पीड़ाओं को सहकर आंचल की छाया देती है माँ
डॉ. सुनील जैन, संचय ललितपुर
मां के लिए कोई भी शब्द, लेख या उपाधि कम होगी। उनके प्यार और समर्पण को जिंदगी लगाकर भी जताया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी एक दिन है जो पूरी तरह मां को समर्पित होता है, इस दिन को मदर्स डे कहते हैं। साल 2023 में मातृत्व दिवस यानी मदर्स डे 14 मई को मनाया जाएगा।
माँ के बिना जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती अगर माँ न होती तो हमारा अस्तित्व ही न होता| इस दुनिया में माँ दुनिया का सबसे आसान शब्द है मगर इस नाम में भगवान खुद वास करते है। ईश्वर हर जगह नहीं पहुंच सकता इसीलिए उसने मां बना दी। जो हर किसी की होती है, हर किसी के पास होती है। शारीरिक उपस्थिति मां के लिए मायने नहीं रखती। वह होती है तो उसकी ईश्वरीय छाया सुख देती है जब ‘नहीं’ होती है तब उसके आशीर्वादों का कवच हमें सुरक्षा प्रदान करता है।
माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार। मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार।।
हमारी माँ हमारे लिये सुरक्षा कवच की तरह होती है क्योंकि वो हमें सभी परेशानियों से बचाती है। वो कभी अपनी परेशानियों का ध्यान नहीं देती और हर समय बस हमें ही सुनती है। माँ को सम्मान देने के लिये हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मातृ-दिवस के रुप में मनाया जाता है। ये कार्यक्रम हमारे और हमारी माँ के लिये बहुत महत्वपूर्णं है। हमें अपनी माँ को खुश रखना चाहिये और उन्हें दुखी नहीं करना चाहिये। हमें उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिये और काम को सही तरीके से करना चाहिये। वो हमेशा हमें जीवन में एक अच्छा इंसान बनाना चाहती है।
मां तो बस मां होती है, बच्चों को भरपेट खिलाती खुद भूखी ही सोती है, मां तो बस मां ही होती है। बच्चों की चंचल अठखेली देख-देख खुश होती है, मां तुझे प्रणाम।
मां पर कौन पढ़ता है कविता, कहानी या अन्य साहित्य। लोगों को पसंद है व्हाइट टाइगर या सेक्स और रोमांस की किताबें। पत्नी या प्रेमिका का स्वार्थपूर्ण प्रेम लोगों को पसंद हो सकता है, लेकिन मां का निःस्वार्थ प्रेम आज की पीढ़ी को पसंद नहीं। उनके दिल में मां के प्रति संवेदनाएं नहीं, क्योंकि हमारी शिक्षा और हमारा समाज मां के महत्व को नहीं समझता।
जब तुम रोते थे, रात-रात भर, वो जागती थी आंचल में लेकर।
अब वह रोती रात-रात भर, तुम सोए रहते हो चादर ओढ़कर।।
फिल्मों में मां का किरदार रस्म अदायगी भर का होता है, क्योंकि सारी फिल्में प्रेमिका और प्रेमी के आस-पास ही घुमती रहती है।
सम्बंध नहीं है मां केवल सम्पर्क नहीं है, आदर्श जीवन का केवल संबोधन नहीं है, जन्मदात्री है वो मात्र इंसान नहीं है व्यक्तित्व बनाती है, केवल पहचान नहीं है, ममता की प्रतिमा है, केवल नारी का एक रूप नहीं है, स्नेह की छाया है, केवल कठोरता की धूप नहीं है। हद्रय है इसका प्रेम का सागर, जिसकी कोई थाह नहीं है। आघातों से पीडित है फिर भी दुख पर आह नहीं है। कृतघ्न हैं वो जो माता को आहत करते हैं, कर्तव्यों से मुंह मोड़ अधिकारों का दावा करते हैं। संतान के रक्षण हेतु माता ने न जाने क्या-क्या करती है, पीड़ाओं को सहकर आंचल की छाया देती है।
लबों पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती। बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती।।
मां, माताजी, आई, मम्मी, अम्मा से लेकर मम्मा तक हर मां एक भीने-भीने रिश्ते का प्रतीक है। मातृ-दिवस पर हर बच्चे की यह जिम्मेदारी है कि वह मां के प्रति अपने प्यार का, अपने सम्मान का और अपनी रेशमी छलछलाती अनुभूतियों का इजहार करें।
‘समाज में मां का रूप सबसे शक्तिशाली और सबसे कोमल होता है। वह मां ही होती है जिसकी गोद में बच्चा पहला अक्षर बोलता है-‘माॅं’।
हमारे समाज में मां, दादी, नानी जैसे सम्बोधन बने हैं और इन सम्बोधनों का समुचित आदर आज के पैक्टिकल समाज में दिखता है। यह सिर्फ कहने की बात नहीं है कि बच्चे को पहली शिक्षा उसकी मां और नानी दादी की गोद में मिलती है। घर में मां और दादी में बच्चे में संस्कार भरती हैं। दादी, नानी की कहानियां, उनके पुचकार में शिक्षा होती है। बच्चे को जीवनशैली का ज्ञान महिलाएं ही कराती हैं।
जब तक माताओं को सम्मान देना नहीं सीखेंगे, कुछ भी बदलना मुश्किल है। महिलाओं में अपना घर संभालते हुए समाज को नई दिशा देने की ताकत है। अतीत का कोई उदाहरण उठाकर देख लीजिए आप। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का अपने दत्तक पुत्र के लिए प्रेम हो या फिर आदिवासी महिला कर्मी सोरेन-त्याग का सर्वोच्च उदाहरण मां के रूप में महिलाएं रखती आई हैं। वे कितनी दृढ़ निश्चयी और बलिदानी होती हैं।’’
निरंतर देकर जो खाली नहीं होती , कुछ ना लेकर भी जो सदैव दाता बनी रहती है उस मां को इस एक दिवस पर क्या कहें और कितना कहें। यह एक दिवस उसकी महत्ता को मंडित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हो भी नहीं सकता। हमारे जीवन के एक-एक पल-अनुपल पर जिसका अधिकार है उसके लिए मात्र 365 दिन भी कम हैं, फिर एक दिवस क्यों?
लेकिन नहीं, यह दिवस मनाना जरूरी है। इसलिए कि यही इस जीवन का कठोर और कड़वा सच है कि मां इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा उपेक्षित और अकेली प्राणी है। कम से कम इस एक दिन तो उसे उतना समय दिया जाए जिसकी वह हकदार है। उसके अनगनित उपकारों के बदले कुछ तो शब्द फूल झरे जाएं…।
वक्त जिस गति से विकृत होता जा रहा है ऐसे में क्या इस दिन पर हर युवक अपनी मां को स्पर्श कर यह कसम खा सकता है कि नारी जाति का अपमान न वह खुद करेगा और न कही होते हुए देखेगा। मातृ दिवस पर बेटियों का सम्मान और सुरक्षा देने का वचन दीजिए ताकि आनेवाले कल में भावी-मां का अभाव ना हो सके। हे मां! तुझे प्रणाम।
सुपुत्रों से आज मेरा नम्र निवेदन। दुख न दें, भले न दे सुख का आंगन।।
माँ के पास ढ़ेर सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं वो उसको लगातार बिना रुके और थके निभाती है। वो एकमात्र ऐसी इंसान है जिनका काम बिना किसी तय समय और कार्य के तथा असीमित होती है।
एक मां का अपने बच्चे से रिश्ता, दुनिया के किसी भी रिश्ते से नौ माह पुराना होता है और सबसे करीब होता है। हमारे व्यक्त्वि को बनाने और संवारने में सबसे बड़ा रोल मां ही निभाती है। मां का कोई रंग—रूप नहीं होता क्योंकि उसकी पहचान निस्वार्थ प्रेम और ममता से की जाती है। यही कारण है कि मां शब्द सुनते ही हमारा सिर स्वयं नतमस्तक हो जाता है। वास्तव में मां है तो ही हम हैं। हमारा जीवन मां के उन उपकारों से भरा है जिनकी कीमत कभी नहीं चुकाई जा सकती। सिर्फ मां ही नहीं, सास को भी करें खुशसिर्फ मां को ही नहीं, बहु और दामाद दोनों ही, अपनी सास को इस दिन स्पैशल फील करवा सकते हैं। इस दिन जो खास अनुभव आप अपनी मां के साथ शेयर करते हैं उन्हें सास के साथ भी शेयर करें। ऐसा करने से रिश्तों में भी गहराई आएगी और उन्हें खुशी भी मिलेगी।
आधुनिक कहे जा रहे समाज में बहुत से परिवारों में बडे़ होने पर बेटियां व बेटे शायद ही कभी अपनी मां के पास वक्त निकालकर बैठते हैं और उसे खुशी पहुँचाने वाली बातें करते है। मां और बच्चों के बीच दूरी बढ़ने लगी है। कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ मां के साथ बच्चे किस विषय पर संवाद बनाएं यह उन्हें समझ नहीं आता।
इसलिए उनके साथ सारे संवाद, दैनिक जरूरत आधारित ही हो जाते हैं। किसी का मन पढ़ने के लिए, प्यार देने के लिए, संवाद बनाने के लिए किसी खास तरह की भाषा की जरूरत नहीं पड़ती है केवल गहरे प्यार सम्मान की आवश्यकता होती है। मां की रोजाना खबर खैरियत लेते रहें तो शायद ‘मदर्स डे’ का यह नजराना प्यार का नहीं बल्कि तकाजा है बाजार का ।
माँ के पास ढ़ेर सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं वो उसको लगातार बिना रुके और थके निभाती है। वो एकमात्र ऐसी इंसान है जिनका काम बिना किसी तय समय और कार्य के तथा असीमित होती है। हम उनके योगदान के बदले उन्हें कुछ भी वापस नहीं कर सकते हालाँकि हम उन्हें एक बड़ा सा धन्यवाद कह सकते है साथ ही उन्हें सम्मान देने के साथ ध्यान भी रख सकते है। हमें अपनी माँ को प्यार और सम्मान देना चाहिये तथा उनकी हर बात को मानना चाहिये।
मुनव्वर राना ने लिखा है-
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है