कैसे मालूम हो कि वेन्टीलेटर पर रह रहा मरीज जीवित है या नहीं?

सामान्य जनता मैं एक धारणा सी बन गयी है कि वेंटिलेटर पर मृतक रोगी को रखकर हॉस्पिटल वाले लूटने का काम करते हैं। शरीर मैं 3 मुख्य प्रक्रियाएं होती हैं पहला फेफड़ों द्वारा सांस लेना ,दूसरा हृदय द्वारा शरीर के सभी अंगों तक रक्त पहुंचाना। और तीसरा मस्तिष्क का काम करना। अगर इन तीनों मैं से एक भी रुक जाए तो भी एक तरह की मृत्यु ही है। वेंटिलेटर पर तभी रखा जाता है जब उसका हृदय और दिमाग चल रहा होता है। इसलिए हर वेंटिलेटर से कार्डियक मॉनिटर जुड़ा रहता है। वेंटिलेटर सिर्फ फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सिजन भरने का काम करता है। मान लीजिए कि किसी रोगी की मृत्यु हो गई है और उसका दिल भी रुक गया है ऐसे मैं फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सीजन भरने से क्या फायदा होगा क्योंकि खून तो जम चुका होगा ,दिमाग भी ऑक्सिजन न मिलने से मृत हो चुका होगा। ऐसे मैं आप कितनी ऑक्सिजन देते रहो । शरीर तो सड़ना शुरू हो ही जाएगा। जबकेवल ब्रेन डेथ हो जाती है और दिल चल रहा होता है तब इस स्तिथि मैं वेंटिलेटर का प्रयोग शरीर के आंतरिक अंगों को प्रत्यारोपण के लिए जीवित रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। अब आप का जवाब अगर मरीज वेंटिलेटर पर है तो मॉनिटर तो लगा ही होगा। आप उसमें दिल की धड़कनें और खून का ऑक्सिजन स्तर देख सकते हो। अगर ये दिख रहा है तो इसका मतलब दिल चल रहा है। अगर आँखों की पुतलियां फैली नहीं है तो इसका मतलब उसका ब्रेन काम कर रहा है।