कोटा। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी के ससंघ सान्निध्य में श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर रिद्धि सिद्धि नगर कोटा में श्री जिनसहस्रनाम की आराधना निर्विघ्न संपन्न हुई । सभी भक्तों ने भक्ति में ओत प्रोत होकर भक्ति रस का भरपूर आनंद लिया। पूज्य माताजी ने कहा कि यदि श्रद्धा भक्ति के भाव से इस आराधना को किया जाये तो यह भक्ति तात्कालिक फल को प्रदान करने वाली है। कहते हैं भावना भक्त को भगवान बना देती हैं। जितनी प्रशस्त भावनायें रहती है उतने ही प्रशस्त आपकी क्रियायें होती हैं। माताजी ने कहा वर्तमान समय में सभी की मिथ्यात्व की बुद्धि बन गई हैं। आज के समय में इंसान स्वयं धर्म कार्य नहीं करता और जो दूसरे करते हैं उन्हें भी नहीं करने देता। मिथ्या भ्रांति फैलाकर धर्म कार्य में विघ्न डालता है। ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए जो देव शास्त्र गुरू की सेवा में रोक लगाये। देव शास्त्र गुरू की निंदा करने, सेवा में विघ्न डालने से निधत्ति निःकांक्षित जैसे कर्म बंधते हैं। अंजना सती ने जलन – ईर्ष्या से 22 घड़ी के लिए जिन प्रतिमा को छिपा दिया था तो उसे 22 वर्ष तक पति का वियोग सहना पड़ा। जबकि उसने प्रायश्चित किया। आर्यिका पद ग्रहण करके 1 माह तक मासोपवास किये फिर भी देव शास्त्र गुरू की निंदा का फल भोगना पड़ा। अतः मेरा आप सभी से इतना ही कहना है देव – शास्त्र – गुरू के प्रति सेवा , दान आदि के भाव बनाये रखें क्योंकि इसके अच्छे और बुरे फलों को हमें ही भोगना है किसी अन्य को नहीं।