अनुलोम विलोम प्राणायाम अर्थात नाड़ी शोधन प्राणायाम, इसका संपूर्ण नाम नाड़ी शोधन प्राणायाम है, उसके एक भाग को ही अनुलोम विलोम प्राणायाम कहा जाता है। अगर नाड़ी शोधन प्राणायाम के समय की बात करें कि, यह कितनी देर करना चाहिए तो, शास्त्रों में वर्णित है कि नाड़ी शोधन प्राणायाम हमारे शरीर की समस्त नाड़ियों को शुद्ध कर उसमें प्राणवायु को अच्छे से संचालित करता है। योगाभ्यास प्रारंभ करने से पहले 6 माह तक नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। जिससे हमारे शरीर की समस्त नाड़िया शुद्ध होकर उसमें रक्त संचरण अच्छे से हो सके। उसके बाद योगाभ्यास प्रारंभ करना चाहिए। अगर समय और अवर्तियो की बात करें तो, शास्त्रों में वर्णित है कि 24 घंटे में चार बार नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए। जिसमें कम से कम बीस अवर्तिया सम्मिलित है। सुबह सूर्य उदय के समय, दोपहर भोजन से पहले, शाम को सूर्यास्त के समय और अर्ध रात्रि के समय ऐसा करने से छह मास के अंदर आपकी समस्त नाड़िया शुद्ध होकर उसमें प्राण वायु अच्छे से संचालित होता है और अवर्णनीय आनंद की अनुभूति होती है। उसके बाद योगासन व अन्य प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। अगर परिणाम की बात की जाए तो मैंने स्वयं कई मास तक निरंतर अभ्यास किया है। परंतु 6 मास निरंतर कभी नहीं किया और ना ही 4 बार किया है। अधिक से अधिक हम गृहस्ती और समाज में रहने वाले लोग दो बार ही इसका अभ्यास कर सकते है। परंतु अगर कोई एक बार भी प्राणायाम का अभ्यास 3 से 4 माह तक करता है तो, उसके शरीर में आवर्णनिय नाडी शुद्धि देखने को मिलती है, और समस्त रोगों का नाश होता है।
स्रोत:- हठयोग प्रदीपिका और घेरण्ड संहिता हठयोग के सुप्रसिद्ध ग्रंथ…