कल हमारे डॉक्टर्स की टीम के साथ सिजेरियन सेक्शन चैप्टर शुरू हुआ था उसे ही आज आगे बढ़ाते हैं। टिपण्णी में एक जिज्ञासा आई थी कि जब इतना सेफ और आसान ऑपरेशन है तो नॉर्मल डिलीवरी के दर्द से बचने के लिए सिजेरियन सेक्शन में क्या बुराई है?
मैने वेटेरिनरी सर्जरी के सैकड़ों सिजेरियन सेक्शन ऑपरेशन देखे हैं।
यह सोच गलत है कि सिजेरियन सेक्शन छोटा ऑपरेशन है। आजकल इतनी ज्यादा संख्या में सफलतापूर्वक होने का यह मतलब नहीं हुआ कि ऑपरेशन छोटा मोटा है।
मेजर सर्जरी है जिसमें पेट पर बड़ा सा चीरा लगता है फिर स्किन के नीचे के टिश्यू कटते हैं इसके बाद मांशपेशियां कटती हैं। अब जाकर बच्चेदानी एक्सपोज होता है। उसमें भी बड़ा सा चीरा लगा बच्चा हाथ से बाहर निकाल लिया जाता है। ऑपरेशन के दौरान क्या गड़बड़ हो सकती है इस पर नहीं जाता हूं। काटना आसान है पर अभी सबको अलग अलग सिलाई कर बंद भी करना है। बच्चेदानी के अलग सुचर लगा बंद होगा। मांसपेशियों की अलग सिलाई होगी और अंत में त्वचा की अलग जो बाहर से दिखाई देगा। इतने लेयर में कटने और सिलने में हर समय इन्फेक्शन की संभावना रहती है।
जहां जहां कटा वहां सामान्य टिश्यू नहीं आते। हीलिंग फाइबरस कनेक्टिव टिश्यू से होती है जिसे स्कार भी कह सकते हैं। त्वचा का स्कार बाहर से दिखता है अंदर भी वैसा ही बनता है पर दिखता नहीं।
यही कारण है कि सिजेरियन सेक्शन से दो तीन से ज्यादा बच्चे में खतरा बढ़ जाता है। दूसरा ऑपरेशन भी पहला से ज्यादा जटिल होता है। बच्चेदानी में नॉर्मल टिश्यू के जगह स्कार हैं, जिनमें इलास्टिसिटी नहीं। बच्चेदानी को प्रेगनेंसी में बढ़ कर बड़ा होना पड़ता है। स्कार टिश्यू ज्यादा होने से खतरा होता है।
अब उत्तर लंबा हो जाएगा। दोनों की तुलना पर आते हैं।
सिजेरियन सेक्शन जच्चा बच्चा की जान बचाने के लिए वरदान साबित हुआ है। कई प्रेगनेंसी में यह अपरिहार्य भी है।
सिजेरियन सेक्शन नहीं होगा तो बच्चा, मां या दोनों की मौत हो जाएगी। जब यह तकनीक नहीं आई थी तो बच्चे पैदा करना खतरे का काम था और बादशाहों की बेगम भी इस प्रक्रिया में मृत्यु को प्राप्त हुईं। बहुत सी परिस्थितियों में यह वरदान है। इसके बिना जान नहीं बचेगी। एक इसका छोटा सा फायदा यह भी है कि कुछ हद तक यह पिशाब पर नियंत्रण ना रह पाना वाली स्थिति से बचाव में सहायक हो सकता है। नॉर्मल डिलीवरी में दर्द की वजह से यह स्थिति आने की संभावना ज्यादा है।
प्रश्न यह है कि अगर नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है तब भी सिजेरियन सेक्शन चुनने में बुराई क्या है?
मेरा मानना है कि नॉर्मल डिलीवरी का विकल्प चुनना बेहतर है। हॉस्पिटल से एक दो दिन में छोड़ने का मतलब यह नहीं कि एक दो दिन में रिकवरी हो गई। जैसा मैने लिखा कि बड़ा ऑपरेशन है और पूर्ण रिकवरी में कई सप्ताह से महीनों लग सकते हैं। ऑपरेशन से जुड़ी कोई छोटी सी परेशानी वर्षों रह सकती है जैसे जहां चीरा लगाया गया था वहां इरीटेशन होते रहना।
सिजेरियन सेक्शन में आपको ज्यादा दिन हॉस्पिटल में रुकने की संभावना है। ब्रेस्टफीडिंग में भी विलंब की संभावना बढ़ जाती है। जच्चा और बच्चा को फिर से हॉस्पिटल आना पड़े इसकी संभावना भी ज्यादा होने की आंकड़े गवाही देते हैं।
सिजेरियन महंगा भी है। ब्लड लॉस और ब्लड क्लॉट की संभावना हैं। जहां चीरा लगा वहां कई दिन दर्द बना रहता है। यह सही है कि कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं जहां सिजेरियन से ही जान बचती है, नॉर्मल में मौत हो जाती परंतु यह भी सच है कि रक्तस्राव, क्लोट से खून का बहाव रुकने (थ्रोंबोसिस) , इन्फेक्शन से सेप्सिस होने और एम्नायोटिक फ्लूइड से थ्रोंबोसिस होने की संभावना के कारण सिजेरियन ऑपरेशन में नॉर्मल से पांच गुना ज्यादा मौतें होती हैं।
सिजेरियन सेक्शन से पेसेन्टा से जुड़ी परेशानियां, बच्चेदानी के फट जाने जैसी जानलेवा समस्याएं अगली प्रेगनेंसी में बढ़ जाती हैं। पहला अगर सिजेरियन सेक्शन हुआ है तो अगले प्रेगनेंसीज में भी नॉर्मल होने की संभावना कम हो जाती है। पेट की मांसपेशियां हमेशा के लिए कमजोर हो जाती है।
बिना जरूरत सिजेरियन सेक्शन से बच्चे को भी खतरा होने की ही संभावना ज्यादा है।
नॉर्मल वे डिलीवरी में बच्चा जब वेजायना से मुश्किल से पार होता है तो वहां मौजूद कुछ जीवाणुओं से उसमें उनके प्रति इम्यूनिटी आ जाती है। नॉर्मल डिलीवरी से हुए बच्चे में वैसे भी अस्थमा, कुछ स्किन एलर्जी, ग्लूटेन एलर्जी आदि के लिए ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता होती है। स्टिल बर्थ (मृत बच्चे के जन्म) की संभावना भी सिजेरियन सेक्शन में ज्यादा है। नॉर्मल डिलिवरी का एक और फायदा यह भी है की मां और बच्चे का मिलन ज्यादा जल्दी हो पाता है।
उत्तर अभी ही इतना लंबा हो गया पर पिछले उत्तर में मैने पाया कि यहां पर ज्यादा सिजेरियन वाले ही पाठक हैं इसलिए बिना कुछ फायदा बताए छोड़ दिया तो उन्हें निराशा होगी। लिख ही देता हूं।
नॉर्मल डिलीवरी में बच्चे के जन्म की प्रक्रिया लंबी और दर्द भरी है। मां में पर्याप्त शारीरिक और मानसिक मजबूती होनी चाहिए।
नॉर्मल डिलीवरी में वेजायना इतना ज्यादा स्ट्रेच होता है कि स्थाई इंजरी हो सकती है। कई बार एपिसियोटॉमी करनी ही पड़ती है और टांके लग ही जाते हैं। ओवर स्ट्रेचिंग से यूरीन और स्टूल पर नियंत्रण खत्म हो सकता है जो कभी कभी जीवन भर भी रह सकता है। फिर भी मेरा मानना है कि दोनों विकल्प संभव हो तो नॉर्मल का विकल्प चुनना ही सही है।
डाॅ. पीयूष त्रिवेदी, एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ