कोटा। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ श्री पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर महावीर कालोनी कोटा के दर्शनार्थ गई। वहां पूज्य माताजी के मुखारविंद से अभिषेक शांतिधारा संपन्न हुई। तत्पश्चात पूज्य माताजी के धर्मोपदेश का लाभ प्राप्त हुआ। पूज्य माताजी ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि संतों के दर्शन पुण्य से प्राप्त हुआ करते है। सूरज से दोस्ती करोगे तो सुबह से शाम, चांद से दोस्ती करोगे तो रात से सुबह तक और हम जैसे संतों से दोस्ती करोगे तो पहली मुलाकात से अंतिम मुलाकात तक। इन देव शास्त्र गुरु से मुलाकात करोगे तो पुण्य का संचय होगा। पुण्य आपके अतीत अनागत और वर्तमान को बदल सकता है। पूज्य माताजी ने कहा – आज के समय में हम पुण्य से डरते हैं पाप से नहीं। हम पाप करने में घबराते नहीं डरते नहीं लेकिन पुण्य करने में डरते हैं। भोजन में हमें जीरा धनिया मिर्च तेल सब दिखता बस नमक नहीं दिखाई देता जबकि भोजन को स्वादिष्ट वहीं बनाता है। वैसे ही देव शास्त्र गुरु की सेवा करने से ये पुण्य जुड़ता है भले वह दिखाई न दे पर फल अवश्य मिलता है। हम यदि देव शास्त्र गुरु पर विश्वास करके, श्रद्धा से दर्शन करके अपना व्यापार करें तो निश्चित तौर पर उन्हें दुगुना लाभ प्राप्त होगा। परन्तु हम पाप कर्म में प्रवृत्त है। घर-गृहस्थी के कार्य में इतने रमे हैं कि कोई कष्ट आ जाये तो खाना-पीना, व्यापार कुछ नहीं छूटता। बस धर्म छूटता है देव शास्त्र गुरु का साथ। इसलिए मेरा आप सभी से यही कहना है- जैसे सागर का पानी खारा होने के कारण कोई नही पीता और नदी के मीठे जल को सब ग्रहण करते हैं। वैसे ही देव शास्त्र गुरु की वाणी नदी के जल के समान है जिसको पीकर हम जीवन से तर सकते हैं। वर्तमान में आज बहुत लोग ऐसे हैं जो थाली में जूठन छोड़ते हैं। वो भूल जाते हैं कि पुण्य से ही हमें भोजन मिलता है। बहुत से गरीब लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने न जाने कितने दिनों से भोजन नहीं किया। इसलिए अभी आपको जो मिला है उसकी कीमत करो। अन्न को नाली में मत बहाओ। आज से सभी यह नियम अवश्य लें कि हम थाली में जूठन नहीं छोड़ेंगे चाहे घर हो या शादी विवाह कहीं भी। उपस्थित जनसमूह ने हाथ उठाकर स्वीकृति दी और इस सत्य की सराहना कर गुरु मां की जयकारों से भवन को गुंजायमान कर दिया ।