Sunday, November 24, 2024

आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ का शोंपिग सेन्टर कोटा में हुआ मंगल प्रवेश

कोटा। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ कोटा में धर्म की ध्वजा फहराते हुये एक कालोनी से दूसरी कालोनी में कार्यक्रमों को गतिविधि प्रदान करते हुए बढ़ रही हैं। कार्यक्रमों की श्रृंखला में बुधवार 17 मई को शोपिंग सेंटर कालोनी कोटा को गुरु मां ससंघ का सानिध्य मिला। भक्तों ने गुरू मां ससंघ की भावभीनी अगवानी की। पूज्य माताजी के मुखारविंद से अभिषेक शांतिधारा संपन्न हुई। तत्पश्चात पूज्य माताजी का मंगलमय उद्बोधन हुआ। माताजी ने अपने प्रवचनों में ध्यान के बारे में समझाते हुए कहा कि जीवन में ध्यान का बहुत अधिक महत्व है। मनुष्य की सामान्य जीवनचर्या ध्यान द्वारा नवदृष्टि प्राप्त करती है। ध्यान की गंभीरता व गंभीर स्थिरता व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक स्थितियों का निर्माण करती है। इससे क्रोध, काम, लोभ और मोह के बंधनों से मुक्ति मिलती है। ध्यानस्थ रहकर नकारात्मक मनोभावों पर नियंत्रण का अभ्यास होता है। हमारे जैन मुनियों तीर्थंकरों ने इसी ध्यान पर अपने मन को केन्द्रित कर शिवपुर अर्थात मोक्ष को प्राप्त किया। साधुओं के लिए 2 कर्तव्य मुख्य है सामायिक और ध्यान।
ध्यान के कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राणतत्व (ऊर्जा) से भर जाती है। शरीर में प्राणतत्व के बढ़ने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है। ध्यान मस्तिष्क के आतंरिक रूप को स्वच्छ व पोषण प्रदान करता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है। ध्यान करने से हमारा मन स्थिर होता है। जिससे हम किसी भी कार्य को बेहतरीन तरीके से कर सकते हैं। लेकिन ध्यान करने से पहले हमें पर की बुराइयों से दृष्टि हटाना पडेगी। जब तक हमारे मन में बुराइयां हैं, जब तक हम खुद के बारे में सोचते रहेंगे, तब तक मन शांत नहीं हो सकता है। मानसिक तनाव दूर करने के लिए इन बुराइयों से बचना होगा। तभी हम ध्यान कर सकते हैं। आज के मानव की स्वार्थ की दृष्टि बन गई हैं। वह सदैव स्वयं के बारे में ही सोचता रहता है जिसके कारण आज हम ऊंचाईयों को नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। अतः मेरा सभी जैन समाज से ही नहीं अपितु संसार के प्रत्येक प्राणियों से यही कहना है जीवन में अपने स्वार्थ को छोड़कर सोच को ऊपर उठाओगे तो निश्चित रुप से कही न कही से आपका कार्य स्वयमेव ही सिद्ध हो जायेगा।

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