संस्कृत साहित्य को आचार्य श्री ने किया समृद्ध: विजय धुर्रा
अशोक नगर। सुप्रसिद्ध जैनचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने जेठ की तपती गर्मी में सल्लेखना पूर्वक आज से पचास वर्ष पूर्व राजस्थान के नसीराबाद में उत्कृष्टता समाधी को ग्रहण कर विद्वान जगत की इस धारणा को मिटा दिया कि कोई विद्वान संत बनकर त्याग के मार्ग पर नहीं चल सकता। उन्होंने संस्कृत साहित्य जगत को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। उनकी त्याग तपस्या के चलते फिरते उदाहरण संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज है। जिनकी छवि को देख कर आत्मा आनंद से भर जाती है। उक्त आश्य केउद्गार मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पचासवे समाधी दिवस पर सुभाष गंज में व्यक्त किए।
जगत कल्याण के लिए की महा शान्तिधारा
इसके पहले आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित पंचायत समिति सदस्य प्रमोद मंगलदीप मिंन्टूलाल भारत गौशाला कमेटी के निर्मल मिर्ची ओमप्रकाश धुर्रा भूपेन्द्र राजपुर दारा किया गया। सुबह सुभाष गंज जैन मन्दिर में भगवान के अभिषेक उपरांत जगत कल्याण की कामना के लिए महा शान्ति धारा हुई शान्ति धारा करने का सौभाग्य शिखर चन्द्र गौरव कुमार अथाइखेडा नीतिन कुमार नीलेश कुमार टिंकल एन के गार्मेंट्स परिवार के साथ अन्य भक्तों को मिला इसके बाद आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज की भक्ति भाव से राजेश कासंल दारा पूजन अर्चन भक्ति भाव से कराई गई इसके बाद आचार्य श्री की भक्तो दारा उतारी गई ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जैसे महान शिष्य के गुरु थे: ब्र प्रदुम्न भइया
इस अवसर पर ब्र प्रदुम्न भ इया ने कहा कि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत का अध्ययन कर जैन जगत की संस्कृत साहित्य से परिचित कराया। उन्होंने अपनी लेखनी से जयोदय वीरोदय सुदर्शनोद जैसे संस्कृत महा काव्यों की रचना कर जैन साहित्य की रचना की। उन्होंने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जैसे शिष्य को जन्म दिया, जो आज श्रमण परम्परा के आदर्श संत माने जाते हैं। उनकी प्रेरणा से देशभर में गौशालाओं, हथयकर्घा वेटियो को संस्कारित शिक्षा के लिए प्रतिभास्थली सहित ऐसे अनेक प्रकल्प चलाये जा रहे हैं, जिससे हमारी संस्कृति सुरक्षित हो। आज उनके सामाधि के पचास वर्ष हो रहें हैं, ये उनका स्वर्णिम समाधी वर्ष है।