ग्वालियर। ग्वालियर मध्य प्रदेश की पुण्य धरा पर पंडित टोडरमल स्मारक द्वारा आयोजित वीतराग विज्ञान शिक्षण प्रशिक्षण शिविर का 55 वां सोपान जिस उत्साह व कर्मठता से संपन्न हुआ उसकी मिसाल दुर्लभ है। आदरणीय छोटे दादा डाॅ. भारिल्ल जी की अनुपस्थिति में होने वाला यह पहला विशाल कार्यक्रम था जिस पर देशभर की जैन समाज की निगाहें टिकी थीं। जो हमारे अपने थे, वे तो सशंकित थे ही जिनकी गिद्ध दृष्टि हमेशा मुमुक्षुओं की गतिविधियों पर नुक्ता चीनी के लिए लगी रहती थी वे भी देखना चाहते थे कि डॉक्टर भारिल्ल के बाद अब क्या और कैसे होगा?
मैंने सर्वप्रथम 1970 का विदिशा का प्रशिक्षण शिविर देखा था। उसके बाद मैं भी प्रशिक्षण शिविर का विद्यार्थी रहा और इन शिवरों में ही बालबोध व वीतराग विज्ञान का प्रशिक्षण प्राप्त कर जैन धर्म का दृढ़ श्रद्धानी बना। फिर तो अपनी मातृभूमि चंदेरी को छोड़कर सदा के लिए यहां का हो गया। मैंने अनेक कार्यक्रमों को निकटता से देखा है और ग्वालियर भी तीन दिन रहकर जो अनुभव किया; मैं गर्व से कह सकता हूं कि आदरणीय भारिल्लजी ने जो सीख अपने विद्यार्थियों को दी वह अनुकरणीय व प्रशंसानीय है ।सभी पूर्व विद्यार्थियों का समर्पण भाव व टोडरमल स्मारक की युवा टीम जिस एक जुटता से शिविर की गौरव गरिमा बढ़ा रही थी वह अभिनंदन है।
इस शिविर के मध्य अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत् परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन रखा गया था। इस अधिवेशन को संपन्न कराने के लिए ही मेरा ग्वालियर आना हुआ।जिस विद्वत्परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को डॉ भारिल्ल सुशोभित कर रहे थे ; उनके महाप्रयाण के पश्चात् उसकी गौरव गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखना व उसे नित नयी ऊंचाई तक ले जाना महामंत्री के नाते मेरा उत्तरदायित्व है । अतः प्राणपण से जुट कर इसे संगठित और व्यवस्थित करने में ही अपनी शक्ति लगा रखी है। ग्वालियर में शिविर के मध्य जी आशातीत सफलता के साथ अधिवेशन तो संपन्न हुआ ही सभी विद्यार्थियों में संगठन से जुड़कर कुछ नया करने का भाव उनके चेहरों पर स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। अधिवेशन के पश्चात् शिविर के मध्य ही मध्यप्रदेश प्रदेश एवं राजस्थान की कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण भी संपन्न हो गया। शिविर की आवास व भोजन व्यवस्था अति उत्तम थी बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया । भारिल्ल जी के दोनों सुपुत्र जी जान से शिविर की व्यवस्थाओं में लगे हुए थे । सभी का सहयोग और अति उत्साह ने शिविर की गौरव गरिमा में चांद चार चांद लगा दिए। लगा ही नहीं कि कहीं कोई अभाव भासित हुआ हो।दादा की सीख जो चल रहा है वह इसी प्रकार चलता रहे इसी में हमारी सफलता है। निश्चित ही शिविर का संयोजन जिस ढंग से हुआ वह अनुकरणीय है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का समर्पण देखते ही बनता था। जिन्होंने भी प्रशिक्षण प्राप्त किया वह इनका हो गया इसमें संदेह नहीं।
कार्यक्रम के मध्य गोपाचल पर्वत के दर्शनार्थ भाई डा.अरविंद जी के साथ जाना हुआ। वहां क्षेत्र के महामंत्री श्री अजित बरैया जी से मुलाकात हो गई। वे हमारे बहुत पुराने मित्र थे। जब भी ग्वालियर जाना हुआ गोपाचल अवश्य गया और वहां अक्सर उनसे मिलना होता ही था। क्षेत्र के प्रति उनका पूर्ण समर्पण व निष्ठा से क्षेत्र ने आशातीत प्रगति की है। जो काया कल्प विगत कुछ वर्षो में हुआ है उसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। पूरा पर्वत हरियाली से ढक गया है। असामाजिक तत्वों का विचरण ना के बराबर है। आकर्षक मुख्यद्वार व अन्य तीन द्वारों का निर्माण व सडक बन चुकी है। परकोटे की दीवार बन जाने से क्षेत्र सुरक्षित हो गया है। तलहटी में भव्य जिनालय का निर्माण,फूलों से आच्छादित क्षेत्र मन मोह लेता है। इसके लिए भाई अजित बरैया की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। आपने क्षेत्र पर हम दोनों के स्वागत सम्मान में कोई कसर नहीं छोडी।ऐसा लगा मानो दो बिछडे हुए भाई वर्षों बाद मिले हों।आत्मीयता के लिए बरैया जी का आभार। महाकवि रइधू की यह साधना स्थली एवं वहां विराजित भ.पार्श्वनाथ की विशाल पद्मासन प्रतिमा हर आगंतुक का मनमोह लेती है। सभी को एक बार इस क्षेत्र का दर्शन अवश्य करना चाहिए।
डा.अखिल बंसल