Saturday, September 21, 2024

शास्त्रि-परिषद के तत्वावधान में सोनागिर में चल रहा है शिक्षण- प्रशिक्षण शिविर

ज्ञान आते ही अज्ञान, मोह का अंधेरा हट जाता है, सुख-शांति की वृद्धि होती है: गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी

सोनागिर। अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के तत्वावधान में सिद्धक्षेत्र सोनागिर के आतिथ्य में गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी के ससंघ सान्निध्य में सोनागिर में शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर चल रहा है, जिसमें वरिष्ठ विद्वान विविध विषयों का प्रशिक्षण दे रहे हैं, बड़ी संख्या में विद्वान सम्मिलित होकर लाभ ले रहे हैं। शास्त्रि परिषद के प्रचार मंत्री डॉ सुनील संचय ने बताया कि शिक्षण प्रशिक्षण शिविर में आज प्रातः भगवान चंद्रप्रभ के प्रांगण में आर्यिका लक्ष्मी भूषण माताजी के द्वारा ध्यान कराया गया। तत्पश्चात प्रातः कालीन सत्र में परिषद के महामंत्री ब्रह्मचारी जय कुमार निशांत टीकमगढ़ द्वारा अक्षर विन्यास अक्षर,बीजाक्षर, पिंडाक्षर का विशद विवेचन किया गया। इस मौके पर आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी ने कहा कि ज्ञान के माध्यम से जीवन के उत्थान, सदाचरण, बुराई से बचाव, अज्ञान, मोह का अंधेरा हटाकर, सुख शांति की वृद्धि करते हुए, मोक्षमार्ग की क्षमता पात्रता एवं योग्यता का हेतु बताया। ज्ञान आते ही दृष्टिकोण बदल जाता है, क्षमता बढ़ जाती है, जीने का लक्ष्य एवं उसकी दिशा बदल जाती है।
दोपहर कालीन सत्र में ब्रह्मचारी जय निशांत भैया जी ने अक्षरों का विन्यास बताते हुए कहा मंत्र का प्रयोग चार प्रकार से कर सकते हैं ,1. बैखरी, 2. उपांशु , 3 . पश्य, 4 . परा। तदनुसार णमोकार मंत्र के उच्चारण एवं ध्यान से प्राणायाम विधि द्वारा प्रयोग करने पर शरीर की आंतरिक शुद्धि के साथ पांच इंद्री एवं बलों को पुष्ट किया जाता है, जिससे हमारी शारीरिक क्षमता के साथ आध्यात्मिक एवं दार्शनिक योग्यता का भी लक्ष्य निश्चित होता है।
परिषद के यशस्वी अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जी बड़ौत ने तत्वार्थ सूत्र माध्यम से आज समिति, गुप्ति एवं 10 धर्म का विशद विवेचन किया। जिसके माध्यम से मुनि धर्म की उत्कृष्टता होती है। समापन सत्र में मुनि श्री मंगल आनंद महाराज ने कहा वर्तमान परिवेश प्रदर्शन का है। प्रदर्शन की प्रवृत्ति से संवर, निर्जरा के साथ मोक्षमार्ग भी दूर होता जा रहा है। आज त्याग धर्म भी प्रदर्शन का हेतु बन गया है। मनुष्य का आहार त्याग भी आडंबर का कारण बन गया है। विडंबना है हम निर्ग्रंथ, दिगंबर, त्यागी, अपरग्रही संत हैं फिर भी समाज का लाखों का खर्च हो रहा है। क्यों! क्या यह आगम मार्ग है? समाज को विद्वानों को एवं श्रमणों को इस पर विचार करना चाहिए। जब तक हमारा कथनी करनी का भेद नहीं मिटेगा, तब तक हमारा मोक्ष मार्ग प्रशस्त नहीं है। आज के सत्र में मुरैना गुरुकुल से 26 छात्र शिक्षण हेतु उपस्थित हुए। वरिष्ठ विद्वानों में डॉक्टर टीकमचंद जी दिल्ली, दिनेश कुमार जी भिलाई, जय कुमार जी दुर्ग आदि विद्वानों का आगमन हुआ। विद्वानों की समस्त व्यवस्था सोमचंद्र मेनवार,चंद प्रकाश चंदर तत्पता से संभाल रहे हैं।
-डॉ सुनील संचय, प्रचारमंत्री

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