Sunday, November 24, 2024

ये महकते दरख़्त

नियति की परिपाटी फिर से,
दोहराई जा रही थी।
पुश्तैनी संपत्ति फिर से,
बंटबाई जा रही थी ।
भाई-भाइयों की उलझनें,
सुलझाई जा रही थी।
भोजाइयों के हिस्से में,
बेश कीमती उपहार आए।
भाई-भतीजो के हाथों में,
जमीनों के पट्टे पकड़ाए ।
बेटियों की ओर देखते हुए,
जज साहब मुस्कुराए।
ओर बोले तुम्हारे हिस्से में,
आखिर क्या नाम किया जाएं।
बुआ-भतीजी ने एक दूसरे की
तरफ देखा और बोली ।
साहब बस हमारी बचपन वाली,
यादें सदैव जीवित रखी जाएं।
हमारे दादा,परदादा की
अमूल्य धरोहर प्रकृति
सदैव ऐसे ही खिलखिलाएं।
पुश्तैनी संपत्ति के चारों ओर
ये महकते दरख़्त ना कटवाएं जाएं।
चाहे वंश मेरा तरक्की की लाख
सीढ़ियां चढ़ जाएं।
जज साहब फिर से मुस्कुराए
और लिख दिया।
प्रकृति को सजो कर रख देने
का संदेश अगली पीढ़ी के लिए।
जज साहब वकील से बोले
सभी बहन बेटियों के
हस्ताक्षर करवा लिए जाएं।

डॉ.कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार

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