Friday, November 22, 2024

सबसे बड़ी व्यथा है ,सीमित शब्द और असीमित भावनाएं : अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी

आचार्य श्री ने किया केश लोच

सम्मेद शिखर जी । कभी कभी शब्दों के रिश्ते भी बड़े अजीबो गरीब होते हैं, ऊंचा बोलने और धीमा सुनने से भी चटक जाते हैं। शब्द आपको खुश कर सकते हैं, मोह सकते हैं, आपकी खुशामद कर सकते हैं, उत्तेजित कर सकते हैं, नाराज कर सकते हैं, शान्त कर सकते हैं, आप से अपनी मर्जी का काम करवा सकते हैं, आपको भावुक कर सकते हैं। पराये को अपना और अपने को पराये कर सकते हैं। नया जीवन दे सकते हैं, जीना हराम कर सकते हैं, कोई राज छुपा सकते हैं और किसी का राज उजागर भी कर सकते हैं। शब्दों की मदद से, कोई भी काम करवा सकते हैं। हम शब्दों का उपयोग तो हर समय करते ही हैं लेकिन मनुष्यों की इस सबसे बड़ी शक्ति का सही और मौलिक उपयोग कम ही लोग कर पाते हैं। किसी ने छोटी सी बात कही और हम भभक जाते हैं, तुरन्त प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं। शब्दों के माध्यम से हम किसी के प्रिय तो किसी के अप्रिय बन सकते हैं। वाणी की प्रभावोत्पादकता हमारे शब्द चयन पर निर्भर करती है। शब्द किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की, छवि बनाने और बिगाड़ने की सामर्थ्य भी रखते हैं। आज वही व्यक्ति सफल है जो मृदुभाषी हो, विनम्र हो, मिलनसार हो, वाणी-व्यवहार में श्रेष्ठ हो। इसलिए कबीर ने कहा –
शब्द सम्हारे कर बोलिए, शब्द के हाथ ना पाव.. एक शब्द औषधि करे, एक करे मन घाव…!!!।
आचार्य श्री ने आज केश लोच किया। संकलन : नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद ।

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