उदयपुर। आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज उदयपुर के संतोष नगर में संघ सहित विराजित है प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के 151 वे अवतरण वर्ष पर प्रवचन सभा गुणानुवाद में बताया कि 1008 श्री वासुपूज्य भगवान के गर्भ कल्याणक दिवस पर श्री सातगौड़ा जी का सन 1872 में जन्म हुआ। उन्होंने कहा जिस प्रकार एक उद्योगपति व्यापार में भौतिक साधनों का संचय करता है,उसी प्रकार आचार्य श्री शांति सागर जी भी आध्यात्मिक उद्यमी बन कर जीवन गृहस्थ अवस्था से मुनि अवस्था तक विषय भोगों के प्रति अनासक्त रह कर आत्मा की उन्नति का उद्यम किया। वर्तमान की साधु परंपरा आपकी देन उपलब्धि है।ब्रह्मचारी गजू भैया राजेश पंचोलिया के अनुसार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने कृतज्ञता भाव से गुरु का स्मरण कर अनेक प्रसंग में बताया कि गृहस्थ अवस्था में आपने 18 वर्ष में बिस्तर का त्याग कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया 32 वर्ष की उम्र में घी और तेल का आजीवन त्याग तथा एक समय भोजन का नियम लिया।माता पिता की समाधि के बाद आपने 43 वर्ष की उम्र मे सन 1915 में क्षुल्लक तथा सन 1920 में मुनि दीक्षा ली। आपको सन1924 में आचार्य पद से अलंकृत किया गया।आपने 40 वर्ष के साधु जीवन में 9938 उपवास किए। आपने 88 दीक्षाए दी। जैन मंदिरों धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए 1105 दिनो तक अन्न आहार नही लिया। जिनवाणी के संरक्षण के लिए कुछ ग्रंथो को तांबे के पत्र पर अंकित कराया।आपकी आगम अनुरूप चर्या के कारण आपके दीक्षा गुरु श्री देवेन्द्र कीर्ति मुनिराज ने आपसे पुनः मुनि दीक्षा ली आपने गुरु को संयम व्रतो में स्थिर किया। इस कारण आपको गुरुणा गुरु कहा जाता है।
आपके साधु जीवन में अनेक अनेक उपसर्ग आए जिसमे सिंह,सर्प,मकोड़े, चींटी, मानव उपसर्ग अनेक हुए। रात्रि भर सिंह का सामने बैठना,3 घंटे से अधिक शरीर से सर्प का लिपटे रहना आदि अनेक प्रसंग उपदेश में बताए। आहार में भी अनेक बाधा श्रावको की भूल का भी उल्लेख किया। आचार्य श्री शांति सागर जी की समाधि सन 1955 में हुई। सन 2020 में आचार्य श्री शांति सागर जी की मुनि दीक्षा को 100 वर्ष पूर्ण होने पर दीक्षा स्थली यरनाल में मुनि दीक्षा शताब्दी वर्ष आचार्य शिरोमणि श्री वर्धमान सागर जी सानिध्य में संपूर्ण देश में मनाया गया। पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि सन 2024 में आचार्य पदारोहण को 100 वर्ष के उपलक्ष्य मे शताब्दी महोत्सव संपूर्ण जगत में उदयपुर के माध्यम से गौरवशाली परंपरा अनुसार मनाए जाने की प्रेरणा दी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी