युद्ध नहीं होते जहाँ, पड़ा अयोध्या नाम : आचार्य विभवसागर जी
टीकमगढ । राजेश रागी। श्री चंद्राप्रभू दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र हटा जी परिसर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शान्ति महायज्ञ का नौ दिवसीय आयोजन 01 नबम्बर से चल रहा है,जिसका समापन 09 नवम्बर को विश्वशांति महायज्ञ के साथ होगा। इस अवसर पर आचार्य श्री विभव सागर जी महाराज द्बारा श्रीराम कथा सत्संग भी चल रही हैं । इस अवसर पर आज आचार्य श्री ने अयोध्या भक्ति प्रसंग पर बताया कि “युद्ध नहीं होते जहाँ, पड़ा अयोध्या नाम” जहाँ पर किसी भी प्रकार के युद्ध नहीं होते हैं, जो नगरी युद्ध के योग्य नहीं है अथवा जो भूमि (नगरी) किसी भी योद्धा के द्वारा जीती नहीं जा सकती, ऐसी अयोध्या नगरी हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि इस भूमि को अन्य दूसरे नामों में साकेत और अवधपुरी के नाम से भी जाना जाता है। अवध शब्द का अर्थ है जो वध से रहित हो, जिस स्थान पर किसी भी जीव का वध नहीं किया जाता हो, वह नगरी है ‘अवधपुरी’। जहाँ पर होते वध नहीं, अवधपुरी वह धाम । भारतीय संस्कृति की धारा दो संस्कृति से मिलकर बहती है, एक श्रमण संस्कृति, दूसरी वैदिक संस्कृति । श्रमण संस्कृति में श्रमण धर्म के प्रवर्तक चौबीस तीर्थंकर हुए जो क्षत्रिय कुल में पैदा हुए। सबसे बड़ी विशेष बात है कि जितने भी तीर्थंकर पैदा होते हैं, उन सब प्रत्येक तीर्थंकर का जन्म कल्याणक अयोध्या नगरी में ही मनाया जाता है। इसके साथ ही अयोध्या नगरी में अन्य तीर्थकरों के भी कल्याणक मनाये गये। इस नगरी को मात्र श्रीराम की जन्मभूमि ही नहीं अपितु यह कह सकते हैं कि यह नगरी भगवन्तों की ‘पुण्य प्रसूता’ जन्म नगरी है। दोपहर मे धर्म सभा का आयोजन सेठ वीरचंद, सुनील कुमार, अशोक क्रांतिकारी निवासी हटा,बल्देवगढ़़ द्बारा किया जा रहा है । इस मौके पर आज रविन्द्र सिंह बुंदेला जनपद अध्यक्ष बल्देवगढ ने आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन किया । कमेटी ने सभी से लाभ अर्जित करने की अपील की है।