(एक रोगी की दास्तान)
शाबाश इंडिया। वैसे तो इस प्रश्न का सही-सही जबाव कोई डॉक्टर ही दे सकते है लेकिन मैं अपने अनुभव के आधार पर आपको इस प्रश्न का उत्तर देता हूँ। मुझे आशा हैं आपको हार्ट अटैक का लक्षण समझ में आ जाएगा। बात पिछले साल October 2019 की है जब मैं एक दिन शाम के वक्त अपने घर से चालीस किलोमीटर दूर से काम निबटाकर घर लौट रहा था। उस समय में अपने ज़िंदगी के 47 बसंत देख चुका था और 48वें बसंत देखने के लिए अग्रसर था। मैं अपने घर से करीब पाँच किलोमीटर दूर था की बाइक चलाते हुए चक्कर महसूस हुआ। मैंने सड़क किनारे बाइक खड़ी की और वही बैठ गया। मैं पसीना से तर-बतर हो गया। मैं बाइक पकड़कर बैठे रहा और अपने-आपको संभाले रहा। मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा की अपने-आपको बेहोस न होने दूँ। करीब पाँच मिनट बैठने के बाद मैं नार्मल हुआ। बाइक लेकर चलता बना। समस्या खत्म नहीं हुई थी। एक किलोमीटर चलने के बाद फिर समस्या। फिर रुका। दोबारा चला। एक किलोमीटर बाद फिर रुकना पड़ा। इस तरह तीन किलोमीटर के दूरी में तीन बार रुकना पड़ा। चुकी मैं घर के काफी नजदीक आ गया था इसलिए तीसरे बार मै कुछ ज्यादा देर तक बैठा। कुछ देर बाद फिर बाइक लेकर चला और अपने घर पहुंचा। कुछ वक्त अपने आपको नार्मल किया फिर घर में चर्चा की। घर में पत्नी के अलावे 15 साल का लड़का और 12 साल की लड़की। पत्नी गाँव से है और उनको खुद कोई न कोई शारीरिक टोटा लगा ही रहती है। बच्चे भी इतने बड़े नहीं की इस मामले में कोई सलाह देते। आगे क्या और कैसे करना है मुझे खुद सोचना था। सच कहूँ तो रातभर कुछ परेसान जरूर रहा की क्या मेरे लिए सुबह होगी? भगवान का शुक्र है सुबह हुई। बेटे का पहला प्रश्न स्कूल कैसे जाऊंगा? क्या आप स्कूल छोडने में सक्षम हो? घर से 10 किलोमीटर दूर दोनों बच्चों को प्रतिदिन स्कूल मैं खुद छोडता हूँ। सबने कहा स्कूल की छुट्टी करते हैं पहले आप हॉस्पिटल जाओ। चुकी मैं सुबह अपने आपको नार्मल महसूस कर रहा था इसलिए मैंने कहा नहीं और बच्चों को स्कूल लेकर चलता बना। स्कूल चलने से पहले मैंने अपने दोनों बच्चों को मेंटली तैयार कर लिया था की अगर रास्ते में मुझे कोई समस्या आए तो घबराना नहीं है और आपात स्थिति में क्या करना है। सब ठीक रहा और बच्चों को स्कूल छोडकर घर वापस आया। थोड़ी सी हिम्मत बढ़ी और 10 किलोमीटर बाइक चलाकर एक काम और निबटाया। मैं सुबह 10 बजे तक 30–35 किलोमीटर बाइक चला चुका था। अब बारी थी हॉस्पिटल की। आपात स्थिति से निबटने के लिए पत्नी को बाइक पर बिठाया और घर से 7–8 किलोमीटर दूर दिल्ली सरकार के अंतर्गत जाफ़रपुर हॉस्पिटल पहुंचा। OPD का पर्ची बनाकर डॉक्टर के पास गया। पिछले दिन की सारी बातें बताई। मुझे ECG और BP text के लिए दूसरे कमरे में भेजा। दोनों काम कराकर वापिस डॉक्टर के पास आया। डॉक्टर ने ECG रिपोर्ट देखकर कुछ लिखा और कहा Emergency में जाओ। मैं पहुंचा Emergency और स्टाफ को पर्ची पकड़ा दी। स्टाफ ने जैसे ही पर्ची देखा पूरी कहानी ही बदल गयी। उसने बिना कोई देर किए पर्ची डॉक्टर को दिखाया और डॉक्टर ने बिना कोई देर किये बेड पर लेट जाने को कहा और लेटने के बाद मुझे ऑक्सीज़न लगा दिया गया। डॉक्टर और स्टाफ हरकत में आये तुरत फिर से दो बार ECG टेस्ट हुआ दो – चार गोलियां खिलायी और दो-तीन ब्लड सेंपल लिये गये। मैं हैरान ! कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर बात क्या है? अंततः मैंने डॉक्टर को पूछा
मुझे क्या हुआ?
डॉक्टर: होनेवाला है ।
मैंने पूछा क्या?
डॉक्टर बोला आपको कभी भी हार्ट अटैक आ सकता है। और पत्नी को हिदायत दिया इनको घूमने-फिरने नहीं देना।
मैं भौचक्का रह गया।
नोट: अक्सर लोग सरकारी हॉस्पिटल को कोसते हैं। मेरा किसी न किसी को लेकर दस सालों से दिल्ली में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के अधीन चलने वाले हॉस्पिटल से वास्ता पड़ता आ रहा है। अनुभव अच्छा है। जहां जरूरत है वे पीछे नहीं रहते। चुकी उनके पास जितना infrastructure और manpower उपलब्द्ध है उसके अपेक्षा काम का बोझ ज्यादा है इसलिए आपको थोड़ा धैर्य रखने की आवश्यकता होती है।
एक टेस्ट था ट्रोपनिन टी जो negative आया था। वहाँ डॉक्टर को कुछ समझ कम आया और सुविधाओं का थोड़ा अभाव होने के कारण मुझे बड़े हॉस्पिटल यानि दिल्ली के तिलक नगर में स्थिति दिनदयाल हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। मैंने कहा कल चला जाऊंगा तो डॉक्टर का जबाव था इस बीच अटैक आ गया फिर क्या करोगे? अभी जाओ। खैर मैं पहुंचा दिनदयाल हॉस्पिटल वहाँ फिर से ECG टेस्ट हुआ। डॉक्टर को सब बताया उसने एक हफ्ते की खांसी की दबाई दी और चलता किया। मैंने वो दबाई खाई, हल्का-फुल्का जो खांशी और कफ था ठीक हुआ लेकिन मेरी समस्या अभी भी बनी हुई थी। मुझे कभी-कभार अभी भी हल्के चक्कर आते थे। सिने में अजीब सी हलचल महसूस करता था। कभी – कभी अजीब सी घबराहट महसूस करता था। कभी लगता जैसे दिल ज़ोर-ज़ोर से धडक रहा है और कभी लगता जैसे सिने में कुछ है ही नहीं। एक बार मैंने बाइक चलाते हुए दोनों हाथों में झनझनाहट सी महसूस की और अंततः मुझे बाइक रोकना पड़ा था। मैं दोबारा पहले वाले हॉस्पिटल गया। डॉक्टर से बात की उन्होने कुछ दबाइयाँ लिखी और एक महीने बाद बुलाया। वो महिना होते-होते आज करीब-करीब 9 महीने बीत गये। दबाइयाँ अभी भी चालू है। इस बीच कुछ ब्लड test और ECO टेस्ट हूये जो नॉर्मल आये। डॉक्टर को पूछा जब सब नॉर्मल है फिर दबाई क्यों। डॉक्टर का जबाब था ECG अबनोरमल है। दबाई लम्बी चलेगी। टेस्ट रिपोर्ट जो भी हो लक्षण तो थे जो मैंने ऊपर लिखे हैं। अब लक्षण में सुधार है। अपने – आप को बोल्ड रखता हूँ। क्या होगा इस बाते में ज्यादा न सोचकर अपने कर्म पथपर अग्रसर हूँ। इसपर कुछ research किया तो पाया पान मशाला गुटका आदि खाना दिल के लिए बहुत हानिकारक है। अपने स्कूल के समय से पान मशाला के अभ्यास को छोड़ा। अपने दोनों बच्चों को भी मेंटली मजबूत बनाए रखा हूँ। इतना विश्वास दिला रखा है कि जब तक तुम दोनों पढ़-लिखकर इंडिपेंडेंट नहीं हो जाते, मैं कहीं नहीं निकलनेवाला। वैसे भी जिसके पास आप लोगों जैसे इतने चाहनेवाले पाठक हों! यमराज भी कहेंगे “इग्नोर कर…