नफरत देकर नहीं मिल सकता जीवन में प्रेम
उत्तराध्ययन आगम की 27 दिवसीय आराधना का 14वां दिन
भीलवाड़ा। सुनील पाटनी । मरते हुए मरने का मजा लेना हो तो आसक्ति छोड़ दो। हमेशा मरने के लिए तैयार रहो तो मरने का भी आनंद आएगा। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है वह बेवफा है एक दिन ठुकरा देगी। जिंदगी रूठ जाती है तो मौत का सामान बनती है। कौनसे पल जिंदगी रूठेगी क्या पता इसलिए जो हमसे रूठे हुए है उनको मना लो। ये दुनिया जीते हुए के साथ जीती है और मरे हुए को बाहर निकाल देती है। इसलिए तप-संयम का अधिकाधिक पालन करते रहो। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांतिभवन में गुरूवार को परमात्मा भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन आगम की 27 दिवसीय आराधना ‘‘आपकी बात आपके साथ’’ के 14 वें दिन व्यक्त किए। इसके तहत आगम के 36 अध्यायों में से 17वें अध्याय पाप श्रमणीय, 18 वें अध्याय संयतीय एवं 19वें अध्याय मृगापुत्रीय का वाचन करने के साथ इनके बारे में समझाया गया। उन्होंने कहा कि किसी के जाने से न दुनिया रूकती है न परिवार रूकता है इसलिए कभी इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि मैं नहीं रहूंगा तो मेरा परिवार नहीं चलेगा। देव गुरू धर्म के प्रति हमारा श्रद्धा कभी कम नहीं होनी चाहिए। जीवन में नफरत देकर कभी प्रेम की प्राप्ति नहीं हो सकती। अभय चाहते है तो अभय दो। मांगने से नहीं देने से मिलता है। हम गुस्सा देते है इसलिए वह मिलता है। मुनिश्री ने कहा कि यदि संत दिखने के बाद भी संसार दिखना बंद नहीं होता है तो धर्मयात्रा शुरू नहीं होती है। मन के भाव कब परिवर्तित हो जाए कह नहीं सकते। भोग में डूबे रहने वाले को भी संयम की भावना आ सकती है। तिर्यंच व नरक गति में खाई मार जिसको याद आ जाती उसकी धर्मयात्रा शुरू हो जाती है एवं जो भूल जाता है वह पुनः पाप के मार्ग पर आगे बढ़ जाता है। शुरू में गायन कुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने प्रेरक गीत प्रस्तुत किया। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। लक्की ड्रॉ के माध्यम से भाग्यशाली श्रावक-श्राविकाओं को प्रभावना में चांदी के सिक्के लाभार्थी परिवारों द्वारा प्रदान किए गए। धर्मसभा का संचालन शांतिभवन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।
बड़ो की बात का अनादर करने पर नहीं मिलेगा आदर
पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि जहां मनमर्जी शुरू होती वहीं शैतान बनने की यात्रा शुरू हो जाती है, इसका मतलब शेर से गीदड़ बन जाता होता है। मनमर्जी करने वाला बड़ो की बात का अनादर करेगा। जो बड़ो की बात का अनादर करेगा उसे दुनिया आदर एवं मन से सम्मान नहीं देंगी। अभिमान आदमी को निकम्मा बना देती है एवं उपकारी का उपकार भी स्वीकार नहीं करता है। अभिमानी हमेशा दूसरों को बर्बाद करने की सोचता है। उन्होंने कहा कि संबंधों में आपस में खटास व दुर्भावना होने पर गड़े मुर्दे उखाड़े जाते है। अपने व्यवहार व आचरण का ध्यान नहीं रहता। वाणी, व्यवहार, आचार-विचार ठीक होने पर हमारा सम्मान कायम रहेगा। गलत कार्य करने पर कभी बच नहीं पाएंगे। दुनिया हमेशा संत के व्यवहार व आचरण को देखती है उसके भीतर के भाव को नहीं देखती है। शास्त्रों में कहा गया है कि गलत आदत होने पर संत भी शैतान बन सकता है।
समवरशरण ध्यान एवं शालिभद्र जाप का आयोजन 22 को
पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने बताया कि आचार्य सम्राट देवेन्द्रमुनिजी म.सा. की जयंति एवं धनतेरस के पावन अवसर पर 22 अक्टूबर को शांतिभवन में सुबह 9 से 10.15 बजे तक समवरशरण ध्यान एवं शालिभद्र जाप का आयोजन होगा। जाप समापन पर शालिभद्र के हाथों 33 पेटियां लक्की ड्रॉ विजेताओं को दी जाएगी। भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक के उपलक्ष्य में तेला तप आराधना 22 अक्टूबर से शुरू हो रही है। जो भी श्रावक-श्राविकाएं तेला तप आराधना करना चाहे वह भवान्त मुनिजी म.सा. एवं महिला मंडल की मंत्री सरिता पोखरना से सम्पर्क कर कूपन प्राप्त कर सकते है।