डा.अखिल बंसल
जैन आगम में साधु परमेष्ठी को चलते-फिरते सिद्ध निरूपित किया गया है। अंतर्मना के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त नग्न दिगंबर जैन संत प्रसन्न सागर जी के मुखारविंद से जो भाव प्रकट हुए हैं वह जैन समाज के मुंह पर करारा तमाचा है । क्या इस समाज का शीर्षस्थ नेतृत्व जड़ हो गया है जो किंकर्तव्यविमूढ़ भीष्म पितामह की तरह सब कुछ लुटता देखते हुए भी मौन है। एक बार आप भी सुन लीजिए अंतर्मना की वेदना। “आज कुर्सी पर बैठे हमारे नेताओं को माला, पैसा और सम्मान ही चाहिए । बड़ी-बड़ी क्षेत्र की कमेटियां आज यही चाहती हैं कि उन्हें पैसा मिलता रहे और दुनियां जाए …? ” क्या सारी कमेटियां ऐसी हैं ? उनका कहना है- “बिल्कुल जैसे गोबर पर चांदी का बर्क चढ़ा हो।”
उन्होंने कहा कि- “आज दिगंबर तीर्थ क्षेत्र हों या उनको चला रही कमेटियां। तीर्थ क्षेत्रों पर वहां की कमेटियों की व्यवस्था एकदम लचर है। खिड़कियों पर कांच नहीं मिलेगा, नल पर छन्ना नहीं होगा, दरवाजे में चटकनी नहीं होगी, बिस्तर पर खोल नहीं होगा और वही श्वेतांबर समाज की धर्मशाला में आप देख कर हैरान हो जाते हैं। वह जितना दान लेते हैं उतना ही समाज को देते हैं पर दिगंबर तीर्थों पर कमेटियां उसका 5 पैसा भी व्यवस्था में नहीं देती ” यह एक कटु सत्य है जिसे जैन समाज के शीर्ष नेतृत्व को समझ जाना चाहिए।
आज हमारे नेतृत्व की कमजोरी के कारण ही हमारे तीर्थ गिरनार जी, पालीताणा, सम्मेद शिखर , रणकपुर व केसरियाजी को ग्रहण लग गया है पर हमारी उदासी दूर नहीं हुई । भला हो संजय जैन का जिसने जैन विश्व संगठन के बैनर पर सम्मेद शिखर प्रकरण को आंदोलन का रूप देने में कोई कसर नहीं रखी। गिरनार जी की दशा दयनीय है। गिरनार जी के नाम पर अकूत धन राशि एकत्रित की गई थी वह राशि गई कहां निर्मल ध्यान केन्द्र के निर्माण में या बण्डीलाल कारखाने के भरण पोषण में ? वहां पहली टोंक के अलावा हमारा अस्तित्व ही नजर नहीं आता वह भी एक छोटे से जिनालय के रूप में । दूसरी, तीसरी, चौथी एवं पांचवीं टोंक में व्यवस्था के नाम पर लगता ही नहीं कि कहीं पर भी हम अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं । इन टोंकों की व्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार है तीर्थ क्षेत्र कमेटी या बण्डीलाल कारखाना ? कोर्ट में केस चल रहा है पर न्याय व्यवस्था कितनी लचर है। गिरनार मामले में नौं दिन चले अढ़ाई कोस पर वहीं मथुरा हो या काशी कोर्ट में तुरंत सुनवाई हो रही है ।
पालीताना में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी गई पर राज्य सरकार द्वारा कमेटी के गठन के अतिरिक्त अब तक कुछ हाथ नहीं लगा । आज भाजपा शासन में है पर जब वह विरोधी दल के रूप में थी तब वहां क्या- क्या घोषणाएं नहीं की थीं। हम पालीताना को अहिंसा नगरी बनाएंगे, जैन विश्वविद्यालय बनाएंगे पर सत्ता में आते ही वही ढाक के तीन पात। रणकपुर तीर्थ को राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने जैन समाज को ठेंगा दिखाते हुए छल पूर्वक उसे राज्य सरकार के नाम हस्तांतरित कर लिया और जैन समाज देखती रह गई । कोर्ट के आदेश को भी सरकार ने धता बता दिया । यह सब वोट बैंक के कारण हो रहा है । केसरिया जी का भी हाल किसी से छुपा नहीं है जैन समाज कोर्ट में जीतने के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर पा रही है और राज्य सरकार राजस्व में बढ़ोतरी कर अपना उल्लू सीधा कर रही है। तीर्थराज सम्मेद शिखर पर केन्द्र व राज्य सरकारें अपनी अपनी चालें चलकर हमें आदिवासी समुदाय से लड़ा कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं; अब हम जाएं तो जाएं कहां ? जब बाड़ ही खेत को खाएगी और रक्षक ही भक्षक की नीति पर आमादा हो जाएंगे तो समाज का भगवान ही मालिक है। हमारे नेतृत्व की आंखें अब खुल जाना चाहिए और दिगम्बर श्वेतांबर मिलकर या तो अहिंसक समुदाय के साथ गठबंधन कर राजनीतिक पकड़ बनाना चाहिए या अल्पसंख्यक समुदाय के साथ मिलकर अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए। एक राष्ट्रीय स्तर पर दैनिक पत्र का प्रकाशन भी होना चाहिए जिसके प्लेटफार्म पर समय समय पर अपनी आवाज उठाई जा सके। नव निर्माण की अपेक्षा अपनी धरोहर का संरक्षण हम सबका प्रथम ध्येय होना चाहिए।