको अपनी छाया और शीतलता बांट रहा है। उनका स्नेहिल व्यक्तित्व मुनि संघ प्रबंध समिति के सभी सदस्यों को मंत्रमुग्ध कर देता था। उनकी प्रेरणा और साहस की संजीवनी को प्राप्त कर हम अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होते रहे हैं।
अद्भुत व्यक्तित्व, लंबा कद, चौड़ा वक्षस्थल आंखें मुस्कानों की।
सरल ह्रदय में दृढतर बातें रहती मरदानों की।।
चले प्रगति के पथ पर गंगवाल जी,
परवाह नहीं की कभी प्राणों की।
और न चिंता की जीवन भर आंधी तूफानों की।
आदरणीय बाबू जी के लिए मैं यह भी कहना चाहूंगा–
परम शिरोमणि मुनि भक्त का हम स्मरण करते हैं, डिगे नहीं कभी आर्श मार्ग से वंदन हम करते हैं।
तन मन जोड़ा जिनवाणी से,हमें नई दिशा दिखलाई है। जीवन में कुछ कर दिखाने की मैने ने मन में ठानी है।
श्रद्धेय बाबूजी के कर्मभूमि जयपुर रही, पर अपने पैतृक गांव कडेल को उन्होंने कभी भी नहीं भुलाया, पार्श्वनाथ भवन जिनालय जीर्णोद्धार, धर्मशाला निर्माण, औषधालय सेवा, साधु संतों की सेवा सुश्रुशा आदि के लिए आप सदैव तत्पर रहे। आचार्य संघों के चतुर्मासो पर आपने उल्लेखनीय योगदान दिया। आपने जीवन में सभी तीर्थ क्षेत्रों की वंदना की थी।
मुनि संघ प्रबंध समिति के वर्तमान अध्यक्ष
श्री देव प्रकाश खंडाका उनके विषय में कहते हैं-
साधारण व्यक्तित्व के भीतर लिए असाधारण व्यक्तित्व ।
सीधी सरल सरस वाणी में उद्घाटित कर देते तत्व ।
गुरुवाणी को जनवाणी में इस प्रकार कह देते थे
बालक, वृद्ध, युवा नर नारी, सभी तो आत्मसात कर लेते थे
कैसा भी विषय हो आपसे हमेशा मिलता था नया प्रकाश ।
श्री गंगवाल जी सुंदर सुरभीत श्रेष्ठ सुमन है कहता है यह देव प्रकाश।
आदरणीय बाबूजी ने समाज के साथ-साथ अपने परिवार को दो पुत्र श्री राजेश गंगवाल एवं श्री राकेश गंगवाल के रूप में दो अनमोल रत्न दिए हैं, मैं जानता हूं, उनके दोनों रत्न अपने परिवार के साथ साथ समाज के लिए अनमोल साबित हुए हैं।
मुनि संघ प्रबंध समिति के वर्तमान मंत्री श्री ओम प्रकाश काला कहते हैं-
यह संसार एक वह उपवन है जिसमें खिलते हैं सुमन अनेक।
किसको छोटा बड़ा कहे, हम रखते है महत्व प्रत्येक ।
खुद जीवन भर महके और सभी को महकाया, मैं जानता हूं मेरे लिए तो बहुत ही अनमोल थे।
मुनि संघ प्रबंध समिति के संयुक्त मंत्री श्री रूपेंद्र छाबड़ा कहते हैं-
आदरणीय श्री गंगवाल जी के जीवन वृत्त पर मैं क्या कहूं, कैसे कहूं, क्या लिखूं, वह सूरज की तरह देदीप्यमान थे, और हम दीपक की तरह प्रज्वलित थे, कितने ही लोगों के बिखरे जीवन को उन्होंने संवार दिया था। वे सहज, सरल, स्पष्ट प्रवक्ता थे।
मुझे इस बात को कहने में गर्व महसूस होता है कि संयम- नियम पूर्वक धर्म मार्ग पर चलते हुए, कड़ेल ग्राम से जयपुर आकर आदरणीय बाबूजी ने ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय को आरंभ किया। आज यह व्यवसाय उनके दोनों पुत्र बखूबी संभाल रहे हैं।
एक बात का और स्मरण यहां कराना चाहूंगा, आदरणीय बाबूजी की प्रबल हार्दिक भावना थी, कि आचार्य भगवंत श्री सुनील सागर गुरुदेव ससंघ का जयपुर में चातुर्मास संपन्न हो।वे हमारे बीच नहीं रहे पर उनकी यह मनोकामना उनके पुत्र परिजन आदरणीय अम्मा जी पुत्रवधू सहित सभी ने मिलकर के आचार्य भगवन तथा पूरे संघ का मुनि संघ प्रबन्ध समिति के साथ जयपुर में चतुर्मास संपन्न कराया।
अंत में मैं रमेश गंगवाल यही कहना चाहूंगा
हो गए आंखों से ओझल किंतु आशीर्वाद आपका सदा है मेरे साथ।
बीत जाए चाहे कितने ही वर्ष प्रतिदिन प्रतिपल आपकी आएगी याद।
रमेश गंगवाल

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