जयपुर। मंदिरों की नगरी जयपुर ,जहां आचार्य श्री सुनील सागर गुरुदेव ससंघ का चतुर्मास भट्टारक जी की नसियां में चल रहा है। आज प्रातः पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से मंत्रोच्चारों का उच्चारण हुआ और भगवान जिनेंद्र देव के मस्तक पर कलश धारा संपन्न हुई ,सैकड़ों लोग जिनालय में उपस्थित थे जब गुरुदेव के श्री मुख से शांति धारा के मंत्रों का उच्चारण हुआ संपूर्ण विश्व जगत की शांति हेतु सभी श्रावको ने कामना की । उक्त जानकारी देते हुए चातुर्मास व्यवस्था समिति के प्रचार मंत्री रमेश गंगवाल ने जानकारी देते हुए बताया प्रातः 4 बजे से स्वाध्याय आरम्भ हो जाता है फिर समय होता है योग ध्यान का,
प्रातः 6 बजे सम्पूर्ण संघ श्री जी का अभिषेक करता है। पश्चात आचार्य वन्दना होती है पश्चात 8.20 बजे तक लब्धिसार पर स्वाध्याय होता है।प्रातः 8.30 बजे आचार्य श्री का प्रवचन होता हैं । सन्मति सुनील सभागार में श्रीमती अनीता सोगानी के मंगलाचरण और गुरुदेव के श्री संघ की जो विगत वर्षों से व्यवस्था कर रहे हैं उन संघ सारथियों के द्वारा चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन से आज की धर्म सभा का शुभारंभ हुआ । मंच संचालन श्रीमती इन्दिरा बडजात्या ने किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक रूपेंद्र छाबड़ा राजेश गंगवाल ने जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि परम पूज्य आचार्य भगवन श्री सुनील सागर गुरुदेव के चरणों का प्रक्षालन आज केसर के सुगंधित जल से चातुर्मास व्यवस्था समिति के मंत्री ओमप्रकाश काला परिवार ने किया। पूज्य गुरुदेव को जिनवाणी शास्त्र भी काला परिवार ने भेंट किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष देवप्रकाश खंडाका ने बताया पूज्य गुरुदेव ने अपनी ओजस्वी व मंगलमयी वाणी से संपूर्ण समाज के उत्थान हेतु कहा कि इस कलयुग का सौभाग्य है कि मुनिराज इस युग में भी अपने हाथों से अपने केशों का लुंचन करते हैं वीतराग शासन के देव शास्त्र गुरु की महिमा अप्रतिम है यह तीन रत्न हैं देव शास्त्र गुरु। गुरुदेव की वाणी मुखरित हुई उन्होंने कहा प्रवचन स्वाध्याय है और सभी को यह स्वाध्याय करना चाहिए जयपुर में पत्थर के पारखी बहुत हैं पर आत्मा की परख करने वाले कम हैं ।
जो देता है वो देवता कहलाता है जो दर्शन ज्ञान चरित्र देता है वही देवता होता है, हर आत्मा को यह परख करनी चाहिए कौन ज्ञानी है, कौन साधु है ,कौन देव है और कौन कुदेव है । जब तक जीना है ,सुख से जियो ऋण लेकर जीना कैसा जीवन है। हमारे सभी पूर्व नियोजित कार्यक्रम स्थगित हो सकते हैं या बिल्कुल भी नहीं हो सकते परंतु सर्वज्ञ देव के वचन कभी स्थगित नहीं हो सकते लोप नहीं हो सकते हैं। हमें अभी पूर्ण ज्ञान नहीं है या नहीं भी हो सकता है यह तो सर्वज्ञ देव को ही होता है जो भूत भविष्य वर्तमान को पूर्ण रूप से जानते हैं ।हम तो आवरण में पड़े हैं वह तो निरावरण हैं, हम रूढ़िवादी हैं ,हमें शाश्वतता को ही स्वीकार करना चाहिए।