किसी भी विकासशील या विस्तारित अर्थव्यवस्था के लिए स्टील महत्वपूर्ण है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील निर्माता होने के अलावा, भारत में नैतिक तरीके से स्टील बनाने के लिए अच्छी स्थिति के साथ असीम सम्भावनाऐ है। भारत कार्बन उत्सर्जन के उन्मूलन के उद्देश्य तक पहुँचने के लिए समर्पित राष्ट्रों के बीच एक नेता के रूप में उभरा है क्योंकि हरित इस्पात का उत्पादन जारी है। भारत ने वर्ष 2021 में दुनिया में कच्चे इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और तैयार इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता उपभोक्ता बाजार हेतु चीन को पीछे छोड़ दिया जो कि देश के लिये अभूतपूर्व सफलता के आयाम के रूप में सम्पूर्ण विश्व में अपनी धाक जमा दी। भारत के भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), और बोकारो (झारखंड) महत्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र हैं। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात सहित देशों को स्टील के सामान का एक बड़ा निर्यातक है। 2030-31 तक, राष्ट्रीय इस्पात नीति, जिसे 2017 में पेश किया गया था, का लक्ष्य कच्चे इस्पात की क्षमता को 300 मिलियन टन (MT) तक बढ़ाना, 255 मीट्रिक टन का उत्पादन करना और प्रति व्यक्ति 158 किलोग्राम मजबूत तैयार स्टील का उपयोग करना है।
ग्रीन स्टील ब्रांड स्टील उद्योग में आमूलचूल परिवर्तन का कारण बनेगा। यह इस्पात के उत्पादन से कार्बन उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण प्रदूषण को कम करेगा। नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करते हुए ग्रीन स्टील बांड के उत्पादन से इस्पात के उत्पादन के लिए कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता कम होगी। इसके अतिरिक्त स्वच्छ और अधिक पर्यावरण के अनुकूल, ग्रीन स्टील ब्रांड।
इस्पात बनाने में डायरेक्ट रिडक्शन यूजिंग हाइड्रोजन (DR-H) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ब्लास्ट फर्नेस का उपयोग किये बिना आयरन ऑक्साइड (Fe2O3) से धात्विक आयरन (Fe) प्राप्त करने के लिये हाइड्रोजन गैस का उपयोग किया जाता है। इस पद्धति को इस्पात उत्पादन के लिये “हरित मार्ग (Green Route ) ” के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पारंपरिक इस्पात विनिर्माण/ उत्पादन प्रक्रियाओं से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर देती है। डायरेक्ट रिडक्शन प्रक्रिया में आमतौर पर 600 से 800 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर एक रिएक्टर वेसल में हाइड्रोजन गैस और लौह अयस्क के पेल्लेट्स को मिलाना शामिल होता है। हाइड्रोजन आयरन ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके धात्विक लोहा और जलवाष्प बनाता है, जैसा कि निम्नलिखित रासायनिक समीकरण में दिखाया गया है।
भारत भी अब ग्रीन इस्पात (जीवाश्म ईंधन का उपयोग किये बिना इस्पात का निर्माण) को बढ़ावा देकर इस्पात उद्योगों में CO2 को कम करना चाहता है। यह कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन-गहन निर्माण के बजाय हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण या विद्युत जैसे निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जा सकता है। यह अंततः GHG उत्सर्जन को कम करता है, इसके साथ ही यह प्रतिपादित सिद्धांत लागत में कटौती को भी सुनिश्चित करता है और इस्पात की गुणवत्ता में अप्रत्याशित सुधार करता है। इसके अतिरिक्त लौह उत्पाद की गुणवत्ता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता एवं प्रक्रिया नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
अवसंरचना आवश्यकताएँ: इस प्रक्रिया के लिये हाइड्रोजन गैस के भंडारण और संचालन सुविधाओं की प्रखर आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुये ही भारत सरकार एक नवीन बुनियादी ढाँचे की सृजनात्मकता की और अग्रसर है । इस को प्रतिबिंबित करता है राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, जो कि हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक बनाने हेतु एक बड़े कदम के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। देश में हाइड्रोजन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास और तैनाती को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा केंद्रीय बजट 2021-22 में भी राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHEM) की घोषणा की गई थी।
सरकारों और निजी क्षेत्र को लागत कम करने तथा हाइड्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिये हरित हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना होगा । इस्पात उत्पादकों, हाइड्रोजन उत्पादकों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग से तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने तथा आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
लेखक
प्रो. के. बी. शर्मा
प्राचार्य, एस एस जैन सुबोध पी. जी. स्वायत्तशासी महाविद्यालय, जयपुर।