Sunday, November 24, 2024

अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के प्रवचन से…..

हमारी सोच और दृष्टिकोण..
आधे, अधूरे और अधमरे जीवन को, पुरा जीवन्त कर सकते है..!

एक रूप लावण्य से सजरी सवरी कन्या का मृत शरीर मरघट में पड़ा था। वहाँ से नगर का धनपति निकलता है, रूप सी कन्या के मृत शरीर को देखकर बहुत अफसोस करता है, कहता है – ये कन्या जीवित होती तो अपनी पत्नी बनाकर भोग भोगता। कुछ समय बाद वहीं से एक चोर निकलता है, कन्या के शव को देखकर दु:ख मनाता और कहता है – काश ये कन्या जीवित होती, इसे अपनी पत्नी बनाकर सारी इच्छा पुरी करता। वहीं से वेश्या निकलती है, उस कन्या को देखती है और परमात्मा को कोसती है, तू भी अन्याय करता है परमात्मा। काश ये कन्या जिन्दा होती, इसे अपने साथ कोठे पर बैठाती और खूब पैसा कमाती। वहीं से एक जैन साध्वी निकलती है, कन्या के शव को देखती है और कहती है – काश ये बच्ची जिन्दा होती तो इसे सन्यास के मार्ग पर ले जाकर धर्म की प्रभावना करवाती।

वस्तु एक, नज़रिया अनेक।

सच तो यही है कि हमनें दूसरों को देखकर अपना जीना हराम कर लिया है। जो हमारे पास होता है, उसका हमारी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं होता। हमारी दृष्टि दूसरों की कमी देखने में रहती है या अभाव पर। यदि हमारे जेब में 90 रूपये हैं तो मन में एक ही बात खटकती है कि 10 रूपये कम क्यों है? हम 90 रूपये का सुख नहीं भोगते हैं बल्कि 10 रूपये का दुःख अवश्य भोगते हैं। हमारे पास जो है काश उसका सुख भोगें तो हम कभी अनावश्यक दुखी, परेशान नहीं हो सकते। पहले हम और आप अभाव में खुश रहते थे और आज खुशियों का अभाव सा हो गया है। हमारे सुख-दु:ख का कारण हम ही हैं और कोई नहीं। इसलिए सोच समझ कर किसी को अपने मन की बात कहें, क्योंकि ये रिकोर्डिंग और स्क्रीनशॉट का जमाना है बाबू…!!!
नरेंद्र अजमेरा, पियुष कासलीवाल औरंगाबाद।

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