बिरसा मुंडा जी की बात अलग थी।
दुश्मनों (अंग्रेजों) के आगे,
उनकी बिसात अलग थी।
थर थर कांपा करते।
दुश्मन उनके आगे,
क़ौम के हकों के खातिर सदा,
उलगुलान उनका जारी था।
बंद जेलों में भी साहस,
सबसे भारी था।
जल, जंगल, जमीन की,
रक्षा खातिर भरी जवानी में,
ही शहीद हो गए।
हर एक युवा के मन में,
अमिट छाप छोड़ गए।
इतिहास के पन्नों में अंकित
उनका बलिदान हो गया।
जय जोहार, जय जोहार,
उद्घोष से संपूर्ण ब्रह्मांड हो गया।
डॉ. कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार