डॉ चीरंजी लाल बगडा, कोलकाता
मो. 9331030556
विकास की अपनी एक गति होती है l कोई भी रूढ़ि, परंपरा, पहनावा, खान पान, मान्यता, फैशन, हमेशा एक समान नहीं रहते, सब बदलते रहते है l यह प्रकृति का शास्वत नियम हैl अठारहवीं से उन्नीसवीं सदी और उन्नीसवीं से बीसवीं सदी तक मे बदलाव की गति धीमी थी l जो एक सौ वर्षो मे बदलाव हुए, वो धीरे धीरे हुए और वो सहज रूप से भावी पीढ़ियों द्वारा स्वीकार होते गए, परंपरा मे समाहित होते गए l परंतु विगत करीब तीन दशक मे जो बदलाव हो रहे है, आ रहे है, उनकी गति बेहद तेज है, कल्पना से भी परे है l जितने बदलाव पिछले एक सौ वर्षों मे हुए थे, उतने बदलाव इन तीन दशक मे हो गए और आने वाले समय मे इन बदलावों की गति और तीव्र से तीव्रतर होने वाली हैl इस गति के साथ ऊपर की दो पीढ़ियों को मानसिक तालमेल बैठा पाना बहुत ही कठिन, मानसिक संत्रास देने वाला है l
सामान्यतः परिवार मे एक समय मे तीन पीढियाँ तो रहती ही है l हम स्वयं तीसरी चौथी पीढी के व्यक्ति है और आज भी नई पीढी के साथ मानसिक वैचारिक तालमेल बैठा पाना कभी कभी असहज लगता है l आइये, देखते है एक बानगी, अगले बीस पच्चीस साल बाद की क्या स्थिति होने वाली है, उसकी l
आज जो बीच की पीढी के लोग है, जो चौथे पांचवें दशक मे है, उनका भविष्य क्या होने वाला है, उसकी एक झलक l देश मे अभी नए नए स्टार्ट अप का दौर है, जिससे आने वाले समय का थोड़ा बहुत आभास लगाया जा सकता है l सोशल मीडिया मे अभी एक नए स्टार्ट अप की चर्चा जोरों पर है जिसमें मनुष्य की मौत के बाद अंतिम संस्कार की समस्त सेवाएं प्रदान करने वाली एक कंपनी के स्टार्ट अप का अनोखा बिजनेस मॉडल सामने आया है l यह कंपनी है- सुखांत फ्यूनरल मैनेजमेंट प्राईवेट लिमिटेड, जो 37,500/- रुपये लेकर सदस्य बनाती है और मृत्यु के बाद अंतिम क्रिया की सारी रस्में पुरी करती है, जिसमे अर्थी, पंडित, नाई, कंधा देने वाले चार लोग, राम नाम बोलने वाले लोग और अर्थी विसर्जन का कार्य, सब सेवाएं यह कंपनी सुलभ करवाती है l
नई संस्कृति वाले भारत के महानगरों मे रिश्तें निभाने का वक़्त अब किसी के पास नहीं बचने वाला है, न पुत्र के पास, न भाई के पास और न समाज के लोगों के पास l आश्चर्य है कि इस कंपनी ने पांच हजार अंतिम संस्कार करवा कर अब तक पच्चास लाख रुपये की तो कमाई भी कर ली है और आने वाले समय मे कंपनी का कारोबार दो हजार करोड़ रुपये तक होने की संभावना है l यह समाज के भविष्य की बेहद भयावह तस्वीर है परंतु आने वाले कल की सच्चाई भी है l कंपनी ने अभी एक प्रदर्शनी मे मैय्यत के सारे सामानों के साथ एक स्टाल भी लगाया है l एकल परिवार के इस दौर मे जहाँ बेटे- बहु सब महानगरों और विदेशों मे ऊँची पैकेज की नौकरी मे कार्यरत है, उनके पास अब अपने बुजुर्ग माँ-बाप के लिए वक़्त ही कहाँ बचा है, मौत की सूचना मिलने पर सीधे स्टार्ट अप कंपनी को फोन करों, ओन लाईन पेमेंट भेज दो और पुत्र होने का फर्ज़ पूरा हो गया, यहीं होने वाला है l विदेशों मे तो यह हो ही रहा है l सबके पास धन तो बहुत होगा, परंतु समय किसी के पास नहीं होगा l
जैन समाज है कि सैंकड़ों हज़ारों करोड़ रुपये लगाकर आज भी एक से एक विशाल जिनालय बनाने मे ही व्यस्त है, बिना यह विचार किये कि भविष्य मे इन मंदिरों की देख-भाल कौन करेगा, पूजा- पाठ कौन करेगा, किस के पास इतना समय बचेगा l सब काम आनलाईन होगा l आज भी तो शांति धारा आनलाईन कराने की परंपरा तेजी से विकसित होती जा रही है l धीरे धीरे पूजा पाठ भी आनलाईन रोबोट द्वारा ही संचालित होने वाले है l
समाज की, परिवार की, समस्त परिभाषाएं बदल रही है l हर दूसरे परिवार मे विजातीय संबंध होने लगे है l हमारी अधिकांश युवा पीढी केरियर बनाने मे लगी हुई हैl संयुक्त परिवार दुर्लभ होते जा रहे है l इन सब बातों का गंभीरता से संज्ञान लिया जाना बेहद जरूरी है l इन परिस्थितियों मे धन को प्रमुखता न देकर, मानव संसाधन पर ध्यान देकर उसे सशक्त बनाने पर समाज द्वारा विशेष निवेश करना, भविष्य के लिए विशेष उपयोगी होगा, ऐसा हमारा विनम्र सुझाव है l