सम्मेद शिखर जी । हम प्रमाद बस कर्तव्य और अकर्तव्य से अनभिज्ञ होकर अपनी शक्ति और ऊर्जा को गलत दिशा में व्यय करते रहते हैं और जीवन के वास्तविक उद्देश्य से वंचित रह जाते हैं। “मानव जीवन की सफलता मन के उत्साह और जुनून पर निर्भर करती है।” जैसे एक बच्चा – माता पिता के डर से पढ़ता है और एक अपनी खुशी से पढ़ता है। दोनों की पढ़ाई में जमीन आसमान सा अन्तर है। इसी प्रकार “ऋषि प्रधान और कृषि प्रधान देश में अपने सत्कार्यों से अपने जीवन के मूल्यों को वसूला है।”
सत्कार्य और सत्सकंल्प से शरीर की इन्द्रिय भी सहभागिनी होती है। “इन्द्रियों के सहयोग के बिना कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती।” इन्द्रियों के सहयोग से मन मस्तिष्क का चिन्तन आत्म कल्याणकारी और लोक मंगलकारी हो जाता है। जैसे – इन्द्रियों के सहयोग से हमारे पैर गलत दिशा की ओर नहीं बढ़ते। हाथ अकर्म में प्रवृत्त नहीं होते। नैत्र कुत्सित दृष्टि नहीं डालते। नासिका में किसी प्रकार की दुर्गन्ध प्रवेश नहीं करती। वाणी माधुर्य रस से सराबोर हो जाती है। कर्ण फिर अप्रिय कुहरों से कलुषित होने वाले विचारों को प्रवेश नहीं देते और मन इन सबको सपोर्ट करने लगता है। माना कि “इन्द्रियों का मैन पावर हाउस मन ही है।” नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद विवेक गंगवाल ।