आठ दिवसीय मंगलकारी कल्पद्रुम विधान का तीसरा दिन
जयपुर। भट्टारकजी की नसिया में विराजे भगवान ऋषभदेव और यहीं आचार्य गुरुवर श्री सुनील सागर महा मुनिराज की अपने संघ सहित चातुर्मास में समवशरण सिंहासन पर विराजमान होकर श्रावकों को उपदेश देकर बहुत ही उज्जवल साधना कर रहे हैं है। प्रातः कल्पद्रुम विधानमंडल के आयोजन के तहत कुबेर इन्द्र राजीव – सीमा जैन गाजियाबाद, एवं ओमप्रकाश काला विद्याधर नगर वालों ने तथा मुकेश जैन ब्रह्मपुरी ने भगवान श्री जी को मस्तक पर लेकर पंडाल में विराजमान किया ।भगवान जिनेंद्र का जलाभिषेक एवं पंचामृत अभिषेक हुआ । उपस्थित सभी महानुभावों ने पूजा कर अर्घ्य अर्पण किया।पश्चात आचार्य श्री शशांक सागर गुरुदेव के श्री मुख से शान्ति मंत्रों का उच्चारण हुआ, सभी जीवो के लिए शान्ति हेतु मंगल कामना की गई। सन्मति सुनील सभागार मे प्रतिष्ठा चार्य प. सनत् कुमार जी ने मन्त्रोच्चारों के साथ कल्पद्रुम विधान का विधिवत शुभारंभ किया ।आचार्य भगवंत को अर्घ्य अर्पण करते हुए शांति कुमार ममता सोगानी जापान वाले, सतीश शशि प्रभा अजमेरा ,विनय स्नेह लता सोगाणी ने चित्र अनावरण और दीप प्रज्जवलन कर धर्म सभा का शुभारंभ किया। उक्त जानकारी देते हुए चातुर्मास व्यवस्था समिति के प्रचार मंत्री रमेश गंगवाल ने बताया , मंगलाचरण सीमा गाजियाबाद ने किया व मंच संचालन इंदिरा बड़जात्या ने किया चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामन्त्री ओमप्रकाश काला ने बताया पूज्य आचार्य भगवंत की पावन निश्रा में, आठ दिवसीय विधान का तृतीय दिवस पर आचार्य भगवन्त के श्री मुख से पूजा उच्चरित हुई चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक रूपेंद्र छाबड़ा, राजेश गंगवाल ने बताया आचार्य भगवंत के चरण पखारे शांति कुमार ममता सोगानी जापान वाले परिवार ने ।पूज्य आचार्य भगवंत को जिनवाणी शास्त्र भेंट किया गया।
गुरुवर आचार्य उपदिष्ट हुये–
श्रद्धा हो तो भगवान भी मिल जाते हैं श्रद्धा ना हो तो सामने भी आ जाए तो पहचान नहीं पाते हैं। श्रद्धालुओं को स्वप्न में भगवान मिल जाएंगे। सबसे पहले श्रद्धान और तत्वकी रूचि ही सम्यक्तव है। सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति तीन बातें अवश्य होनी चाहिए। सम्यक दृष्टि जीव कभी घोषणा नहीं करते उनकी चर्या और उनका जीवन बोलता है। कि ये समय्कदृष्टि हैं समय्कदृष्टि के लिए किसी प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती। श्रद्धा हो तो अमेरिका से भी सम्मेद शिखरजी पहुंच जाएगा ।श्रद्धा नहीं हो तो जयपुर से अर्घ्य चढ़ाने भी कोई नहीं आ पाएगा ।दुनिया में ढेरों तरह के धर्म हैं सब यही कहते हैं हमारी शरण में आ जाओ और महावीर कहते हैं मेरी शरण में नहीं खुद की शरण में जाओ। महाराज जी का वैभव तो भीतर से है बाहर से तो सब श्रावको का ही वैभव है ।आपकी उंगलियां मोबाइल पर चलती रहती हैं और आपका घर आ जाता है उसी तरह से हमारा शास्त्र अध्ययन हो जाता है ।सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा संसार रहित होनी चाहिए वही सम्यकदर्शन है आठ अंग जीवन में आएंगे तो मंगल ही मंगल होगा । 1000 वर्ष पहले वसुनंदी आचार्य हुए जिन्होंने श्रावकाचार ग्रंथ की रचना की। जैन धर्म के प्रति शंका रहित होकर अंजन चोर ने हथियारों के ऊपर आकाश गामिनी विद्या सिद्ध की, और सुमेरु पर्वत वंदना के लिए चले गए। दिनांक 4 को कल्पद्रुम विधान महामंडल के अंतर्गत प्रातः 6:30 जलाभिषेक पंचामृत अभिषेक और शांति धारा होगी आज विधानमंडल में 12 पूजा संपन्न हो चुकी हैं कल तीन पूजाएं होंगी।