पूजा के अष्टद्रव्य में प्रथम भगवान के श्री चरणों में जल अर्पित करके हमें जन्म मरण से मुक्त होने की भावना रखनी चाहिए; जल को ज्ञान का प्रतीक माना गया है तथा अज्ञानता को जन्म मरण का कारण माना गया है, इसलिए ज्ञानरूपी जल हमारे पापों तथा दुखों की शांति, तथा जन्म मरण जरा का विनाश कर मुक्त कराने में सहायक बनता है।
जल हमें यह संदेश भी देता है कि हम उस ही की तरह से सभी के साथ घुलमिल कर जीना सीखें। जल की तरह तरल और निर्मल होना भी सीखें।
फिर चंदन अर्पित करते हुए हमारी भावना यह होनी चाहिए कि हमारा भव- आताप मिटे, चंदन शीतलता का प्रतीक है भव भव की तपन का कारण हमारी आत्मदर्शन से विमुखता है अतः भगवान के श्री चरणों में चंदन अर्पित करने से सुगंधित शरीर की प्राप्ति होती है संसार संताप का विनाश होता है
चंदन हमें यह भी संदेश देता है कि हम उस की तरह सभी के प्रति शीतलता और सौहार्द से भरकर जिए सभी की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानकर सभी को सहानुभूति दें।
अब श्री चरणों में अक्षत का अर्पण, हम अखंड अविनाशी सुख पाने की भावना से करें। इस लोक में संपत्ति की प्राप्ति हो, तथा अक्षय पद जो परमात्मा को प्राप्त हुआ है वह हमें भी प्राप्त हो ।अक्षत की अखंडता और उज्जवलता जीवन में अविनश्वर और उज्जवल सुख का अहसास कराए।
पुष्प अर्पित करते समय हमें कामवासना से मुक्त होने की भावना रखनी चाहिए पुष्प को कामवासना का प्रतीक माना गया है तीर्थंकर देव के श्री चरणों में पुष्प अर्पण करने से स्वर्ग की मंदारमाला की प्राप्ति होती है तथा काम एवं इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है भगवान जिनेंद्र के श्री चरणों में पुष्प चढ़ाना स्वयं को मोह मुक्त करने का प्रयास है।
पश्चात नैवेद्य अर्पित करते हुए हमें यह भावना रखनी चाहिए कि हमारी भव भव की भूख मिट जाए नैवेद्य अर्पण करने से लोकिकता में लक्ष्मी की प्राप्ति होती है क्षुधा रोग का विनाश होता है। नैवेद्य हमें यह संदेश भी देता है -खाद्य पदार्थों के प्रति आसक्ति कम करना तथा उसे योग्य पात्र को दे देना ही श्रेयस्कर है।
जिनेन्द्र देव के श्री चरणों में दीप प्रज्वलित कर अर्पण करें, दीप जहां भी रहे वहीं रोशनी प्रस्फुटित हो, हमारे शरीर रूपी माटी के दिये में प्राणी मात्र के प्रति स्नेह कभी कम ना हो और भगवान के नाम की लौ निरंतर जलती रहे। ऐसे अद्वितीय दीप को पाने की भावना रखें ,जो बिना बाती, तेल और धुएं के भी सारे जगत को प्रकाशित करता है।
अग्नि में धूप नीक्षेपण करने से उत्कृष्ट सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तथा आठों कर्मों का विनाश होता है। धूप से हमें यह संदेश मिलता है कि धूप की सुगंध जैसे अमीर गरीब या छोटे बड़े का भेद नहीं करती । और सभी के पास समान भाव से पहुंचती है ,ऐसे ही हम भी अपने जीवन में भेदभाव छोड़कर सर्व प्रेम और सर्व मैत्री की सुगंध फैलाते रहे।
तीर्थंकर देव के सम्मुख श्री चरणों में फल अर्पण करें, फल इस भावना के साथ अर्पित करें कि हमें उत्तम पद की प्राप्ति होगी तथा मोक्ष फल की प्राप्ति होगी ।संसार में सिवाय कर्म फल भोगने के हम कुछ और नहीं कर पा रहे हैं। अतः अपने अनंत बल को हम प्रकट करें ,और मोक्ष फल को प्राप्त करें ।फल हमें यह संदेश देता है कि सांसारिक फल की आकांक्षा व्यर्थ है। हम जो भी करें अच्छा ही करें अनासक्त भाव से कर्तव्य मानकर करें कर्तव्य के अहंकार से मुक्त रहें।
अष्ट द्रव्यों की संपूर्णता ही अर्घ्य है। अर्घ्य का अर्थ मूल्यवान भी होता है, अर्घ्य अर्पित करके हमारी भावना अनर्घ्य यानी अमूल्य पद को पाने की रहे। आत्म उपलब्धि ही अमूल्य है ,वही हमारा प्राप्तव्य है । उसे ही पाने के लिए हमारे सारे प्रयास हो। अर्घ्य से यह संदेश मिलता है ,कि जिन चीजों को हमने मूल्य दिया है, मूल्यवान माना है ,वास्तव में वे सभी शाश्वत और मूल्यवान नहीं है। केवल अमूल्य पद की प्राप्ति हमें हो यही भावना रहनी चाहिए।
हवन की महत्वता
हवन सामग्री में दशांग धूप, लवंग, चंदन, पंचमेवा ,कपूर, घी ,शक्कर तथा विभिन्न प्रकार की काष्ठ समिधा, आदि के होने से प्रदूषण समाप्त होकर पर्यावरण शुद्ध होता है ।शांति मिलती है। क्योंकि हवन के पश्चात किये हवन से कार्बन डाइऑक्साइड गैस नहीं निकलती है। बल्कि शुद्ध सुगंधित वायु मिलती है पूजा के आठ द्रव्यों के भिन्न भिन्न प्रयोजन व लक्षण होते हैं इसीलिए वे सभी सार्थक हैं यह किसी भी रूप में व्यर्थ नहीं है। आत्मिक और आध्यात्मिक शुद्ध भाव पूर्वक पूजन से लौकिक प्रयोजन, और अलौकिक प्रयोजन ,दोनों प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
रमेश गंगवाल