Saturday, November 23, 2024

वाणी के सहारे बाहर नहीं निकले हमारा क्रोध व अभिमान : समकितमुनिजी

अशुभ से निवृति लेकर शुभ कार्यो में लग जाने वाला संसार सागर से पार

उत्तराध्ययन आगम की 27 दिवसीय आराधना का 19 वां दिन
भीलवाड़ा। सुनील पाटनी । अशुभ से निवृति लेकर शुभ कार्यो में लग जाने वाला संसार सागर से पार हो जाता है। गमन करने से पहले ज्ञान, दर्शन एवं चरित्र का आलम्बन लेना चाहिए। इनका आलम्बन लेने पर लक्ष्य हासिल करने में आसानी रहेगी। गमन करते हुए सुुमार्ग पर आगे बढ़े तो विराधना कम होगी एवं सबको मित्र बनाने की संभावना बढ़ेगी। चलते हुए दोस्त बनाते जा रहे यानि सुमार्ग पर गमन कर रहे है। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांतिभवन में सोमवार को परमात्मा भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन आगम की 27 दिवसीय आराधना ‘‘आपकी बात आपके साथ’’ के 19 वें दिन व्यक्त किए। इसके तहत आगम के 36 अध्यायों में से 24 वें अध्याय प्रवचन माता का वाचन करने के साथ इसके बारे में समझाया गया। उन्होंने कहा कि चलते समय हमारा ध्यान केवल चलने पर केन्द्रित होना चाहिए इधर-उधर ध्यान भटकाने पर दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। हमे अपनी वाणी को भी क्रोध, मान, माया, लाभ, वाचालता, विकथा आदि से बचाना होगा। हमारा क्रोध-अभिमान वाणी के सहारे बाहर नहीं निकलना चाहिए। इनसे बचकर बोलने पर हमारी वाणी अमृत हो जाती है। मुनिश्री ने कहा कि लेते समय चेहरे पर कोई भाव आने पर लेना दूषित हो जाता है। प्रसाद समझ कर लेना कर्म निर्जरा का कारण बन सकता है। ले भी रहे और मुंह भी फुला रहे तो लेना व देना दोनों दूषित हो जाते है। भोजन करते समय खाने की प्रशंसा पेट में जलन पैदा करेगा और भोजन में कोई कमी नजर आई और भोजन बनाने वाले की निंदा करते हुए खा रहे तो वह हजम नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भोजन उतना ही करे जितनी हमारे लिए शास्त्रों में सीमा तय की गई है। सीमा से अधिक खाने पर परेशानी होती है और ये परमात्मा के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाने के समान है। जो चीज फेंकने योग्य है उसे भी संभालकर रखने पर घर कबाड़खाना बन जाता है। धर्मसभा के शुरू में गायन कुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने प्रेरक गीत प्रस्तुत किया। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। लक्की ड्रॉ के माध्यम से भाग्यशाली श्रावक-श्राविकाओं को प्रभावना में चांदी के सिक्के लाभार्थी परिवारों द्वारा प्रदान किए गए। अतिथियों का स्वागत एवं धर्मसभा का संचालन शांतिभवन श्रीसंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़ ने किया।

संत साधक होने से पहले देश के नागरिक

पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि संत साधक होने से पहले देश के नागरिक है। राजाज्ञा जितनी आम आदमी के लिए होती है उतनी ही संतक े लिए भी होती है। संत को जिस गांव-शहर से निकले वहां के नियम मानने होते है। हमेशा परिस्थिति के हिसाब से नियमों में बदलाव होता है। संत को ऐसे निर्णय लेने चाहिए और ऐसे कार्य करने चाहिए जिसमें दोष नहीं लगे या कम से कम दोष लगे।

मदनमुनिजी म.सा. की दीक्षा जयंति पर सामूहिक एकासन 19 को

मेवाड़ प्रवर्तक पूज्य मदनमुनिजी म.सा. की 69वीं दीक्षा जयंति पर 19 अक्टूबर को शांतिभवन में सामूहिक एकासन आराधना का आयोजना होगा। आचार्य सम्राट देवेन्द्रमुनिजी म.सा. की जयंति एवं धनतेरस के पावन अवसर पर 22 अक्टूबर को शांतिभवन में सुबह 9 से 10.15 बजे तक समवरशरण ध्यान एवं शालिभद्र जाप का आयोजन होगा। जाप समापन पर शालिभद्र के हाथों 33 पेटियां लक्की ड्रॉ विजेताओं को दी जाएगी। भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक के उपलक्ष्य में तेला तप आराधना भी 22 अक्टूबर से शुरू हो रही है। अधिकाधिक श्रावक-श्राविकाओं को तेल तप आराधना करने के लिए प्रेरणा दी जा रही है।

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