Saturday, September 21, 2024

पर्यावरण विरासत का विकृत मुखौटा

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

पर्यावरण हमारी पृथ्वी पर जीवन के निर्वाह के लिए प्रकृति का उपहार है। जीवित रहने के लिए हम जिन तत्वों का उपयोग करते हैं, वे पर्यावरण की श्रेणी में आते हैं, जैसे हवा, पानी, प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल और अन्य प्राकृतिक तत्व। हमारा पर्यावरण पृथ्वी पर स्वस्थ जीवन के अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दीर्घायु और स्वस्थ मानव जीवन के लिए यह आवश्यक है कि पर्यावरण के इन सभी पांच घटकों को प्रदूषित न करते हुये भविष्य के लिए संरक्षित किया जाए। फिर भी मानव निर्मित तकनीक और वर्तमान युग के आधुनिकीकरण के कारण हमारा पर्यावरण दिन-ब-दिन नष्ट होता जा रहा है। इसलिए आज हम प्रतिकूल पर्यावरण प्रदूषण की विकट समस्या से प्रभावित हैं। शहरीकरण, औद्योगीकरण और प्रकृति के प्रति हमारे व्यवहार के कारण पर्यावरण प्रदूषण दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है और इसका समाधान पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रत्येक नागरिक के निरंतर प्रयासों से ही संभव है।

सामान्य अर्थ में, हमारा पर्यावरण आवरण एक जीवन जैसी इकाई है जो हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के तथ्यों से बना है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती है और इसके द्वारा संपादित होती है। मनुष्य द्वारा की जाने वाली सभी गतिविधियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार एक जीव और उसके पर्यावरण के बीच एक संबंध भी है, जो अन्योन्याश्रित है। मनुष्य, पशु, वनस्पति, पेड़-पौधे, मौसम, जलवायु सभी पर्यावरण में समाहित हैं। पर्यावरण न केवल जलवायु में संतुलन बनाए रखता है बल्कि जीवन के लिए आवश्यक सभी चीजें भी प्रदान करता है। पारिस्थितिक तंत्र की हरी-भरी हरियाली की बदौलत हम शुद्ध हवा में सांस ले सकते हैं और प्रदूषण भी कम होता है। पेड़ों, प्राकृतिक वनस्पतियों, जल, प्राकृतिक संसाधनों, बिजली और अन्य संसाधनों की रक्षा करके हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। पर्यावरण क्षरण और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए हमें सभी संभव उपायों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।

प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो जल, थल और वायु तीनों के लिए हानिकारक है। इससे निकलने वाली हानिकारक गैस पर्यावरण को बहुत बुरी तरह प्रभावित करती है। प्रकृति के साथ-साथ इसका हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आज के समय में प्लास्टिक का उपयोग भारी मात्रा में हो रहा है। हमें प्लास्टिक का उपयोग कम करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बिगड़ता पर्यावरण पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को रोकना एक बड़ी चुनौती है। हर साल कई लाख मीट्रिक टन सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जो मिट्टी में नहीं घुलता और बायोडिग्रेडेबल होता है। ऐसा प्लास्टिक, जिसे हम सिर्फ एक बार इस्तेमाल करते हैं, सिंगल यूज प्लास्टिक कहलाता है। सरल भाषा में हम इसे डिस्पोजेबल प्लास्टिक कहते हैं। इसलिए दुनिया भर के देश सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए कठोर रणनीति अपना रहे हैं ताकि सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाली बीमारियों और प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।

तब से प्लास्टिक हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली लगभग सभी चीजों में प्लास्टिक होता है। अगर हम अपने किचन की बात करें तो प्लास्टिक के बिना आज के किचन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. किचन में इस्तेमाल होने वाले बर्तन हों या उपकरण, प्लास्टिक किसी न किसी रूप में मौजूद है। लेकिन प्लास्टिक को दो प्रकार में बांटा गया है। प्लास्टिक जिसे आप बार-बार इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि आपके किचन में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के बर्तन या उपकरण। दूसरे प्रकार का प्लास्टिक वह होता है जिसे केवल एक बार उपयोग करके फेंक दिया जाता है। जैसे बाजार से सब्जी और किराने का सामान घर लाने के लिए इस्तेमाल होने वाले दूध के पाउच, पॉलिथीन की थैलियां या पन्नी, चिप्स, बिस्कुट आदि के पैकेट या स्ट्रॉ, कप, चम्मच और पेय पदार्थों की बोतलें। यह सब प्लास्टिक है जिसका पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसे एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है। एक अनुमान के आधार पर साठ प्रतिशत प्लास्टिक को रिसाइकल नहीं किया जा सकता है, इसलिए यह कचरा हजारों सालों तक बना रहता है। इससे हमारा पीने का पानी दूषित हो जाता है। इसमें कैंसर जैसी घातक बीमारी फैलाने वाले तत्व पाए जाते हैं। यह प्लास्टिक समुद्र में जाकर वहां के जानवरों के लिए घातक बन जाता है और समुद्री भोजन करते समय यह जहरीला प्लास्टिक इंसानों और जानवरों के शरीर में प्रवेश कर जाता है और पाचन तंत्र में इसे पचाने की क्षमता कम होने के कारण यह घातक भी हो जाता है। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि सड़कों पर घूमने वाले मवेशी खासकर गाय इस प्लास्टिक को खा जाते हैं और इसके दुष्प्रभावों के कारण हर साल सिंगल यूज प्लास्टिक के कारण हर साल कितनी ही निरीह गायों की जान चली जाती है।

दरअसल, मौजूदा समय में देश में प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों के सही सर्टिफिकेशन के लिए कोई कानूनी और उचित एजेंसी नहीं है। ऐसे में कंपनियां अपनी सुविधा के अनुसार मनमाने ढंग से प्लास्टिक का उत्पादन करती हैं। इसलिए जानकारों का कहना है कि अगर ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ पर पूरी तरह से रोक लगानी है तो इन कंपनियों के उत्पादों की निगरानी और प्रमाणन की समुचित व्यवस्था करनी होगी. कचरा प्रबंधन के साथ भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक ग्रेडिंग है, जिससे कूड़े में प्लास्टिक की वास्तविक मात्रा का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। प्लास्टिक कचरे का सही आकलन नहीं होने के कारण इसके निस्तारण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। साथ ही हमें प्लास्टिक के कुछ इको-फ्रेंडली और किफायती विकल्प भी खोजने होंगे, क्योंकि अगर कोई किफायती विकल्प नहीं होगा तो लोग इसका इस्तेमाल करने को मजबूर होंगे। हालांकि किसी भी कानून या अभियान की सफलता उसमें आम जनता की भागीदारी पर निर्भर करती है। इसके उद्देश्यों को तय करना हम पर और आप पर निर्भर करता है कि हम अपनी धरती को कितना खूबसूरत और सुरक्षित बनाना चाहते हैं।

स्वच्छ, हरा-भरा पर्यावरण हमारे यथार्थ जीवन की बुनियादी आवश्यकता बनता जा रहा है। दूषित हवा, पानी और जमीन के रूप में पर्यावरण प्रदूषण से जीवन को नुकसान हुआ है। सांस न लेने योग्य वायु गुणवत्ता, पीने योग्य पानी और प्रदूषित इलाके के परिणामस्वरूप कई बीमारियाँ हैं। यदि दुनिया को जीवित रहना है, तो प्रदूषण से निपटना और रोकना होगा। स्वच्छ हवा और भूमि की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने पर ही स्वस्थ जीवन जीना संभव है। एक अप्रदूषित, स्वच्छ वातावरण जीवन के बेहतर स्तर का सूचकांक होता है।

लेखक
प्रो. के. बी. शर्मा
प्राचार्य, एस एस जैन सुबोध पी. जी. स्वायत्तशासी महाविद्यालय, जयपुर।

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