भगवान का नाम सुमिरन करने से मिटती आत्मा की भूख, रोज करों भजन
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। कलिकाल में इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है। जब जागे तभी सवेरा है इसलिए अब तक नहीं जुड़े तो तुरन्त प्रभु भक्ति के मार्ग से जुड़ जाए। जीवन वहीं श्रेष्ठ है जो प्रभु के काम आए। शरीर का भोजन अन्न तो आत्मा का भोजन भजन है। आत्मा को पुष्ट करने के लिए भजन जरूरी है। आत्मा की भूख भगवान का नाम सुमिरन करने से मिटती है इसलिए प्रतिदिन भजन अवश्य करना चाहिए। ये बात शहर के देवरिया बालाजी रोड स्थित आरके आरसी माहेश्वरी भवन में सोमवार सुबह काष्ट परिवार की ओर से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव का आगाज होने के अवसर पर दूसरे दिन व्यास पीठ से कथा वाचन करते हुए अलवर से आए स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने कही। दूसरे दिन कपिल भगवान चरित्र एवं धु्रव चरित्र प्रसंग का वाचन किया गया। उन्होंने कहा कि सेवा हमेशा परमार्थी बन कर करनी चाहिए। जिसके जीवन में परमार्थ आ गया उसका स्वार्थ स्वतः सिद्ध हो जाता है। स्वार्थभाव से कार्य करने वालों की स्थिति माया मिली न राम वाली हो जाती है। स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने कहा कि जीवन में लक्ष्य निर्धारित करके कार्य करना चाहिए और जब तक लक्ष्य हासिल न हो जाए किसी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहिए भले कोई कुछ भी कहता रहे। प्रबल वहीं होता है जो निर्बल को सहयोग करे। दान करने से कलयुग में जीव को शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि हम जैसा अन्न खाते वैसा हमारा मन होता और जैसा पानी पीते वैसी हमारी वाणी हो जाती है। हमेशा अपनी संस्कृति के अनुरूप हमारा जीवन आचरण होना चाहिए। घुंघट जो कभी भारतीय संस्कृति की पहचान थी वह आज सात संमुदर पार चला गया और संस्कृति में गिरावट आने से फटे हुए कपड़े ब्राण्डेड माने जाने लगे है। अतिथियों का स्वागत आयोजक परिवार के कैलाशचंद्र काष्ट, कमल काष्ट आदि ने किया। कथा के अंत में व्यास पीठ की आरती करने वालों में आयोजक काष्ट परिवार के अभिषेक, समीर, शुभम, शिवम काष्ट आदि शामिल थे। श्रीमद् भागवत कथा का वाचन प्रतिदिन सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक होगा। कथा के तीसरे दिन 14 जून को भरतोपाख्यान एवं प्रहलाद चरित्र प्रसंग का वाचन होगा।
सजीव झांकियों से माहौल हुआ भक्ति से ओतप्रोत
कथा आयोजन के दौरान कपिल भगवान चरित्र एवं धु्रव चरित्र प्रसंग से जुड़ी सजीव झांकियों की प्रस्तुति ने कथा श्रवण करने आए भक्तों का मन मोह लिया और पूरा माहौल भक्तिरस में डूबा नजर आया। पिता की गोद से उतार दिए जाने के बाद बालक ध्रुव को भगवान विष्णु द्वारा अपनी गोद में बिठाने और कपिल भगवान के अवतार की झांकियां प्रदर्शित की गई। कपिल भगवान के प्रतिस्वरूप की आरती भी उतारी गई। इस दौरान भगवान के जयकारे गूंजते रहे और श्रोता आंनदभाव से ओतप्रोत दिखे।
प्रभु से कुछ नहीं चाहने वाला सर्वोतम भक्त
स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने कहा कि सर्वोतम भक्त वह होता है जिसे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए। जो मांगते है उसे कोई नहीे बुलाना चाहते और जो नहीं मांगता उसे सभी बुलाना चाहते है। केवल हमेशा मांगते रहने की बजाय प्रभु ने जो दिया है कभी उसके लिए शुक्रिया भी अदा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भीष्म पितामह, महात्मा विदुर उस श्रेणी के भक्त रहे जिन्होंने कभी प्रभु से कुछ नहीं मांगा। सुख में तो सब साथी होते है दुःख में केवल परमात्मा ही साथी होता है। संसार रूलाने वाला है आंसू पूछने वाला केवल भगवान सांवरिया सरकार है। हम भगवान को मानते है लेकिन भगवान की नहीं मानते।
तुने आंगन नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान
श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में दूसरे दिन भी शहर के विभिन्न क्षेत्रों से पहुचे सैकड़ो श्रद्धालु चार घंटे तक संगीतमय भक्तिरस में डूबकियां लगाते रहे। श्रीमद् भागवत कथा वाचन के दौरान बीच-बीच में भजनों की गंगा प्रवाहित होती रही। व्यास पीठ से स्वामी सुदर्शनाचार्यजी महाराज ने कथा के दौरान तुने आंगने नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान, मुक्ति का कोई जतन कर ले रोज थोड़ा-थोड़ा हरि का भजन कर ले, हमे चिंता नहीं हमारी उन्हें चिंता है हमारी, कभी आएगा मेरा सांवरिया मेरे आंसू पूछकर मुझे गले लगाएगा, नाथ में थारो ही थारो आदि भजनों की ऐसी रसधारा प्रवाहित की श्रद्धालु स्वयं को थिरकने से नहीं रोक पाए। उनके कोई भजन शुरू करते ही कई श्रद्धालु अपनी जगह खड़े होकर नृत्य करने लगते।